💐🙏🏾********************✍🏼💐
यूं ही कुछ आभास हुआ अपने होने का। अपनो के होने का। अपनो से होने का।हम जीवन के एक मोड़ पे आकर एक दौड़ में शामिल हो जाते है। दिमाग हमारी रफ्तार से भी तेज दौड़ने लगता है। समय से भी दौड़ लगाने लगता है। हम बहुत भौतिकवाद से ग्रस्त हो जाते है। हमारे चारों तरफ वक़्त के साथ अपनो का एक घेरा हो जाता है। ये सब उनका होता है या तो जो हमसे प्रेम करते हैं या फिर हमें किसी मकसद से चाहते हैं। और समय के साथ वो आपको प्रेम मोह या लोभ वश अपना एक हिस्सा आप को समर्पित करते चलते है। प्रेम मोह वाले अभिलाषा की जगह सिर्फ आप के चेहरे पे खुशी छाई रहे इसलिए आप के साथ बने रहने की जुगत में रहते है। और मतलब साधने वाले सही वक़्त के इंतज़ार में। आप अपनी धुन में इसे रिश्तों के बंधन की देंन समझ अपनी दौड़ में व्यस्त हो जाते हो। समय भी दौड़ रहा है आप भो दौड़ रहे है। दौड़ कोन जीतने वाला है किसी को पता नही। हैं एक बात जरूर है जो सबके मन को पता है अंत में समय ही जीतने वाला है हर तरह से। समय से समय की दौड़ में बहुत साथी आपके मददगार बनते है। हम उनकी मदद अधिकार स्वरूप ग्रहण करते है। अपनी इच्छाओं के इर्द गिर्द अपनी दुनिया में खोए रहते है। हमारे घेरे में सब की कुछ उम्मीद है भी या नही इसका ख्याल ही नही आता। यू कहें निस्वार्थ प्रेम का कभी आभास ही नही होता। जब आभास ही न हो तो उसे सम्मानित कैसे करेंगे? पर जो निस्वार्थ रिश्ता बनाये है वो आप के चेहरे की हर खुशी अपना सम्मान समझ लेते है। त्रिस्तकार को आप की परेशानी और क्रोध को अपनी गलती। दूसरी तरफ एक कोम और आप को घेरे रहती है। वो है मतलब परस्तों की। और ये आप से जुड़े हर रिश्ते में मौजूद रहते है।हर रिश्ते बोले तो हर रिश्ते में। वो आप की खुशी बना के आप से अपने हिस्से की खुशी लेने का पूरा यत्न करते है।अपने हर निभाये कर्तव्य का आप को एहसास कराने का कोई मौका नही छोड़ते।आप के क्रोध को पीने का प्रयास धम्भी रूप में करते है।आप की उदासी में केवल फायदा ढूंढते है। आप को अपने होने का आभास किसी न किसी रूप में कराते रहते है। जुगत प्रिय होते है। घेरे में अपनी जगह आप के सबसे नजदीक रखते हैं के वो खांसे भी तो आप को उनके होने का आभास रहे।उनकी अपनी मौजूदगी हर हालत में आपकी नज़रों में रहे। पर जो प्रेम समर्पण आप को दे चुके अपना आभास कराने में सदा असमर्थ होते है। आप के आस पास सदा मौजूद हो के भी कभी आप की दौड़ के बीच अपना आभास नही होने देते। कारण की कहीं समय से लगी दौड़ में आप से आप का मकसद न छूट जाये। और यहीं आप के पहचानने की क्षमता और समर्पित प्रेमी को उसके लिए आप के दिल में जो सबसे उच्च स्थान हैं उसके आभास की जरूरत होती है। ये आभास आंखों में ही जिया जाता है। एक दूसरे की आंखें एक दूसरे के प्रति सम्मान की अभिव्यक्ति करती है। येही इस जीवन की दौड़ में एक सच्चे प्रेम से पूर्ण साथी को आप का सबसे बड़ा उपहार है जो कोई भौतिक वस्तु नही दे सकती है। खोजीये अपनी ऐसी चाहत । उसे उसके होने का एहसास कराइये। जीवन आप में सारे रंग बिना मांगे भर देगा। जब अंत में समय जीतने लगेगा तो आप को सलाम करके ही आपसे आगे निकलेगा। येही आभास की पूर्णता है।
जय हिंद।
*****🙏🏾****✍🏼
शुभ रात्रि।
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
🌹🙏🏼🎊🎊🎊😊🎊🎊🎊✍🏼🌹 आज एक रस्म पगड़ी में गया हमारे प्यारे गोपाल भैया की।बहुत अच्छे योगाभ्यासी थे।रोज सुबह योगा सेवा में योग की कक्षा भी लगाया करते थे।बहुत शुद्ध साफ निर्मल तबीयत के और बेहद अच्छे व्यक्तित्व के मालिक थे। उम्र रही तक़रीबन 56 साल।एक गम्भीर बीमारी ने एक जीवन असमया लील लिया।पारिवारिक संबंध है हमारे।उनके पुत्र को देख के मुझे 26 जुलाई 2009 की याद आ गयी।मेरे पिता जी की मृत्यु हुई और हमारे यहां रस्म पगड़ी तेहरवीं पे ही होती है।ये उत्तर भारत के रस्मों रिवाज का हिस्सा है।पिता के बाद घर मे ज्येष्ठ पुत्र को आधिकारिक रूप से परिवार का मुखिया बनाया जाता है।समाज के सामने और जो पगड़ी बांधी जाती है सारा समाज जो वहां उपस्थित होता है अपने स्पर्श से पगड़ी को अधिकार सौंपता है। थोड़ा संकलित ज्ञान इसपे ही हो जाये।रस्म पगड़ी - रस्म पगड़ी उत्तर भारत और पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों की एक सामाजिक रीति है, जिसका पालन हिन्दू, सिख और सभी धार्मिक समुदाय करते हैं। इस रिवाज में किसी परिवार के सब से अधिक उम्र वाले पुरुष की मृत्यु होने पर अगले सब से अधिक आयु वाले जीवित पुरुष के सर पर रस्मी तरीके से पगड़ी (जिस
Comments
Post a Comment