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बड़ी बार सुनते है जी बड़ा भला मानस है! भला इंसान है! बड़ा अच्छा लगता हैं संबोधन करते हुए सुनते हुए। शाबास सी महसूस होती है। मन को अच्छा लगता है। एक आत्मीयता का एहसास होता है। भला मनुष्य आखिर है कोन? भला जो हमारी सहायता बिना जाने बिना लालच करे। भला वो जो मानवता को समझता हो। भला वो जिसे भलाई तो करनी है पर श्रेय की जरूरत नही। भला वो जो स्तिथि भांप के स्वयं से सहायता के लिए आगे आये। भला वो जो सही को जान कर सही के साथ रहे। भला वो जिसमे कपट न हो। भला वो जो न्याय समझता हो।भला वो जो बैर को प्रेम से निभाना जनता हो। भला वो जो अत्यधिक सहनशील हो।भला वो जो क्रोध को काबू करने की क्षमता रखता हो। भला वो सकरात्मक सोच रखता हो। भला वो जो सदा परोपकार के लिये तैयार रहता हो। भला वो जो परिवार के मायने समझता हो। भला वो जो बच्चों में बच्चों सा दिल लिए हो। भला वो इंसान में ही ईश्वर के दर्शन ढूंढता हो। भला वो जो सद्कर्म में विश्वास रखता हो सद्कर्म ही करता हो। भला वो प्रकृति के सब रूपों को समान रूप से प्यार करता हो। भला वो मन की समझता हो मन से करता हो।भला वो जो घोर आपदा में भी निभाना जनता हो। भला वो जो समाज में सामंजस्य स्थापित करने के लिए सदा तत्तपर रहता हो। भले के फेरिस्त उतनी ही लंबी है जितनी एक इंसान के भलमनसी की दूसरे से उम्मीद।मनुष्य में भला होने बनने के सारे गुण मौजूद है। और ये हर किसी मनुष्य में बराबर रूप से मौजूद है। मगर हम अपने इच्छाओं लालच द्वेष अहम डर के वश इससे दूर भागते है। भला इंसान कोई भी हो सकता है पर आज कल ये बहुत मुश्किल से ही मिलते है। हमारी महत्वकांक्षी प्रवृति ने हमारे अंदर मौजूद भले मानस को कहीं अंधेरों में छुपा दिया है जो शायद अब मतलब के समय ही बाहर आता है। संसार में अगर आज भी विश्वास जिंदा है तो कुछ भले मानसों की वजह से ही जिंदा है। एक स्वच्छ उत्तम समाज के लिए भले मानसों की बड़ी जरूरत है। कुछ तलाशिये अपने अंधेरों में छुपे अपने भोले भले पन को शायद कोई किसी जगह आप के इंतज़ार में किसी रोशनी की तलाश में हो। हर इंसान में एक ही ईश्वर प्रभु की लो जल रही है।इससे एकाकार भले की सबसे बड़ी पहचान है।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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🌹🙏🏼🎊🎊🎊😊🎊🎊🎊✍🏼🌹 आज एक रस्म पगड़ी में गया हमारे प्यारे गोपाल भैया की।बहुत अच्छे योगाभ्यासी थे।रोज सुबह योगा सेवा में योग की कक्षा भी लगाया करते थे।बहुत शुद्ध साफ निर्मल तबीयत के और बेहद अच्छे व्यक्तित्व के मालिक थे। उम्र रही तक़रीबन 56 साल।एक गम्भीर बीमारी ने एक जीवन असमया लील लिया।पारिवारिक संबंध है हमारे।उनके पुत्र को देख के मुझे 26 जुलाई 2009 की याद आ गयी।मेरे पिता जी की मृत्यु हुई और हमारे यहां रस्म पगड़ी तेहरवीं पे ही होती है।ये उत्तर भारत के रस्मों रिवाज का हिस्सा है।पिता के बाद घर मे ज्येष्ठ पुत्र को आधिकारिक रूप से परिवार का मुखिया बनाया जाता है।समाज के सामने और जो पगड़ी बांधी जाती है सारा समाज जो वहां उपस्थित होता है अपने स्पर्श से पगड़ी को अधिकार सौंपता है। थोड़ा संकलित ज्ञान इसपे ही हो जाये।रस्म पगड़ी - रस्म पगड़ी उत्तर भारत और पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों की एक सामाजिक रीति है, जिसका पालन हिन्दू, सिख और सभी धार्मिक समुदाय करते हैं। इस रिवाज में किसी परिवार के सब से अधिक उम्र वाले पुरुष की मृत्यु होने पर अगले सब से अधिक आयु वाले जीवित पुरुष के सर पर रस्मी तरीके से पगड़ी (जिस
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