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नारी सशक्तता काफी वर्षों से हमारे समाज में गम्भीर मुद्दा रहा है।एक वक़्त कहावत थी"ढोर ग्वार शुद्र और नारी ये सब ताड़न के अधिकारी"। जब कही गयी ज्यादतर समाज का बड़ा हिस्सा अनपढ़ था।उस समय के समाज के जो प्रतिष्ठित धंभी लोग बोल देते थे लोग उसे जीवन में उतार लेते थे। अनपढ़ और बेरोजगार एक ही कड़ी में है।दोनों लाचार और भीतर से क्रोधित।एक तरफ देवी को पूजते है और माँ भगवती के लोक को सबसे ऊपर मानते हैं और दूसरी तरफ घर की स्त्री का अपमान।संविधान की भूमिका लिखते वक्त भी भगवान और देवी को लेकर संविधान सभा में विवाद हो गया था। बंगाली भाई देवी के वर्णन से संविधान की शुरुआत चाहते थे ।बड़ी विडंबना हो गयी थी।तो निर्माताओं ने आम आदमी की आवाज़ ही शामिल कर दी। भगवान और देवी अपने ही भक्तों के भक्ति विवाद संविधान की भूमिका कल्पना से बाहर हो गए। हम लक्ष्मी जी सरस्वती जी दुर्गा माँ अनेकों अनेकों रूप में भजते है।ज्ञान की शुरुआत बच्चे में माँ सरस्वती के ध्यान से की जाती है।फिर खूब धन के लिए लक्ष्मी माता का पूजा अर्चन भी करते पाये जाते है। ध्यान से देखें तो पुरुष समाज ज्यादा देवी भक्त है। और महिला समाज भगवान भक्त।भगवान ने भी इसी का इस्तेमाल किया अपने लिये। भगवान श्री कृष्ण राधे से ज्यादा जाने जाते है और दुनिया के मुँह से राधे राधे कहलवाते है।स्त्री अग्रणी रखी गयी है इसलिए प्रथम ईश्वर अपनी अर्धांगिनी के नाम के बाद ही अपना नाम सुनना पसंद करते हैं। राधे कृष्ण लक्ष्मी नारायण सीता राम उमापति महादेव की जय के उदघोष इसका सबूत है।ईश्वर की कल्पना ने भी पहले नारी का सम्मान अपने से ऊपर रखा है।नारी हिन्दू समाज में युगों से पूजनीय रही है।फिर एक ऐसा वक्त भी आया जब ज्ञान ध्यान से हट के समाज भ्रमित हो गया और बहुत सी राजशाही के दौर में कुचला गया। समाज को अंधेरों में हमारे ही राजाओं ने पहले धकेला फिर आक्रांताओं ने इसका भरपूर फायदा उठाया । इसे और दबा दिया। वक़्त बुरे से बदतर हो गया। मनुष्य योनि में मर्द ने एक धम्भी अभिमानी क्रूर मर्द का रूप धारण कर लिया। इस दौर में भी ज्ञानी अच्छे मर्द रहे।समाज गरीब हो गया।जो देश सोने की चिड़िया कहलाता था वो लूट लिया गया।कुछ अपनो ने लूटा और कुछ बाहरियों ने।दबा मर्द अस्मत बचाने के लिए स्त्री पे क्रूर हो गया।और धीरे धीरे ये धम्भ और मैं में बदल गया।यहीं स्त्री के सुख का नाश हुआ।शोषण हुआ और उसे दबाने की शुरुआत हुई।ये समाज देवी भक्त भी रहा पर नारी शोषक भी बन गया। भक्ति दिखावे के दौर में पहुंच गई ।स्त्री मर्द की जूती हो गयी।फिर एक दिन आजादी का भी आया।एक महात्मा की मेहनत से लोकतंत्र की स्थापना ने इस दबे कुचले समाज को दृढ़ आवाज़ दी।एक आजादी का अनुभव कराया।कुरीतियों से मुक्ति की राह प्रशस्त हुई।शिक्षा के मंदिर खुलने लगे।समाज में धीरे धीरे जागरूकता को बढ़ावा दिया गया और जागरूकता बढ़ने लगी।स्त्रियों ने कदम से कदम मिला के आगे बढ़ना शुरू किया। राजनीति पुलिस मिलट्री से लेकर हर क्षेत्र में कदम रख दिया। मूढ़ता अब कम हो चली है।मर्दों का धम्भ अपने पांव उखड़ने से परेशान बेठा है। नारी हर क्षेत्र में परचम लहरा रही है। अपना घर भी सुन्दर शिक्षित कर ही रही है ।इससे समाज का भी उत्थान हो रहा है। राष्ट्र निरन्तर 70 सालों से प्रगति के नए आयाम छूता हुआ समानता के अधिकार का सजग प्रहरी बना हुआ है।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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🌹🙏🏼🎊🎊🎊😊🎊🎊🎊✍🏼🌹 आज एक रस्म पगड़ी में गया हमारे प्यारे गोपाल भैया की।बहुत अच्छे योगाभ्यासी थे।रोज सुबह योगा सेवा में योग की कक्षा भी लगाया करते थे।बहुत शुद्ध साफ निर्मल तबीयत के और बेहद अच्छे व्यक्तित्व के मालिक थे। उम्र रही तक़रीबन 56 साल।एक गम्भीर बीमारी ने एक जीवन असमया लील लिया।पारिवारिक संबंध है हमारे।उनके पुत्र को देख के मुझे 26 जुलाई 2009 की याद आ गयी।मेरे पिता जी की मृत्यु हुई और हमारे यहां रस्म पगड़ी तेहरवीं पे ही होती है।ये उत्तर भारत के रस्मों रिवाज का हिस्सा है।पिता के बाद घर मे ज्येष्ठ पुत्र को आधिकारिक रूप से परिवार का मुखिया बनाया जाता है।समाज के सामने और जो पगड़ी बांधी जाती है सारा समाज जो वहां उपस्थित होता है अपने स्पर्श से पगड़ी को अधिकार सौंपता है। थोड़ा संकलित ज्ञान इसपे ही हो जाये।रस्म पगड़ी - रस्म पगड़ी उत्तर भारत और पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों की एक सामाजिक रीति है, जिसका पालन हिन्दू, सिख और सभी धार्मिक समुदाय करते हैं। इस रिवाज में किसी परिवार के सब से अधिक उम्र वाले पुरुष की मृत्यु होने पर अगले सब से अधिक आयु वाले जीवित पुरुष के सर पर रस्मी तरीके से पगड़ी (जिस
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