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नरेन्द्र चंचल की बड़ी मशहूर भेंट है' चलो बुलावा आया है माता ने बुलाया है'। और मैने इसे जीवन में बहुत अच्छे से जिया है। मुझे याद है हम श्री निवास पुरी रहा करते थे। कालका माई का द्वार हमारे घर से शायद 3 से 4 किलोमीटर रहा होगा। में स्कूल में पढ़ता था। नवरात्रे आते ही माँ का दरवार सज जाता था।बड़ा सुंदर मेला लगा करता था। कालका जी का नवरात्री मेला दूर दूर से लोग देखने आते थे। बचपन था भक्ति का ज्यादा पता नही था। मेरे दो तीन लक्ष्य होते थे। एक फोटो खिचवाना दूसरा कचौड़ी आलू की सब्ज़ी खाना और तीसरा अगर तीर निशाने पे लगे तो माँ से खिलौना खरीदवाना। माता के दर्शन का लाभ माँ की भक्ति की बदौलत मिल ही जाता था। हम घर से पैदल आया करते थे।कालका जी की पहाड़ी पार कर के। दर्शन करते। और मंदिर के बिल्कुल बाहर मिठाई की दुकान थी उसपे कचौड़ी बिका करती थी वो दुकान आज भी वहीं वैसी ही है। मुह में पानी घर से चलते ही आ जाता था। माँ भक्ति वश जा रही थी हम जीभ जे स्वाद वश उंगली पकड़े थे। सालों साल ये सिलसिला चला। हर शारदीय नवरात्रे की एक फोटो आज भी घर में मौजूद है। माँ की श्रद्धा वश बुलावा हर बार आता रहा। कुछ बड़े हुए शहर बदल गया। में कॉलेज पहुंचा तो तकदीर देखिये माँ के मंदिर के समीप ही मेरा कॉलेज। जब तक भी माता का बुलावा कुछ मेरी अपनी वजह से भी आता रहा। समय बदला। जीवन की गाड़ी ने रफ्तार पकड़ी सालों मंदिर के सामने से गुजरता रहा। दूर से माथा टेकता रहा पर माँ ने दरवार नही चढ़ने दिया।बहुत समय बाद कुछ सुखना मांगी। दोस्तों के रूप में माँ ने प्यार भेजा। दोस्तों की मदद से काम सम्पन हुआ। दोस्तों का तहे दिल से शुक्रिया। और माँ ने आज अपने चरणों में बुला लिया। खुला दरबार खुले दर्शन। जी भर के निहारा मन से भजा और आरती का आनंद लिया। आज कचौड़ी आड़े नही आई। फ़ोटो का दौर खत्म हो चुका। खिलोने अब मेरे खेलने की चीज़ रहे नही। भक्ति को बुलावा आ गया । तुछ इंसान अपनी अरदास लिए माँ के दरबार पहुंच गया और बोला' चलो बुलावा आया है माता ने बुलाया है'। जय माता दी।
जय हिंद
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शुभ रात्रि।
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🌹🙏🏼🎊🎊🎊😊🎊🎊🎊✍🏼🌹 आज एक रस्म पगड़ी में गया हमारे प्यारे गोपाल भैया की।बहुत अच्छे योगाभ्यासी थे।रोज सुबह योगा सेवा में योग की कक्षा भी लगाया करते थे।बहुत शुद्ध साफ निर्मल तबीयत के और बेहद अच्छे व्यक्तित्व के मालिक थे। उम्र रही तक़रीबन 56 साल।एक गम्भीर बीमारी ने एक जीवन असमया लील लिया।पारिवारिक संबंध है हमारे।उनके पुत्र को देख के मुझे 26 जुलाई 2009 की याद आ गयी।मेरे पिता जी की मृत्यु हुई और हमारे यहां रस्म पगड़ी तेहरवीं पे ही होती है।ये उत्तर भारत के रस्मों रिवाज का हिस्सा है।पिता के बाद घर मे ज्येष्ठ पुत्र को आधिकारिक रूप से परिवार का मुखिया बनाया जाता है।समाज के सामने और जो पगड़ी बांधी जाती है सारा समाज जो वहां उपस्थित होता है अपने स्पर्श से पगड़ी को अधिकार सौंपता है। थोड़ा संकलित ज्ञान इसपे ही हो जाये।रस्म पगड़ी - रस्म पगड़ी उत्तर भारत और पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों की एक सामाजिक रीति है, जिसका पालन हिन्दू, सिख और सभी धार्मिक समुदाय करते हैं। इस रिवाज में किसी परिवार के सब से अधिक उम्र वाले पुरुष की मृत्यु होने पर अगले सब से अधिक आयु वाले जीवित पुरुष के सर पर रस्मी तरीके से पगड़ी (जिस
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