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आज चंद्रग्रहण का दिन था।सुबह 9 बजे के आस पास सूतक के कारण मंदिरों के कपाड बन्द कर दिए गए थे।जो व्यक़्क्तित्व धार्मिक प्रवृत्ति पनपी भक्ति से ओतप्रोत थे उनका आज सुबह से ही उपवास शुरू हो गया। ग्रहण का वक़्त शाम का था। सो इस स्तिथि का पूरा आनंद और फल प्राप्त करने के लिए कुछ भक्ति में लीन हो गए कुछ कीर्तन के आनंद में समा के आनंद की प्राप्ति कर लिए। ये बेला भी अत्यंत शुभ है। माघ मास शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा और ये संयोग 176 साल बाद हो रहा है। घटनाये रोचक होती है।और ऐसी जो आप के जीवनकाल में केवल एक बार होनी हो तो देखनी बनती है। आज उसके लिए मन बना ही लिया था। वैज्ञानिक स्तिथि कैसे बनती है देखिये।चंद्रग्रहण उस खगोलीय स्थिति को कहते हैं जब चंद्रमा पृथ्वी के ठीक पीछे उसकी प्रच्छाया में आ जाता है। ऐसा तभी हो सकता है जब सूर्य, पृथ्वी और चन्द्रमा इस क्रम में लगभग एक सीधी रेखा में अवस्थित हों। इस ज्यामितीय प्रतिबंध के कारण चंद्रग्रहण केवल पूर्णिमा को घटित हो सकता है। चंद्रग्रहण का प्रकार एवं अवधि चंद्र आसंधियों के सापेक्ष चंद्रमा की स्थिति पर निर्भर करते हैं। ये पूर्ण चन्द्र ग्रहण है।हम सब जानते है ।हम सब एक चुम्बकीय क्षेत्र में वास करते है।जो भी इस सूर्यमंडल के ग्रह है वे आपस में इसी ताक़त से अपनी अपनी परिधि में बंधे चक्कर लगाते है।कोई भी बदली स्तिथि इस चुम्बिकय क्षेत्र में बदलाव लाती ही है।हमारा शरीर जाने अनजाने इससे प्रभवित होता रहता है।और हम इसका एहसास भीतर ही भीरर ध्यान देने पे ही कर सकते है।हर जातक एक विशेष दिन विशेष राशि में ही जन्म लेता है।हमारे शोधकर्ताओं ने इसे बहुत बेहतर तरीके से जयोतिष विज्ञान में कलम बध किया है।आजकल के आधे अधूरे ज्ञानवादिओं ने टी वी चैनल के माध्यमों से इसकी दुकान सजाकर इस विज्ञान का घोर अपमान कर दिया है। पर इस विज्ञान के माध्यम से एक इंसान को भली भांति समझा जा सकता है।और ऐसे ही ग्रहण काल के प्रभावों को।ग्रहण के परिणाम अच्छे बुरे राशियों के हिसाब से हो सकते है।पर एक परिणाम हमेशा अच्छा होता है।भक्ति का और दान का।ऐसे पूर्ण चन्द्रग्रहण में कई गयी भक्ति और दान का कई गुणा महत्व कहा गया है।चंद्रमा की शीतलता हमारी बुद्धि को तो शीतल करती ही है और दान का भैवव भी कई गुणा बड़ा देती है। इसके बारे में पड़ के आज चन्द्रग्रहण को पूरा देखने का मन हुआ। दुर्गा कवच दुर्गा सप्तशती अर्गला स्तोत्र का ग्रहण के आरंभ से अंत तक स्वर से गाने का पूर्ण आनंद लिया।शीतल हवा शरीर को छू रही थी।कवच के शब्द श्वासों को बांध के उच्च स्वर पे ले जा रहे थे।चंद्रमा की शीतल रोशनी एक तरफ से कम होती गयी स्वर ऊंचे होते गए।दिमाग आनंद की स्तिथि में पहुंच गया।जब चंद्रमा की रोशनी बढ़ने लगी तो आंखें निहारने लगी। श्लोक मंत्र की तीव्रता बड़ गई। कोई 40 मिनट आंखों ने घटना मुख से निकलते मंत्रों सहित देखी और एक जीवन का बेहद आनंदमय पल अपने भीतर संजो लिया। ग्रहण खत्म हुआ।स्नान आरम्भ हुआ। शुद्धि हुई दान हुआ ।और एक अदभुत घटना का शाब्दिक चित्रण आप के लिए कर दिया गया।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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🌹🙏🏼🎊🎊🎊😊🎊🎊🎊✍🏼🌹 आज एक रस्म पगड़ी में गया हमारे प्यारे गोपाल भैया की।बहुत अच्छे योगाभ्यासी थे।रोज सुबह योगा सेवा में योग की कक्षा भी लगाया करते थे।बहुत शुद्ध साफ निर्मल तबीयत के और बेहद अच्छे व्यक्तित्व के मालिक थे। उम्र रही तक़रीबन 56 साल।एक गम्भीर बीमारी ने एक जीवन असमया लील लिया।पारिवारिक संबंध है हमारे।उनके पुत्र को देख के मुझे 26 जुलाई 2009 की याद आ गयी।मेरे पिता जी की मृत्यु हुई और हमारे यहां रस्म पगड़ी तेहरवीं पे ही होती है।ये उत्तर भारत के रस्मों रिवाज का हिस्सा है।पिता के बाद घर मे ज्येष्ठ पुत्र को आधिकारिक रूप से परिवार का मुखिया बनाया जाता है।समाज के सामने और जो पगड़ी बांधी जाती है सारा समाज जो वहां उपस्थित होता है अपने स्पर्श से पगड़ी को अधिकार सौंपता है। थोड़ा संकलित ज्ञान इसपे ही हो जाये।रस्म पगड़ी - रस्म पगड़ी उत्तर भारत और पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों की एक सामाजिक रीति है, जिसका पालन हिन्दू, सिख और सभी धार्मिक समुदाय करते हैं। इस रिवाज में किसी परिवार के सब से अधिक उम्र वाले पुरुष की मृत्यु होने पर अगले सब से अधिक आयु वाले जीवित पुरुष के सर पर रस्मी तरीके से पगड़ी (जिस
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