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आज अब बस अभी।

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जीवन की सड़कें बड़ी टेडी मेडी है। राहें भी उबड़ खाबड़ है। जन्म से इन राहों पे चलने की  सलाह शिक्षा मिलने लगती है। बच्चा बड़ा होने लगता है उससे बड़े होने की उम्मीद उसकी उम्र से पहले ही लगा ली जाती है। हम सब अपने से आगे  के जीवन को जीने की तरफ धिकल जाते है। आज की परवाह और खुशियां कही छोड़ आते है। बीते के बारे में सोचने का यत्न करने लगते है। अच्छा हुआ कम याद आता है। बुरा हमेशा मन दिमाग पे छाया रहता है। उससे आज को उलझा ले रख लेते है।आज उलझ जाता है।फिर कहीं दूर से आहट होती है । आहट ही सुनती है नज़र कुछ नही आता। मन अधीर होने लगता है उस आहट को सुनने के लिए। आहट की दिशा समझने लगते है। अंदाज़ा करने की कोशिश करते है। अंदाज़ा फिर दिमाग को फालतू के काम में उलझा लेता है। एक तो भूतकाल ने वैसे ही उलझा रखा है दूसरा इस अनजानी आहट ने जिसका शायद आप से कुछ लेना देना नही। फिर कोई कुछ कल आने वाले कल की कह जाता है। कोई अनसुलझी पहेली आप के पास छोड़ जाता है।कुछ प्रश्न बना जाता है। कुछ अपने प्रस्थिति के अंदाज़े दे जाता है।कुछ सुनी सुनाई बाते बता जाता  है। आप को और उलझा जाता है। पहले भूतकाल की परेशानी कम नही हो रही भविष्य की परेशानियां नज़र हो गयी। डर भीतर का डर और बढ़ जाता है। हो क्या रहा है बचपन से बड़े होने तक परिवार से ले सब चाहने वालों ने भविष्य की उम्मीद में आप को अपने आज के पास आने नही दिया होता। या आते हो या आ भी जाते हो तो क्षणिक अपना जीवन जीते हो और इतने में भविष्य सुधारक आप के सुख के क्षण छीन ले जाते है। आप फिर कल अच्छा होगा सोच के आशा वादी हो के भविष्य में जुट जाते हो। बड़े हो जाते हो। भविष्य माया में है सो भाग पड़ते हो रोज़ कल संवार रहे होते हो। आज को भूतकाल बना रहे होते हो। कुछ डर भविष्य के खराब होने के रोज़ जोड़ लेते हो। उलझते जाते हो । जीवन आज का शांत नही हो पाता। जो प्रसन्ता मन को रोज़ सुबह से शाम आप के आज में मिलनी चाहिए वो क्षणिक ही मिल पाती है। और वो क्षणिक भी एहसास मैं उतर नही पाती। आज गंवा डालते है। फिर कल की उम्मीद लगा डालते है। जीवन बड़ा है या छोटा ये तो हम न जान पाए न जान पायेंगे। कल होंगे या नही कभी न जान पाएंगे न समझ। तो इंतजार कोन से कल का। गम किस भूत का। जीवन रस अभी है और चल रहा है ।आज जो है वो सबसे बेहतर है। जैसे है जैसा है सबसे उत्तम है। इसमें कितनी खुशी बटोर सकते हो ये सिर्फ और सिर्फ हम पे है। पानी पी के खुश हो । एक रोटी आधी रोटी खा के तृप्त हो। सुखी मिली तो उसमें आनंद हो। सख्त बिस्तर पे लेट के नींद लगी उसमे आराम हो या फिर आज 56 पकवान मिले ढेर सी सुविधाएं मिली बेहतर गद्दे मिले सोने में उसमे भी खुश हो। समस्या दोनों स्तिथितों में खुश रहने की है या न रहने की है। मजे के बात ये है ज्यादातर दोनों ही इंसान अपनी स्तिथि में खुश नही रह पाते। येही बस व्यथा है। आज तो हमारा है। जो बीत गया सो बीत गया कल किसी ने देखा नही ।ये पल तो चल रहा है ये ई बस अपना है। जियो इसे जी भर के हँसो इसमें खुल के प्रेम करो इसमें टूट के।येही जीवन रस है। आज  अब और अभी केवल तुम्हारा है।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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