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चलो आज हम कुछ अपने से अंजान हो जायें ।ऐसे ही मन में ख्याल आया कि क्यों न कभी कभी अपने से अंजान हुआ जाए। क्यों न अपने सफ़े को फिर से लिखा जाए?क्यों न कुछ भुला दिया जाए? क्यों न हम अपनी सोच से कुछ बाहर आयें? अंजान होना आपका भला बुरा दोनों कर सकता है। दुनिया की रीत से अनजान होंगे तो बहुत कशमकश भरा विडंबनाओं भरा रुकावटों भरा जीवन होगा। तो हर जगह अंजान भी नही हुआ जा सकता।घर परिवार में अंजान बने तो फजीहत निश्चित है। दोस्त रिश्तेदार नातेदारों से अंजान बनो कुछ समय आराम से निकल सकता है।अपने जीवन उपार्जन हेतु कार्यों से अंजान बने तो घोर अनिष्ट तेह है।फिर अंजान क्यों बना जाये? शायद अपने भले के लिए कुछ बातों में अंजान बनना पड़ता है।अपने में सुधार कब मुन्नकिन है? सुधार के लिए सबसे पहले अपने जीवन से मिले व्यवहारिक ज्ञान कुछ समय अलग रखा जाए। हम गलत है ये हमे समाज समझा ही देता है। तो हमारा व्यवहारिक ज्ञान कुछ खोट लिए होगा ही न। तो सबसे पहले अपने से ही अंजान बना जाए। जो आप आज है उसे कुछ देर भूला जाए। अपनी तख्ती पे लिखी लिखाई मिटा दी जाए। तख्ती पे जीवन मिट्टी से पुताई की जाए और धूप में सुखाई जाये। अपना जीवन का सफा नई साफ तख्ती पे फिर से लिखा जाए। फिर से उसे नए सिरे से समझा जाये। हम दूसरों के सुधरने की आशा में कभी अपनी गलत किताब खोलते ही नही। अपने में सुधार कभी लाते ही नही। कुछ उलझी अधसूलझी पहेलियों से जीवन जीते जाते है। अपने को पका लेते है। कुछ तमगे हाँसिल कर लेते है। येही तमगे आप को सुधरने के लिए जगह नहीं दे पाते। तो सबसे पहले अपने से अनजान जरूर हुआ जाये कि नई तक़दीर तस्वीर मुख़ातिब की जा सके। इसके लिए चलो दुनिया में फैले भेद भाव से अंजान हुआ जाए। अपने अंदर भरे द्वेष से अंजान हुआ जाये। अपने अंदर वैमनस्य से अंजान हुआ जाये। अपने अंदर भरी जलन से अंजान हुआ जाये।अपने अंदर भरे लालच से अंजान हुआ जाये। अपने अहंकार से अंजान हुआ जाये। अपनी में से अंजान हुआ जाये।अपनी कुदृष्टि से अंजान हुआ जाये। अपनी रूढ़िवादी सोच से अंजान हुआ जाये। अपने अंदर भरे अज्ञान के अंधेरों से अंजान हुआ जाये। अपने झूठ से अंजान हुआ जाये। चलो दूसरों के परिहास से ज अंजान हुआ जाये। चलो दुनिया में भिन्न भिन्न अम्लों से अंजान हुआ जाये। अपनी कुंठाओं से अंजान हुआ जाये। चलो जिनसे हमारी समझ मेल नही खाती उनसे अंजान हुआ जाये। चलो अपनी तकदीर से कुछ अंजान हुआ जाये। चलो अपने अंदर के भ्रष्टाचार से अंजान हुआ जाये। ऐसी न जाने कितनी जानकारियों से अंजान होने की आज मुझे जरूरत है। कुयोंकी अगर आज मुझे इस इंसान से सिर्फ इंसान बनना है तो शायद इन सबसे आज क्यों न अंजान हुआ जाये।अपनी नई तस्वीर बनाई जाये तक़दीर एक बार फिर से लिखी जाये।चलो तख्ती की आज ही फिर से पुताई की जाये एक बार धूप में फिर से इसे सुखाया जाये। इसे फिर से जीवन की सुंदर वर्णमाला से पिरोया जाये। फिर से आज चलो अपने से कुछ अंजान हुआ जाये।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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🌹🙏🏼🎊🎊🎊😊🎊🎊🎊✍🏼🌹 आज एक रस्म पगड़ी में गया हमारे प्यारे गोपाल भैया की।बहुत अच्छे योगाभ्यासी थे।रोज सुबह योगा सेवा में योग की कक्षा भी लगाया करते थे।बहुत शुद्ध साफ निर्मल तबीयत के और बेहद अच्छे व्यक्तित्व के मालिक थे। उम्र रही तक़रीबन 56 साल।एक गम्भीर बीमारी ने एक जीवन असमया लील लिया।पारिवारिक संबंध है हमारे।उनके पुत्र को देख के मुझे 26 जुलाई 2009 की याद आ गयी।मेरे पिता जी की मृत्यु हुई और हमारे यहां रस्म पगड़ी तेहरवीं पे ही होती है।ये उत्तर भारत के रस्मों रिवाज का हिस्सा है।पिता के बाद घर मे ज्येष्ठ पुत्र को आधिकारिक रूप से परिवार का मुखिया बनाया जाता है।समाज के सामने और जो पगड़ी बांधी जाती है सारा समाज जो वहां उपस्थित होता है अपने स्पर्श से पगड़ी को अधिकार सौंपता है। थोड़ा संकलित ज्ञान इसपे ही हो जाये।रस्म पगड़ी - रस्म पगड़ी उत्तर भारत और पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों की एक सामाजिक रीति है, जिसका पालन हिन्दू, सिख और सभी धार्मिक समुदाय करते हैं। इस रिवाज में किसी परिवार के सब से अधिक उम्र वाले पुरुष की मृत्यु होने पर अगले सब से अधिक आयु वाले जीवित पुरुष के सर पर रस्मी तरीके से पगड़ी (जिस
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