सर्वप्रथम आज के शुभ दिन पे सब मित्रों को बहुत बहुत बधाई।गणतन्त्र दिवस हमारा राष्ट्रीय पर्व है जो हम 26 जनवरी को मनाते है। इसी दिन सन् 1950 को भारत सरकार अधिनियम (एक्ट) (1935) को हटाकर भारत का संविधान लागू किया गया था। एक स्वतंत्र गणराज्य बनने और देश में कानून का राज स्थापित करने के लिए संविधान को 26 नवम्बर 1949 को भारतीय संविधान सभा द्वारा अपनाया गया और 26 जनवरी 1950 को इसे एक लोकतांत्रिक सरकार प्रणाली के साथ लागू किया गया था। 26 जनवरी को इसलिए चुना गया था क्योंकि 1930 में इसी दिन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आई० एन० सी०) ने भारत को पूर्ण स्वराज घोषित किया था। यह भारत के तीन राष्ट्रीय अवकाशों में से एक है, अन्य दो स्वतंत्रता दिवस और गांधी जयंती हैं।गणराज्य एक ऐसा देश होता है जहां के शासनतन्त्र में सैद्धान्तिक रूप से देश का सर्वोच्च पद पर आम जनता में से कोई भी व्यक्ति पदासीन हो सकता है। इस तरह के शासनतन्त्र को गणतन्त्र कहा जाता है। "लोकतंत्र" या "प्रजातंत्र" इससेअलग होता है। लोकतन्त्र वो शासनतन्त्र होता है जहाँ वास्तव में सामान्य जनता या उसके बहुमत की इच्छा से शासन चलता है। आज विश्व के अधिकान्श देश गणराज्य हैं और इसके साथ-साथ लोकतान्त्रिक भी। भारत स्वयः एक लोकतान्त्रिक गणराज्य है। ये ही हमारे संविधान रचेताओं की उम्मीद थी। आज 69 वां गणतंत्र दिवस धूम धाम से मनाया गया। हमारे लोकतंत्र की मजबूत नीवं का परिणाम आज हमारे सामने तिरंगे को सालामी देते दिखे। संविधान निर्माताओं ने जो बारीकी से काम किया था उसका आज हमारा मुल्क प्रगति की राह पे खूब लाभ उठा रहा है।सदियों से दबा कुचला समाज आज विश्व के लिये एक उधाहरण बन रहा है।सभी चुनौतिओंको लांघते हुए आज हम दुनियाके सबसे प्रगतिशील मुल्क कहलाये जा रहे है।दुनियासे कंधे से कंधा मिला कर चल रहे है।हमारे नीति निर्माताओं ने हमे एक बेहद मजबूत नींव पे खड़ा कर दिया है।समस्याएं सब जगह है जाहिर है यहाँ भी है।और ये समस्याएं रूप बदल बदल के आती जाती रहेंगी।हम इसपे अपनी प्रतिभा और लचक से पार पा प्रगति के पथ पे अग्रसर होते रहेंगे। भगवान बहुत से है इंसान एक ही है।इंसान बहुत से है तो जीने के लिए केवल वायु ही है। कुल मिला के पांच अरब दुनिया इंसानों की है।जो पृथ्वी पे बहुत सी बस्तियां बसाये है जिन्हें हम आज देश कहते है।सूरतें अलग है शरीर का तंत्र एक ही है।तो अपनी बस्ती में ही इंसान को इंसान का औदा दे दिया जाये तो शायद सारी विषमताएँ एक तरफ रह जाएं और हम सच में एक ही इंसान बन जाएं।सोच का विषय है।ये गणतंत्र से लोकतंत्र की यात्रा 72 सालो से जारी है।इसे अगली सदियो तक अगर जारी रखना है तो इंसान को इंसान का दर्जा और हक पूरी आजादी से बराबर देना होगा।कोई गुंजाइश नही छोड़नी होगी। ये इबारत मजबूती से लिखी गयी है। इमारत बेहद खूबसूरत है।जो कोई कोना खाली छूट भी गया है उसे भरने के लिए सरकार हमेशा है।अपना अपना धर्म पूरी ईमानदारी से निभाइये और सदा इस लोकतंत्र के मंदिर में सुख के गीत गाईये।चैन की सांस लीजीये। प्रेम की अनुभूति पाइये।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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🌹🙏🏼🎊🎊🎊😊🎊🎊🎊✍🏼🌹 आज एक रस्म पगड़ी में गया हमारे प्यारे गोपाल भैया की।बहुत अच्छे योगाभ्यासी थे।रोज सुबह योगा सेवा में योग की कक्षा भी लगाया करते थे।बहुत शुद्ध साफ निर्मल तबीयत के और बेहद अच्छे व्यक्तित्व के मालिक थे। उम्र रही तक़रीबन 56 साल।एक गम्भीर बीमारी ने एक जीवन असमया लील लिया।पारिवारिक संबंध है हमारे।उनके पुत्र को देख के मुझे 26 जुलाई 2009 की याद आ गयी।मेरे पिता जी की मृत्यु हुई और हमारे यहां रस्म पगड़ी तेहरवीं पे ही होती है।ये उत्तर भारत के रस्मों रिवाज का हिस्सा है।पिता के बाद घर मे ज्येष्ठ पुत्र को आधिकारिक रूप से परिवार का मुखिया बनाया जाता है।समाज के सामने और जो पगड़ी बांधी जाती है सारा समाज जो वहां उपस्थित होता है अपने स्पर्श से पगड़ी को अधिकार सौंपता है। थोड़ा संकलित ज्ञान इसपे ही हो जाये।रस्म पगड़ी - रस्म पगड़ी उत्तर भारत और पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों की एक सामाजिक रीति है, जिसका पालन हिन्दू, सिख और सभी धार्मिक समुदाय करते हैं। इस रिवाज में किसी परिवार के सब से अधिक उम्र वाले पुरुष की मृत्यु होने पर अगले सब से अधिक आयु वाले जीवित पुरुष के सर पर रस्मी तरीके से पगड़ी (जिस
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