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हिम्मत एक ऐसा शब्द है जो अगर किसी की भी रगों में है वो शायद सबसे अमीर आदमी है। हिम्मत के बारे में खूबसूरती से लिखा गया है" हिम्मते मर्दा मददे खुदा" । मतलब बड़ा स्पष्ट है जो हिम्मत करता है उसकी मदद ख़ुदा भी करता है। हिम्मत एक ऐसा जस्बा है जो इंसान में कुछ भी कर गुजरने की क्षमता पैदा कर सकता है। राजा भगीरथ माँ गंगा को स्वर्ग से उतार लाये और शिव की जटाओं से होती हुई गंगा पृथ्वी लोक में आई और भगीरथ के पीछे पीछे सागर तक पहुंच गई। तीन पीढ़ियों बाद महाराज सगर के पुत्रों का उद्धार किया। ये महाराज भगीरथ के कठिन तप करने की हिम्मत से ही सम्भव हुआ । ब्रह्मा खुश हुए और उन्हें माँ गंगा को पृथ्वी पर लाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। मानो तो गंगा मैया आज तीनो लोको में बहती है इसलिए त्रिपथगा भी कहलाती है। हिम्मत तो महाराज भगीरथ की ही थी। हिम्मत ने ही एवेरेस्ट को पहली बार फतेह करने में शेरपा तेनजिंग और एडमंड हिलेरी की 29 मई 1953 को मदद की। और दोनों ने मिलकर विश्व की छत पे विजय प्राप्त कर ली। कोलम्बस ने हिम्मत की और 1492 से 1506 में चार अमेरिका की तरफ खोजी यात्राएं कर डाली और एक व्योपारिक खोज को जन्म दे दिया। इतिहास कायम कर दिया। इसी तरह 20 जुलाई सन 1969 को एक इतिहास रचा गया। नील आर्मस्ट्रांग और बज्ज एल्ड्रिन ने चांद पे कदम रख दिया। वैज्ञानिकों ने अपोलो 11 बना कर एक हिम्मत बांधी और नील और बज्ज ने अपनी अंदरूनी हिम्मत से डर को पीछे छोड़ चांद पे कदम रख दिया। हिम्मत से इंसान ने समुंद्र नाप दिए। हिम्मत से इंसान ने तैर कर इंग्लिश चैनल पार कर लिया। हिम्मत से इंसान ने हवा में उड़ते पंछी को देख उड़ान भर डाली। हिम्मत से नदियां बांध दी। पहाड़ नाप दिये।जंगल छान दिए। पाताल लोक की स्वर्णिम दुनिया दिखा दी।लावे की नदी पे कदम रख दिए। समुंद्र की गहराईं में गोता लगा दिया। उतरी दक्षणी ध्रुव नाप दिए। जानवर साध दिये। शेर को पालतू बना दिया। ध्वनि की रफ्तार से तेज़ उड़ लिया। ये तो आकाश धरती पाताल की बात हुई। सितारों पे पहुंच बन रही है। समाज में भी कितने उधाहरण है हिम्मत के। हिम्मत की तो एक अम्बेडकर, नेल्सन ,गांधी, अब्राहिम लिंकन समाज में उठ खड़े हुए। एक हिम्मत ने हिटलर बना दिया दूसरी हिम्मत ने हिटलर मिटा दिया। ध्यान चंद ने रेल की पटरी को ही अपना सीखने का मैदान बना दिया और ओलिंपिक 1928 1932 1936 में गोल्ड मैडल जीता दिया। अनगिनत हिम्मतों के उधाहरण हैं। ये हिम्मत ही हमारा असल जस्बा है।ये हमारी दिशा और जीत तेह करता है।हिम्मत आप के डरों के पीछे छोड़ देती है। एक साहस का संचार हो विजय यात्रा आरम्भ होती है। "डर के आगे ही जीत है" ये पुरानी और सदा नवीन कहावत है। हर युग में अपने निशान छोड़ती आयी है। ये हिम्मत ही है जो और जानवरों के बीच से मनुष्य को आज यहां तक यात्रा पे ले आयी है। जीवन में परेशानियाँ बहुत होंगी पर हिम्मत ही है जो हर हाल में आप को हल देंगी और पार लगाएंगी।हिम्मती बनिये मंजिलें आप के इंतज़ार में है।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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🌹🙏🏼🎊🎊🎊😊🎊🎊🎊✍🏼🌹 आज एक रस्म पगड़ी में गया हमारे प्यारे गोपाल भैया की।बहुत अच्छे योगाभ्यासी थे।रोज सुबह योगा सेवा में योग की कक्षा भी लगाया करते थे।बहुत शुद्ध साफ निर्मल तबीयत के और बेहद अच्छे व्यक्तित्व के मालिक थे। उम्र रही तक़रीबन 56 साल।एक गम्भीर बीमारी ने एक जीवन असमया लील लिया।पारिवारिक संबंध है हमारे।उनके पुत्र को देख के मुझे 26 जुलाई 2009 की याद आ गयी।मेरे पिता जी की मृत्यु हुई और हमारे यहां रस्म पगड़ी तेहरवीं पे ही होती है।ये उत्तर भारत के रस्मों रिवाज का हिस्सा है।पिता के बाद घर मे ज्येष्ठ पुत्र को आधिकारिक रूप से परिवार का मुखिया बनाया जाता है।समाज के सामने और जो पगड़ी बांधी जाती है सारा समाज जो वहां उपस्थित होता है अपने स्पर्श से पगड़ी को अधिकार सौंपता है। थोड़ा संकलित ज्ञान इसपे ही हो जाये।रस्म पगड़ी - रस्म पगड़ी उत्तर भारत और पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों की एक सामाजिक रीति है, जिसका पालन हिन्दू, सिख और सभी धार्मिक समुदाय करते हैं। इस रिवाज में किसी परिवार के सब से अधिक उम्र वाले पुरुष की मृत्यु होने पर अगले सब से अधिक आयु वाले जीवित पुरुष के सर पर रस्मी तरीके से पगड़ी (जिस
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