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ये कुछ शब्द आप ने सुने होंगे कहानियो कविताओं में।पढ़ कर सुखद एहसास भी होता है।सुकुमार नरम मुलायम चिकना मृदु मृदुल मधुर।ये एक ही एहसास को अलग अलग रूप में इंगित करते है।वो है कोमल या कोमलता को।कोमलता को उदाहरणो से भी समझा जा सकता है।जैसे कि नारी-हृदय कोमल है लेकिन केवल अनुकूल दशा में।नवजात शिशु की त्वचा अत्यन्त कोमल होती है।लता मंगेषकर की आवाज बहुत मीठी तथा कोमल है।कठिन भूमि कोमल पद गामी। कवन हेतु बिचरहु बन स्वामी।इत्यादि इत्यादि।कोमलता को और भी शुद्ध रूप से समझा जा सकता है जैसे के मुलायम नाज़ुक सुकुमार जिसको देखने, स्पर्श करने सुनने आदि से सुखद और मधुर अनुभूति हो और जो सरलता से काटा, मोड़ा और तोड़ा जा सकता हो या वह (स्वर) जो साधारण से नीचा हो उसे भी कोमलता की श्रेणी मिलती है । इसी तरह उदारता दया और प्रेम आदि सरल भावों से परिपूर्ण (हृदय) को भी कोमलता के भाव से जोड़ा जाता है। कुल मिला के मृदु भाषी मनुष्य भाषा की कोमलता समझता है। जो नर नारी मन से शुद्ध हो जिसका विवेक जागृत हो वो हृदय की कोमलता समझता है।जिसे बच्चों से अत्यधिक प्रेम।हो वो वात्सल्य में कोमलता के भाव को सदा बनाये रखता है।जिसे अपने से जुड़े तमाम रिश्तों की फिक्र हो वो रिश्तों की कोमलता समझता है।जो कोई भी महीन कारीगर हो वो धागे या धातु की कोमलता का पारखी होता है।जिसे अपने सौंदर्य की फिक्र है उसे त्वचा की कोमलता का आभास है।जिसे बेहद आरामदेह पहरावे का शौक़ हो वो वस्त्र की कोमलता को समझता है।जो आटे को सही गूंथने की कला का ज्ञान है उसे नरम आटे की नरम रोटी सेकने का पूर्ण ज्ञान है और नरम रोटी की पाक कला का माहिर है।शिशु सदैव कोमल वस्त्रों और कोमल कोमल अंगों के स्पर्श से ही खुश हो जाता है।शिशु स्वयं बेहद कोमल है।कोमलता भी जीवन में एक बेहद जरूरी रस है ।जिसे हर इंसान को सेवन करना चहिये।इससे कोमलता की जरूरत का अहसास सदैव बना रहेगा।और अपने चारों और फैले घेरे में इंसान इसे बनाये रखेगा।कोमल व्यक़्क्तित्व सदैव प्रेम से परिपूर्ण होते है।दया का भाव कूट कूट के भरा होता है।भावुक भी होते है।और शांति के दूत भी कहलाते है।उलझनों से वास्ता कम पड़ता है।जीवन में कठनाइयाँ बनी रहती है मगर कभी राह के रोड़े नही बन पाती।क्योंकि साफ व्यक़्क्तित्व हर उलझन से निकाल ले जाता है।आदमी भीतर से प्रसन्नचित रहता है।कभी किसी का बुरा भी नही सोचता सो शुद्धता बरकरार है।सामने वाला भी बुरा करने से पहले दस बार सोचता है।कोमलता एक बेहद मजबूत कवच भी है।इंसान के जीवन में ये प्रकृति से ले हर जगह भिन्न भिन्न रूपों में देखे जा सकते हैं।जानवरों में खरगोश सबसे मुलायम और कोमल है।वृक्षों से फूटती नई पतियाँ सदैव कोमलता लिये रहती है।पुष्प कोमलता का बेहतरीन उधाहरण है।कोमल वस्त्र कोमल स्त्री कोमल नाजुक शिशु नरम फल और मृदु भाषा और सोने के बिस्तर पे बिछी कोमल मुलायम चद्दर सबको समान रूप से भाती है। तो हम भी अपना व्यक़्क्तित्व जितना कोमलता से पूर्ण रखेंगे उतना हमारे आस पास माहौल मिठास भरा होगा।जितना हो सके अपने में कोमलता लाइये और कोमलता को पनपाईये।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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🌹🙏🏼🎊🎊🎊😊🎊🎊🎊✍🏼🌹 आज एक रस्म पगड़ी में गया हमारे प्यारे गोपाल भैया की।बहुत अच्छे योगाभ्यासी थे।रोज सुबह योगा सेवा में योग की कक्षा भी लगाया करते थे।बहुत शुद्ध साफ निर्मल तबीयत के और बेहद अच्छे व्यक्तित्व के मालिक थे। उम्र रही तक़रीबन 56 साल।एक गम्भीर बीमारी ने एक जीवन असमया लील लिया।पारिवारिक संबंध है हमारे।उनके पुत्र को देख के मुझे 26 जुलाई 2009 की याद आ गयी।मेरे पिता जी की मृत्यु हुई और हमारे यहां रस्म पगड़ी तेहरवीं पे ही होती है।ये उत्तर भारत के रस्मों रिवाज का हिस्सा है।पिता के बाद घर मे ज्येष्ठ पुत्र को आधिकारिक रूप से परिवार का मुखिया बनाया जाता है।समाज के सामने और जो पगड़ी बांधी जाती है सारा समाज जो वहां उपस्थित होता है अपने स्पर्श से पगड़ी को अधिकार सौंपता है। थोड़ा संकलित ज्ञान इसपे ही हो जाये।रस्म पगड़ी - रस्म पगड़ी उत्तर भारत और पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों की एक सामाजिक रीति है, जिसका पालन हिन्दू, सिख और सभी धार्मिक समुदाय करते हैं। इस रिवाज में किसी परिवार के सब से अधिक उम्र वाले पुरुष की मृत्यु होने पर अगले सब से अधिक आयु वाले जीवित पुरुष के सर पर रस्मी तरीके से पगड़ी (जिस
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