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वेदना।

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आज एक खास मित्र के मन में वेदना का आभास हुआ।मन दुखी था किसी बेहद प्रिय के खोने का।मर्म बहुत था।शायद शब्दो में अश्रु धारा बह रही थी।मन भागने को कर रहा था।जमीन छोड़ने को दिल भी नही कर रहा था।मन अपने से भाग रहा था।अजीब से एहसास में सब कुछ डूबा था।मन में बहुत से ख्याल आ रहे  थे बस सब शायद निकलना चाह रहे थे।पर वेदना अपना स्थान बनाये रखे थी।मन  विचलित और तन असहाय ।तो शब्द एक ही था  सांसारिक चक्र के चलते वेदना से भरा मन।मित्रो वेदना का अर्थ है 'दुख' पर विशेष रूप से वेदना शब्द को प्रयोग उस समय किया जाता हे जब कोई सगा संबंधी दोस्त प्रेमी अपने प्रिय की चाहत में तरसता है और उस समय दुख का वर्णन के लिये वेदना शब्द का प्रयोग करते है।दर्द पीड़ा वेदना व्यथा पीर पीरा पिराना ये सब शब्द भिन्न भिन्न अवस्थाओं में वेदना के मर्म को समझाने के लिये इस्तेमाल होते है।वेदना क्षणिक भी हो सकती है और बेहद लंबी भी खिच सकती है।वेदना का सबसे बड़ा कारण सांसारिक हर तरह की माया का मोह है।जो सदा बना ही रहता है।भावनायें हमारे इंसान में सबसे प्रबल है।और जीवन पर्यंत हमे घेरे रहती है।इसमें छोटी सी चुभन वेदना का कारण बन जाती है।बहुत से सांसारिक रिश्ते प्रकृति के नियम से बने है पर भावनायें इसे समझाने में अपने को प्रेम वश नाकाम ही रखती है।वेदना मन रूपी दिमाग से जुड़ी इंसान की व्यथा है।जिससे वो हर समय पर पाना चाहता है और इससे बचना भी चाहता है ।इसमें डूबना भी चाहता है।कश्ती किनारा नही ढूंढती बस भावनाओं के तूफानों मैं हिचकोले खाती है।और इसमें ठहराव किसी अपने बेहद करीब इंसान के पास जा के  सांत्वना से ही आता है।वेदना में स्पर्श चिकित्सा  सबसे उत्तम साधन है।वेदना में दिल के करीबी को निगाहें ढूंढती है।उसके कंधे पे सिर रख इस वेदना रूपी भावनाओं के तूफान को बड़े आराम से रोका जा सकता है।दूसरा हम अपने को सब भीड़ से दूर ले जाएं और उफनती भावनाओ के तूफान को खुले मैदान में छोड़ दें।धीरे धीरे तूफान थम जायेगा।समय वेदना का सबसे उत्तम इलाज है।जो कर्म पे विश्वास रखता है और जो कर्मशील है उसका समय सबसे बड़ा उपचारक है।जो परिवार का हिस्सा है।वहां समय और परिवार मिल के वेदना की काट बन जाते है।जो मजबूत व्यक्तित्व का मालिक है वो एकांत में इस वेदना को दबा सकने की क्षमता रखता है और जो भावुक व्यक़्क्तित्व का मालिक है उसे परिवार सब भंवरों से बाहर ला सकता है।जो ज्ञानी व्यक्ति है वो प्रकृति के नियम को समझ के सब प्रकृति के हाथों पे ही छोड़ अपने को सदा मुक्त रखता है।और उसे कभी मरहम की जरूरत भी नही पड़ती।सहारे इसके लिए कभी मायने नहीं रखते।रिश्ते बंधन अल्पकाल का बंधन रखते है।संसार को संसार के लिए भीतर से त्याग देते है संसार में ही रहते हुए। बाहर से बंधन है भीतर से आज़ाद।अश्रु क्षण भर पहले पहल निकलते है उसके बाद सिर्फ आंखें कुछ बयां करती है।यहां वेदना मन रूपी दिमाग पे हावी नही हो पाती। भावनायें आप को बार बार रुला नही सकती।संसार को माया रूपी समझ इसमे मिली सुविधाओं को शारीरिक और समय की जरूरत समझ कर सदा भीतर से वेदना मुक्त रहता है।मित्रो हो सके तो समय के साथ इसे अभ्यास में लायें।मन को माया रूपी विकारों के अधीन जितना कम हो उतना कम रखें। तो आप को वेदना से सरोकार है भी और मन आज़ाद है भी।तो मित्रों वेदना से भागा नही जा सकता अलबत्ता उसकी  मौजूदगी से अपने को मजबूत किया जा सकता है।जिसने भी ये रास्ता अपनाया उसने वक़्त के साथ अपने को मजबूत तो किया ही मगर अपने आस पास भी इसका प्रचार कर कुछ और लोगो की वेदना को कम किया।आप भी कुछ सोचिया ऐसा और जहां कोई  आप को अति प्रिय मिल जाये उसमे भावनाओ की कशमकश को साफ कर उसपे विजय पाने का रास्ता दिजीये।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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