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फिर एक साल खत्म होने को है। हर तरफ हर एक कोई अपनी तरह से जाते साल और आते नए साल का स्वागत अपनी अपनी तरह से करने को तैयार है। कुछ घर पे महफिल सजाये है। कुछ चुनींदा स्थानों होटलों में अपने नए साल के जश्न में जाने को बेकरार हैं। कुछ धार्मिक कार्यक्रमों में व्यस्त हैं और कुछ अपने को धार्मिक कार्यक्रमों से नए साल में ले जा रहे है। कुछ खाने के शौकीन कुछ पीने के, कुछ नाचने के तो कुछ आतिशबाजी के। सब अपने को अपने तरीके से नए साल में ले जा रहे है। कुछ मुड़ के पीछे साल का पूरा आंकलन भी कर रहे हैं। कुछ सब भूल के आगे बढ़ रहे है। कुछ नई उपलब्धियों की तैयारी में है। कुछ का साल हर बीते सालों की तरह बीत रहा है। कुछ नया नही जिंदगी बस यूं ही बीत रही है। कुछ बेहद नए बदलाव देख रहे है। कुछ की अपेक्षाएं बहुत बढ़ गयी है। एक बड़ा तबका ज्योतिष पे आस लगाये बैठा है।बस कल सुबह भाग्य किस करवट बदलेगा उसके आंकलन में जुड़े हैं। बहुतों ने नये जीवन का आरम्भ विवाह बंधन में बंध कर किया है। जीवन का ये समय सबसे ऊंची उड़ान पे है। एक दूसरे से आशाएं बांध रहे है। एक दूसरे से कुछ प्रतिबद्धता की उम्मीद बांध रहे है। कुछ के यहां नया जीवन आया है। उनकी उड़ान को जिंदगी ने नए पंख दे दिए है। एक तरफ जिंदगी बेहद खूबसूरत मंजर दिखा रही है। एक दूसरी जगह भी है। फुटपाथ। जहां कोई नई करवट नही। कोई नई आस नही। कोई खुशी मनाने के लिए जेब नही। फिर भी एक और रात रोज़ की तरह बीत ही जाएगी। जब आधी रात आकाश में आतिशबाजी होगी तो वो गरीब भी अपने फटे कंबल ओढे देख रहा होगा। शायद कुछ खुशी महसूस कर रहा होगा। सब खुशहाली की कामना तो यूं भी करते ही है भले ही आज जेब जितनी भी खाली हो।कल पे उम्मीद तो सबकी है। कभी तो अपने मन का दिन भी आयेगा? जब मन झूम के नाचेगा गयेगा। जब भी जिंदगी ऐसे ही भाग रही थी जब साल पता नही थे और तो भी जीवन की रफ्तार यूं ही कायम थी ।अब कई गणनाओं के साल है और अपनी तरह से खूब मनाये जाते है। जो खुशहाल है वो मस्त है जो बदहाल है उसकी उम्मीद का नया एक बार फिर से साल है। और यू ही जिंदगी भाग रही है। इंसानों में तो दौड़ लगी है बाकी जीव जंतु जानवर पक्षी आज आधी रात को रोज़ की तरह जिंदगी बिताएंगे और सुबह अपने काम पे निकल जाएंगे। कमाल है ना इंसान हुए और प्राकृतिक चक्र समझ लिया।जीवन से बोर हुए तो खुशियां मनाने के बहुत से दिन त्योहार ढूंढ़ लिए। अब किया भी क्या जाए ये जो दिमाग है कि सोच सोच के ही जीवन को प्रयत्न शील किये हुए है। साल हमने नाप के रच दिया पृथ्वी ने घूम के पूरा कर लिया । किसी की इसकी समझ भा गयी और इसके मनाने का रास्ता भी ढूंढ़ लिया। आज शायद इंसान की भाषा में जिसे भाग्य कहें तो माता ने नए साल के आगाज़ में अपने जगराते की जोत के दर्शन को बुला लिया। सोच भाग्य साथ साथ बस येही शायद इस साल की सबसे बेहतर देन है।इस साल ने कुछ खास तो दे हो दिया। अपने भीतर एक नए इंसान को भी ढूंढ़ लिया। भाग्य से आज का दिन वैसे भी शुभकामनाओं को समर्पित रहता है। आज हमारी अर्धांगिनी का जन्मदिन भी है और देखो पूरी दुनिया अपने अपने तरीके से खुशी में डूबी है। आज सोच ही रहे थे कहाँ जायें और एक साथ कुछ बेहतर समय बितायें। माता ने याद कियाऔर दावत पे भी बुला लिया।भाग्य सोच साथ साथ। येही आज के दिन का सबसे बेहतर वक़्त रहा । आप सब भी ढेर सी शुभकामनाओं के साथ नये साल में प्रवेश करें। येही मेरी कामना है।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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🌹🙏🏼🎊🎊🎊😊🎊🎊🎊✍🏼🌹 आज एक रस्म पगड़ी में गया हमारे प्यारे गोपाल भैया की।बहुत अच्छे योगाभ्यासी थे।रोज सुबह योगा सेवा में योग की कक्षा भी लगाया करते थे।बहुत शुद्ध साफ निर्मल तबीयत के और बेहद अच्छे व्यक्तित्व के मालिक थे। उम्र रही तक़रीबन 56 साल।एक गम्भीर बीमारी ने एक जीवन असमया लील लिया।पारिवारिक संबंध है हमारे।उनके पुत्र को देख के मुझे 26 जुलाई 2009 की याद आ गयी।मेरे पिता जी की मृत्यु हुई और हमारे यहां रस्म पगड़ी तेहरवीं पे ही होती है।ये उत्तर भारत के रस्मों रिवाज का हिस्सा है।पिता के बाद घर मे ज्येष्ठ पुत्र को आधिकारिक रूप से परिवार का मुखिया बनाया जाता है।समाज के सामने और जो पगड़ी बांधी जाती है सारा समाज जो वहां उपस्थित होता है अपने स्पर्श से पगड़ी को अधिकार सौंपता है। थोड़ा संकलित ज्ञान इसपे ही हो जाये।रस्म पगड़ी - रस्म पगड़ी उत्तर भारत और पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों की एक सामाजिक रीति है, जिसका पालन हिन्दू, सिख और सभी धार्मिक समुदाय करते हैं। इस रिवाज में किसी परिवार के सब से अधिक उम्र वाले पुरुष की मृत्यु होने पर अगले सब से अधिक आयु वाले जीवित पुरुष के सर पर रस्मी तरीके से पगड़ी (जिस
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