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ड्राइवर की नौकरी भी बहुत सख्त होती है।ड्राइवर सड़क का मल्लाह होता है।एक नींद की लहर आयी तो समझो कश्ती पलटी।आज सुबह एक शहर से अपने गन्तव्य के लिये बस पकड़ी। बस चल पड़ी।धुआंदार ड्राइवर।शहर में भी 90 की स्पीड।सवारी भरनी थी तो साथ क़ी बसों को पीछे छोड़ अपनी बस भर ली।वाह मुझे भी अच्छा लगा।और लगा समय पे गंतव्य पे पहुंचा देगा।शहर छोड़ते ही खुली सड़क पर बस हवा से बातें करने लगीं।क्या तो दूसरी बसें और क्या तो सडक पे दौड़ती दूसरी कारें भाई की बस सबसे आगे।मजा आ रहा था।कभी बस दायें से आगे कभी बायें से आगे ।कभी हम सीट पे दायें खिसकते कभी बायें।बस लहराती हवा से बातें कर रही थी।समय से पहुंचने का इत्मीनान था सहसा आंख लग गयी।कुछ देर बाद तेज़ ब्रेक लगी।एक झटके से आगे गये।एक ऑटो वाला बस के आगे अचानक आ गया था ऐसा लगा।हुआ कुछ नही।और बस दौड़ पड़ी ।इतने में मेरी नज़र ड्राइवर के सामने लगें शीशे पे पड़ी।इस शीशे से ड्राइवर पीछे बस में सवारियों पे नज़र रखता है।शीशे पे नज़र पड़ते ही मुझे अपनी दो बेहद खतरनाक सी यात्रा किं यादें ताज़ा हो आयी।ड्राइवर ऊंघते हुए बस चला रहा था।बस में लगभग 45 सवारियां तो थी ही।बस भी तेज भाग रही थी।ड्राइवर की आंख बंद होती और फिर खुलती।बस इस बीच कभी दायें भागती कभी बायें पर ड्राइवर के हाथ में नियंत्रण पूरा था।स्पीड कम नही हों रही थी। फिर वो आंख मलने लगा।बस दौड़ रही थी।फिर एक हरयाणवी स्टाइल में बीड़ी निकाली और चलती बस में सुलगा ली।लंबे लंबे कश मारे।मगर शरीर साथ नही दे रहा था।फिर अपनी सीट के पीछे लगी जाली को एक हाथ से पकड़ पूरी जोर से बदन को अंगड़ाई दिलवाई।एक हाथ स्टीयरिंग पे बरकरार था।थोडी सी चुस्ती आयी।मगर चार पांच मिनट बाद स्तिथि फिर वैसे ही।ड्राइवर के जिम्मे 45 जाने और ड्राइवर के नींद से लड़ाई मुझे देखते 40 किलोमीटर के लगभग हो गये।आंखों का मलना भी काम नही आया बीड़ी बेअसर हो गयी अंगड़ाई भी अब फेल थी अब पानी की बारी आई।इस बीच सबसे आगे वाली के
सीट पे बस का कंडक्टर बेठा था वो भी सो गया।बिल्कुल निश्चिंत जैसे कुछ हुआ ही नही और रोज़ का काम हो।में बोलना चाह रहा था पर शायद सही समय का इंतज़ार था।इस बीच ड्राइवर ने पानी की बोतल निकाली और स्टीयरिंग को टांग से रोका ।पानी हाथ में ले आंखें धोयी।बस फुल स्पीड पे भाग ही रही थी।झपकी में भी नज़र सडक से हटी नही इसलिए भी में शायद चुप था।थोड़ी देर पानी ने दम दिखाया।पर 10 15 किलोमीटर बाद झपकी फिर लगने को हुई।इतने में एक स्टॉप आ गया।कुछ सवारियां चड़ी कुछ उतरी।इतने में कुल्फी बेचने वाला चढ़ा बस में।एक कुल्फी ड्राइवर ने भी ले ली।कुल्फी वाले कि भी 7 8 कुल्फियां बिक गयी।गर्मी का मौसम है कुल्फी देख के मुह में पानी आ ही जाता है।80 किलोमीटर के झपकी भरे सफर का अंत कुल्फी ने कर दिया।और अगले 40 किलोमीटर बहुत अच्छे से सड़क पे ध्यान से गाड़ी चली।