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आज़ादी बड़ा मुन्नकिन है रोज हम किसी न किसी रूप में सोचते हों। बड़ा व्यापक शब्द है। आजादी के मायने उसके साथ जुड़ी जरूरतों के मुताबिक हम बदल डालते है। आजादी एक जिंदादिल उड़ान से जुड़ी है। जहां कोई हर बंधनो से मुक्त हो अपना जीवन अपने अनुसार अपनी इच्छाओं से जीना चाहता है। ये कोई व्यक्ति विशेष भी हो सकता है । कोई समुदाय विशेष भी। विचारों की आजादी कोई आप की छीन नही सकता। वो आप के जहन में दिलो दिमाग में होते है।लेकिन विचारों के किर्यान्वयन की आजादी शायद हमेशा सम्भव नही। आजादी बंधन नही मानती। आजादी कानून नहीं मानती। आजादी रिश्तों की डोर हमेशा तोड़ के निकल जाना चाहती है। आजादी कोई दीवार नही देखती। आजादी की कोई भागोलिक सीमा तह नही। आजादी कोई भाषा जात पात धर्म संस्कार नहीं मानती। आजादी कोई देश नहीं मानती। आजादी कोई बेड़ी नही देखती। आज़ादी संसार के हर बंधन से मुक्त है। सो ही पूर्ण है। पर ये कल्पना भी है।ये बहुत मतलबी भी है। हर एक इस आज़दी को अपने हिसाब से देख रहा है। किसी को पढ़ने से आज़ादी चाहिये। किसी को खेलने की आजादी चाहिए। किसी को काम पे काम करने की आजादी चाहिए। किसी को घर में मन मुताबिक रहने की आजादी। किसी को सास ससुर से आज़ादी। किसी को प्रेम बंधन से आज़ादी। किसी को जीवनसाथी से आज़ादी। किसी को तो बस संसार से ही आजादी चाहिये।और तो और किसी को लिखने से आज़दी। किसी को नहाने से आजादी। किसी को झाड़ू पोचे बर्तनों से आज़ादी। किसी को सुबह जल्दी उठने से आज़ादी। किसी को डांट फटकार से आज़ादी।किसी को स्कूल कॉलेज न जाने की आज़ादी। किसी को खुल के व्यसनों की आज़ादी। जितने हमारी सोचों में बंधन हों सकते है हममे उन सब से आजादी की सोच हो सकती है।और ये सब व्यवहारिक बिल्कुल नहीं है। हमारे समाज ने हर उम्र की कुछ बंधन नियम बनाये है। जिन्हें निभाना पड़ता है। और अगर न निभाओ तो तिरस्कार सहना पड़ता है। और अगर इस तिरस्कार को सहने की क्षमता अगर आप ने अपने अंदर जमा कर ली है तो आप के उत्तम केवल उत्तम वैचारिक काम आप को सफल भी करते है बनाते है और प्रतिष्ठा भी दिला देते हैं। और येही अगर नीच विचार हों तो सामाजिक बहिष्कार और अपराध बोध से भी ग्रस्त कर देते है। तो पूर्ण आज़ादी शायद इस सांसारिक जीवन में संभव नही। इसलिए मन हमेशा आज़ाद रखिये। तन की आज़दी आप के कर्म से तह होगी। बुद्धि की आजादी आप की विचारशीलता तह करेगी। और योनि से मुक्ति या आज़दी आप का भाग्य। कुल मिला के आज़दी भी संभावनाओं का खेल सा बन गया है। स्तिथि के अधीन हो गया है। इसलिए मन बुद्धि को हमेशा आज़ाद रखें। मर्यादा की सीमा ज्ञान से समझें।सपने आज़ाद रहे। कल्पनाओं की कोई सीमा नही। सीमा ज्ञान से आजादी को जब मौका मिले रूबरू करा दें। उड़ान किंतनी ऊंची होगी कर्म भाग्य समय को तह करने दें। मन से पूर्ण आज़ाद रहें। बुद्धि कल्पनाओं की मंज़िल लिए आज़ाद रहे। किर्यान्वयन हमेशा सीमा में सीमित आज़ादी में रह कर ही करें। येही शायद आजादी का एक रूख एक पैमाना हो सकता है।
इसलिए जितना संभव हो आज़ाद रहें। खुश रहें। मन से जीयें। येही आप की आज़ादी है।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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🌹🙏🏼🎊🎊🎊😊🎊🎊🎊✍🏼🌹 आज एक रस्म पगड़ी में गया हमारे प्यारे गोपाल भैया की।बहुत अच्छे योगाभ्यासी थे।रोज सुबह योगा सेवा में योग की कक्षा भी लगाया करते थे।बहुत शुद्ध साफ निर्मल तबीयत के और बेहद अच्छे व्यक्तित्व के मालिक थे। उम्र रही तक़रीबन 56 साल।एक गम्भीर बीमारी ने एक जीवन असमया लील लिया।पारिवारिक संबंध है हमारे।उनके पुत्र को देख के मुझे 26 जुलाई 2009 की याद आ गयी।मेरे पिता जी की मृत्यु हुई और हमारे यहां रस्म पगड़ी तेहरवीं पे ही होती है।ये उत्तर भारत के रस्मों रिवाज का हिस्सा है।पिता के बाद घर मे ज्येष्ठ पुत्र को आधिकारिक रूप से परिवार का मुखिया बनाया जाता है।समाज के सामने और जो पगड़ी बांधी जाती है सारा समाज जो वहां उपस्थित होता है अपने स्पर्श से पगड़ी को अधिकार सौंपता है। थोड़ा संकलित ज्ञान इसपे ही हो जाये।रस्म पगड़ी - रस्म पगड़ी उत्तर भारत और पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों की एक सामाजिक रीति है, जिसका पालन हिन्दू, सिख और सभी धार्मिक समुदाय करते हैं। इस रिवाज में किसी परिवार के सब से अधिक उम्र वाले पुरुष की मृत्यु होने पर अगले सब से अधिक आयु वाले जीवित पुरुष के सर पर रस्मी तरीके से पगड़ी (जिस
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