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आज ऐसे ही एक शब्द मन में बार बार आ रहा है।"भव्य"। इसे बेहतर ढंग से समझने के लिए मैंने इसके समानार्थी शब्दों को पढ़ा। ये सकारत्मक और नकारत्मक पहलू लिए हमेशा रहती है इसकी समझ पैदा हुई। जब इसे पढ़ा तो कितने समानार्थी शब्द निकले पढ़िये आप भी ।अतिरंजित, अनर्गल, विपुल, अत्यंत, असंयत, आडंबरपूर्ण, अपार, अति, व्यापक।.अभिमानी, कपटी दिखावटी, गर्वित दिखावटी।.अमीर, संपन्न अच्छी तरह से, धनी जीवनस्तर, समृद्ध, सजीले।औपचारिक, ऊंचा, सुवक्ता, उदात्त, ।तेजतर्रार, देदीप्यमान ,प्रधान, मुख्य, प्रमुख, अग्रणी, उच्चतम, प्रभावशाली, राजसी, शानदार, यादगार, विशाल, महत्वाकांक्षी। महान, पराक्रमी, ।प्रचुर, भरपूर, उदार, विलासी, खर्चीला, असंख्य, असाधारण।शानदार मनोरंजक, सराहनीय ।सुंदर, रमणीय, मनोरंजक गज़ब। अब मैं इसके सकारत्मक पहलू या विषय भी ही बात करूंगा ये सब भव्यता लिए है।कुछ विषय विशेष है कुछ संज्ञात्मक विशेष है। भव्यता एक तो विशालता को प्रतिबिंबित करती है दूसरा ये विस्तार बताती है।इमारतें भव्य रूप लिए होती है ।ईश्वर इष्ट पूजनीय की मूर्तियाँ भव्य रूप दर्शाती है।बहुत से आयोजन भव्यता लिए होते है।बहुत से धार्मिक स्थल भव्यता के प्रतीक बन जाते है। बहुत से नज़ारे भव्यता लिये होते है।हृदय और बुद्धि भव्य है। माता की ममता भव्य है। पिता का सानिध्य भव्य है।भाई बहन की प्रीत भव्य है।इसी तरह चंद्रमा से आती शीतल रोशनी भव्य है।सूर्य का प्रकाश अतिभव्य है। बरसते मेघ रोमांचक रूप लिये भव्य है।मनुष्य योनि प्रकृति में सर्वथा भव्य है। पैसा धन दौलत अपने आप में भव्यता का प्रतीक है।खेतों में उगति फसल किसान के लिए भव्य है। कुंदन कीर्ति लिए भव्य है। हीरे मोती जवाहरात और उनसे बने गहने स्त्री के लिए भव्य है। इंसान में कला भव्य है।इसी तरह कलात्मकता सोच भी भव्य है। भव्यता अत्यंत मोहक है।भव्यता निश्चित ही विशाल है।भव्यता पूर्णरूप से समग्र व्याप्त है।भव्यता वीरों के पराक्रम में भी है।भव्य समूह में उत्कृष्ट है। भव्यता ईश्वर रूप में अलौकिक है। भव्यता सबको समानरूप से आकृष्ट करती है।भव्यता हमेशा आकर्षण का केंद्र रहा है। सो जो भव्य है वो खिचाव लिए हुआ है।जो भव्य है वो बुलंदी का प्रतीक भी जरूर है।जो भव्य है वो समग्र भी है।भव्य उच्च स्थान की प्राप्ति की प्रेरणा लिए भी है। भव्यता मंत्र मुग्ध करने की क्षमता से पूर्ण है। हमारे आसपास बहुत से आयोजन होते रहते है और लिखा भी रहता है 'भव्य आयोजन ' भव्य मंचन' ।हम इसमे खूबसूरती और विशालता को महसूस कर लेते है।क्योंकि ये मनुष्य का स्वभाव है। और इसी वजह से मनुष्य अपने भीतर बाहर भव्यता को अपने लिए ढूंढता पाया जाता है। कुछ ही लोग इसे जीवन में अपने लिए ढूंढ़ पाते है। और वे ही सफल कहलाते है। आपने आसपास ध्यान से देखोगे तो बहुत से भव्य किरदार देखने
को मिल जाएंगे।आप भी अपनी भव्यता ढूँढिये।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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🌹🙏🏼🎊🎊🎊😊🎊🎊🎊✍🏼🌹 आज एक रस्म पगड़ी में गया हमारे प्यारे गोपाल भैया की।बहुत अच्छे योगाभ्यासी थे।रोज सुबह योगा सेवा में योग की कक्षा भी लगाया करते थे।बहुत शुद्ध साफ निर्मल तबीयत के और बेहद अच्छे व्यक्तित्व के मालिक थे। उम्र रही तक़रीबन 56 साल।एक गम्भीर बीमारी ने एक जीवन असमया लील लिया।पारिवारिक संबंध है हमारे।उनके पुत्र को देख के मुझे 26 जुलाई 2009 की याद आ गयी।मेरे पिता जी की मृत्यु हुई और हमारे यहां रस्म पगड़ी तेहरवीं पे ही होती है।ये उत्तर भारत के रस्मों रिवाज का हिस्सा है।पिता के बाद घर मे ज्येष्ठ पुत्र को आधिकारिक रूप से परिवार का मुखिया बनाया जाता है।समाज के सामने और जो पगड़ी बांधी जाती है सारा समाज जो वहां उपस्थित होता है अपने स्पर्श से पगड़ी को अधिकार सौंपता है। थोड़ा संकलित ज्ञान इसपे ही हो जाये।रस्म पगड़ी - रस्म पगड़ी उत्तर भारत और पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों की एक सामाजिक रीति है, जिसका पालन हिन्दू, सिख और सभी धार्मिक समुदाय करते हैं। इस रिवाज में किसी परिवार के सब से अधिक उम्र वाले पुरुष की मृत्यु होने पर अगले सब से अधिक आयु वाले जीवित पुरुष के सर पर रस्मी तरीके से पगड़ी (जिस
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