और इसके बाद चाय नाश्ते के लिए बस रुकी।मैंने कंडक्टर साहिब को बुला कर ड्राइवर साहिब की हालत समझा दी।कंडक्टर हंसते हुए बोला बस अब चाय पी के सब ठीक हो जायेगा।में भी बस से उतरा।पानी की बोतल लेने के लिए।सब जगह जितनी भी बडी ब्रांड के पानी की बोतल है वो 20 रुपया में मिलती है।मैन पार्ले एग्रो की बेले ब्रांड की बोतल ली।और दुकानदार को 50 का नोट दिया।बापिस 25 रुपया मिले।मैंने पांच और बापिस मांगे तो दुकानदार बोला जनाब बोतल पे एमआरपी 30 रुपया है मैन 25 ही लिए है।मैन पूछा कब से ये रेट है वो बोला एक महीने से। मैन कहा पानी तो हम रोज 20 रुपये में ही खरीदते है।बोला 25 की ही मिलेगी।मैने बोतल ले ली।और इंटरनेट पे पारले की वेब साइट खोली।वहां एमआरपी 19 रूपए लिखा था।खैर मैंने पारले में शिकायत डाल दी।और में आश्वस्त हूँ के ये मिली भगत का काम है और एक बड़ी लूट यात्रियों से की जा रही है।पारले के जबाब के इंतज़ार में हूँ।इसके बाद हरियाणा सरकार को लिखा जायेगा।हर कोई पैसे के लिये कुछ भी करेगा ।औरइतने में तरोताज़ा ड्राइवर साहिब ने कमान संभाल ली।कंडक्टर सही था।ड्राइवर की नींद गायब हो गयी थी।अगले तीन घंटे तूफानी ड्राइविंग का आनंद लिया।और अपने गंतव्य पे समय से बिना किसी को नुकसान पहुंचाए पहुंच गया।यात्रा सुखद रही और ड्राइवर की जिंदगी देख के परेशानी भी हुई।रात दिन भागते है और हमे समय से सुरक्षित हर हाल में गंतव्य तक ले जाते है।हरियाणा रोडवेज जिंदाबाद।चलो कुछ तूफानी सफर हो जाये और हरियाणा रोडवेज का मजा लिया जाये।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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🌹🙏🏼🎊🎊🎊😊🎊🎊🎊✍🏼🌹 आज एक रस्म पगड़ी में गया हमारे प्यारे गोपाल भैया की।बहुत अच्छे योगाभ्यासी थे।रोज सुबह योगा सेवा में योग की कक्षा भी लगाया करते थे।बहुत शुद्ध साफ निर्मल तबीयत के और बेहद अच्छे व्यक्तित्व के मालिक थे। उम्र रही तक़रीबन 56 साल।एक गम्भीर बीमारी ने एक जीवन असमया लील लिया।पारिवारिक संबंध है हमारे।उनके पुत्र को देख के मुझे 26 जुलाई 2009 की याद आ गयी।मेरे पिता जी की मृत्यु हुई और हमारे यहां रस्म पगड़ी तेहरवीं पे ही होती है।ये उत्तर भारत के रस्मों रिवाज का हिस्सा है।पिता के बाद घर मे ज्येष्ठ पुत्र को आधिकारिक रूप से परिवार का मुखिया बनाया जाता है।समाज के सामने और जो पगड़ी बांधी जाती है सारा समाज जो वहां उपस्थित होता है अपने स्पर्श से पगड़ी को अधिकार सौंपता है। थोड़ा संकलित ज्ञान इसपे ही हो जाये।रस्म पगड़ी - रस्म पगड़ी उत्तर भारत और पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों की एक सामाजिक रीति है, जिसका पालन हिन्दू, सिख और सभी धार्मिक समुदाय करते हैं। इस रिवाज में किसी परिवार के सब से अधिक उम्र वाले पुरुष की मृत्यु होने पर अगले सब से अधिक आयु वाले जीवित पुरुष के सर पर रस्मी तरीके से पगड़ी (जिस
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