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कटाक्ष।

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कटाक्ष करना एक बुरी आदत है। छींटा कशी उलाहना तंज कसना
ये हमेशा द्वेष पूर्ण रहा है। किसी के प्रति बुरे भाव हमेशा इसके कारक। हम बहुत सी बातें अपने मन में पाले रहते है। उनको  बहुत समय तक भीतर ही भीतर जीते है। कटाक्ष करते किन पे हैं देखें तो ज्यादतर अपनो पे ही। जहां और जिन के बीच  हम अपना जीवन सुख के लिये जीते है वहीं हम ये सब कर रहे होते है। ज्यादातर अपने सगों दोस्तों के बीच।रिश्तों में इन सब के लिए बहुत जगह होती है बशर्ते रिश्ते प्रेम पूर्ण हों और नज़रअंदाज़
करने की ढेर सी गुंजाइश हो।द्रोपदी का दुर्योंधन को किया गया कटाक्ष दो परिवारों को बहुत मेंहगा सबित हुआ। परिवार मेंरिश्ते अच्छे न हों तो छोटी सी बात भी चुभ जाती है। कुछ समझदार इसे सामने वाले कि अज्ञानता समझ भूल जाते है औरअपने रिश्तों को सहेज़ के रखते है। भाई भाभियों के रिश्तोंमें बड़ी खटास का कारण ये है। भाईयों भाईयों में आपस मेंबड़पन दिखाने की होड़ और एक अनजान घर पे सत्ता की चाहत दूसरा बड़ा कारण है।कटाक्षों से बेहद करीब दोस्त भी घायल हो जाते है। कटाक्षनकारत्मक रवैया है अपनी बात पहुंचाने का। कई लोग तो आप पे कटाक्ष सिर्फ इसलिए भी करेंगे कि आप का ध्यान आकर्षित किया जा सके। घूम फिर के लोग इसमे अपनी मेहत्ता का ही प्रदर्शन कर रहे होते है। अपने को ऊपर रखने की चाह से ओत प्रोत होते है।आप को अपने हिसाब से चलने के लिये उकसाते है। आप पे भावनात्मक अत्याचार करते है। आप को किसी भी कीमत पे अपने सामने या अपने लिए अपनी तरह से अपने तरीकेसे झुकाना चाहते है। घर के बड़े बुजर्ग इसका सबसे ज्यादा इस्तेमाल करते है।बच्चा बड़ा हो गया बच्चे के बच्चे हो गये और कहीं कहीं तो अपने बच्चों के बच्चों के बच्चे भी हो जाते है फिर भी सुनने को मिल ही जाता है" इतना बड़ा हो गया पर जीने की अक्ल नही आई" । सास बहू इस काम में सबसे आगे और  उनका यह पूर्ण कालिक पेशा होता है। खाना बनाने से लेकर घर की साफ सफाई सज़्ज़ा घर खर्च खरीदारी कबाड़ बेचने तक में एक दूसरे की कमी देख ताने मारती नज़र आ जाती है। सब सूक्ष्म रूप में होता है जरा कान खड़े रखने पड़ते है तभी समझ पड़ती है। जहां जिस घर में समझदारी है और खुशनुमा माहौल है वहां आप के पहुंचने से पहले सुलह ज्यादातर हो चुकी होती है।और जहां विपरीत स्तिथि होती है वहां जिसके कमरे में चले गए दिमाग का दही कर के ही बाहर निकल
पाते हो। यहां भी समझदार चेहरे पे मुस्कुराहट और कान बन्द कर
लेते है।माता पिता बच्चों की अपने हिसाब से कुछ और बेहतर बच्चों से तुलना करना नही छोड़ते और बहुत से तंज जाने अनजाने कस देते है।बच्चे ज्यादातर मन मनोस के रह जाते है। क्रोध पर पनपाता रहता है। झललाहट कभी न कभी निकल जाती है।रिश्तेदार शादियों में इसका बहुत प्रदर्शन करते पाये जाते है। राजनीति में ये बहु उपयोगी साबित होते आया है। राजनीतिक लोग इस मामले में सबसे समझदार क़ौम है। सारा दिन तंज कसते है और शाम को साथ हंसखेल रहे होते है।सीखने के लिए काफी है। पर रिश्तों की डोर बड़ी कच्ची सी होती है।थोड़े से ही छोटे से वार से ही टूटने का खतरा बना रहता है। न जाने कोन सी बात कब किसको लग जाये और आप से मन ही मन एक बैर पाल ले।और डोर टूटी तो गांठ डल के ही जुड़ती है। इसलिए कटाक्ष करने से पहले सौ बार सोचें। दूसरा अपने अंदर कटाक्ष को झेलने और भूलने की क्षमता पैदा करें। कई बार मनुष्य वक़्ती परेशानियों के चलते भी कुछ बोल जाता है। और शायद उसके मन में कोई द्वेष नही होता और वक़्ती क्रोध ये करा डालता है। समझदार इसे भांप के धुएं में उड़ा देते है। येही क्रोध शांत होने पे गलती का आभास होते ही क्षमा प्रार्थी हो जाता है। बस जरा थोड़ी सी समझदारी दिखाने की जरूरत है। कटाक्ष भी  हो गया रिश्ता भी रह गया गुस्सा भी निकल गया। दोनों ही परिपक्कव साबित हो गए।कुछ आस पास होते देखा तो लिखा।कुछ इस स्तिथि में से गुजरा तो बयां किया। सबके अपने अपने तजुर्बे है । राय भिन्न हो सकती है। कुछ लोग कटाक्ष किसी को सुधार के लिए भी करते है। पर् कामयाब शायद ही हों पाते है। समझदारी सब जगह बराबर नही हो सकती न। सो मित्रो कटाक्ष के भाव समझो अपने जीवन में तूफान लाने की जरूरत नही। अपने से किसी पे कटाक्ष न हो ये जरूर मजबूती से तेह और पालन करो।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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