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मध्यभारत का एक खूबसूरत हिल स्टेशन है ' पंचमढ़ी'। सतपुड़ा पर्वत श्रृंखला में बसा एक खूबसूरत प्राकृतिक सौन्दर्या से भरपूर जगह। में 2006 से 2010 तक मध्यप्रदेश रहा। कई बार मौका लगा जाने का। वहाँ जा के श्री भवानी प्रशाद मिश्र की कविता याद आ जाती है। हमने स्कूल में पड़ी थी। शायद आप में से किसी को याद हो। कविता के शब्द
सतपुड़ा के घने जंगल।
नींद मे डूबे हुए से
ऊँघते अनमने जंगल।
ये बर्बस ही जीवंत हो उठता है। पंचमढ़ी मैं जा के आप सुरक्षित वन्य जीवन का पूर्ण आनंद ले सकते हो। इंसान नामक भक्षक से ये क्षेत्र अभी भी सुरक्षित है। मिलट्री का कैंटोनमेंट है अंग्रेजों के जमाने से। सो बेहतर स्तिथि में है। इस क्षेत्र का बहुत ज्यादा व्यवसायी कर्ण नही हुआ है। सो प्रकृति की गोद हरी भरी है। यहां रोड के रास्ते जबलपुर या भोपाल से आसानी से पहुंचा जा सकता है। पास में पिपरिया रेलवे स्टेशन भी है। रेल से भी जुड़ा हुआ है।पिपरिया मंडी अपनी उम्दा तुहर दाल जे लिये देश भर में मशहूर है। आप के पास अगर अपनी गाड़ी हो तो आते हुए या जाते हुए स्टेशन के समीप ही मंडी है से खरीदारी कर सकते है। पंचमढ़ी बरसात में घूमने में भी अच्छी और गर्मियों में भीड़ बहुत होती है। सितंबर अक्टूबर में जाएं तो मौसम अच्छा मिलेगा। जंगली आम खाने हों तो गर्मियों में जाईये और जी भर के खाइये। पिपरिया से सड़क मार्ग के दोनों और आम के जंगल मिलेंगे। जामुन खाने हों तो बरसात केे आस पास आइये पंचमढ़ी में जामुन के जंगल भी देखने को मिलेंगे। यहां घूमने की वहुत सी जगह है। धार्मिक हो तो जटा शंकर जा के आइये। ट्रेकिंग के शौकीन हों तो चौरागढ़ हो आइये। नहाने का मजा लेना है बी फॉल डचेस फॉल जा के आइये। महादेव मंदिर जाईये। इंदिरा पॉइंट हांडी खो घूमने के अच्छे स्थान है। शाम होने को आये तो धूप गढ़ पहुंच जाईये। डूबते सूरज का मजा लिजेये। पांडव गुफाएं इतिहास में ले जाती है। कुल मिला के बेहद खूबसूरत रोमांचक जगह है। रुकने के लिए ठीक ठाक व्यवस्था है। बाजार है। खरीदारी की जा सकती है। खाने की व्यवस्था भी ठीक ठाक है।आदिवासी परिवेश और रिहायश को देखा समझा जा सकता है। कभी मौका लगे तो घूम के आइये। गुजरात से बहुत लोग प्रतिवर्ष यहां आते है। आज अपनी कुछ पुरानी यादें ताज़ा हो गई। भोपाल में बिताया वक़्त एक दम सामने आ गया। अंत में भवानी प्रशाद मिश्र जी की कविता जरूर पढ़ियेगा आप सतपुड़ा के जंगल कविता में जीवंत पायेंगे।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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🌹🙏🏼🎊🎊🎊😊🎊🎊🎊✍🏼🌹 आज एक रस्म पगड़ी में गया हमारे प्यारे गोपाल भैया की।बहुत अच्छे योगाभ्यासी थे।रोज सुबह योगा सेवा में योग की कक्षा भी लगाया करते थे।बहुत शुद्ध साफ निर्मल तबीयत के और बेहद अच्छे व्यक्तित्व के मालिक थे। उम्र रही तक़रीबन 56 साल।एक गम्भीर बीमारी ने एक जीवन असमया लील लिया।पारिवारिक संबंध है हमारे।उनके पुत्र को देख के मुझे 26 जुलाई 2009 की याद आ गयी।मेरे पिता जी की मृत्यु हुई और हमारे यहां रस्म पगड़ी तेहरवीं पे ही होती है।ये उत्तर भारत के रस्मों रिवाज का हिस्सा है।पिता के बाद घर मे ज्येष्ठ पुत्र को आधिकारिक रूप से परिवार का मुखिया बनाया जाता है।समाज के सामने और जो पगड़ी बांधी जाती है सारा समाज जो वहां उपस्थित होता है अपने स्पर्श से पगड़ी को अधिकार सौंपता है। थोड़ा संकलित ज्ञान इसपे ही हो जाये।रस्म पगड़ी - रस्म पगड़ी उत्तर भारत और पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों की एक सामाजिक रीति है, जिसका पालन हिन्दू, सिख और सभी धार्मिक समुदाय करते हैं। इस रिवाज में किसी परिवार के सब से अधिक उम्र वाले पुरुष की मृत्यु होने पर अगले सब से अधिक आयु वाले जीवित पुरुष के सर पर रस्मी तरीके से पगड़ी (जिस
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