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गर्मीयों मैं मेरी कछ पसंदीदा हरी सब्ज़ियां आती है।तोरी ऐसी ही एक सब्ज़ी है।अपने स्कूल के दिनों में मैं भी अपने घर के पीछे क्यारी मैं इसे लगाया करता था।काली तोरी और सफेद तोरी।सफेद तोरी मोटी और बहुत बडी होती है।काली तोरी पतली लंबी।खाने में दोनों का स्वाद थोडा अलग।मुझे तोरी और प्याज़ की सब्ज़ी देसी घी में बनी बहुत स्वादिष्ट लगती है।आज भी खाता हूं।गर्मियों में तोरी के पूरे मजे।आज की बात होगी तोरी पे।
आप को पता ही है के हरी सब्जियां खाने की सलाह सभी डॉक्टर देते हैं। हरी सब्जियों की उचित मात्रा आहार में शामिल करते रहने से ही हमारे शरीर में रक्त के निर्माण के साथ साथ शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है। रोगों से लड़ने के लिए हमारे रक्त में हीमोग्लोबिन की मात्रा तय मानक के अनुसार होनी चाहिए। रक्त और हीमोग्लोबिन की मात्रा सही रखने के लिए हरी सब्जियों से बढ़कर कुछ भी नहीं है।
गर्मियों में हरी सब्जियों की जरूरत अन्य मौसमों की तुलना में अधिक होती है क्यूंकि गर्मी के दिनों में हमारे शरीर से पसीना और नमक निकलता रहना है इस वजह से रक्त की कमी भी अन्य मौसम की तुलना में ज्यादा हो सकती है। सब्जियों की मात्रा में कमी के कारण आजकल हमारे शरीर में कमजोरी के साथ साथ बालों का सफेद होना, नजर कमजोर हो जाना, हाथ पैरों में दर्द, गैस की समस्या, सांसों में घरघराहट, खर्राटे लेना आदि समस्याएं आम बात हो गयी हैं।तुरई या तोरी (नेनुआ) एक ऐसी सब्जी है जिसे लगभग संपूर्ण भारत में उगाया जाता है। तुरई का वानस्पतिक नाम लुफ़्फ़ा एक्युटेंगुला है। तुरई को आदिवासी विभिन्न रोगों के उपचार के लिए उपयोग में लाते हैं। मध्यभारत के आदिवासी इसे सब्जी के तौर पर बड़े चाव से खाते हैं और हर्बल जानकार इसे कई नुस्खों में इस्तमाल भी करते हैं। चलिए आज जानते हैं तोरई के लाभ के बारे में ।तुरई ब्लड और यूरीन दोनों में शुगर के स्तर को कम करने में मदद करती है। इसलिए यह डायबिटीज के रोगियों के लिए फायदेमंद होती है। तुरई में इन्सुलिन की तरह पेप्टाईड्स पाए जाते हैं। इसलिए इसे डायबिटीज नियंत्रण के लिए एक अच्छे उपाय के तौर पर देखा जाता है। इसलिए सब्जी के तौर पर इसके इस्तेमाल से डायबिटीज में फायदा होता है।
एक तुरई में लगभग 95 प्रतिशत पानी और केवल 25 प्रतिशत कैलोरी होती है। जिससे वजन नहीं बढ़ता। इसमें संतृप्त वसा और कोलेस्ट्रॉल की भी बहुत ही सीमित मात्रा होती है जो वजन कम करने में सहायक होती है।
यह मुंहासे, एक्जिमा, सोरायसिस और अन्य त्वचा संबंधी रोगों के उपचार में सहायक होती है। कुष्ठ रोग में भी तुरई उपयोगी होती है। तुरई की सब्जी खाने से प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत होती है। इसके सेवन से रक्त शुद्ध होता है जिससे त्वचा संबंधी रोगों से राहत मिलती है।
तुरई में बीटा कैरोटीन पाया जाता है जो नेत्र दृष्टि बढ़ाने में मदद करता है। अगर आप अपनी आंखों की रोशनी बढ़ाना चाहते हैं तो अपने आहार में तुरई को शामिल करें।
लगातार तुरई का सेवन करना सेहत के लिए बेहद हितकर होता है। तुरई रक्त शुद्धिकरण के लिए बहुत उपयोगी माना जाता है। साथ ही यह लिवर के लिए भी गुणकारी होता है। साथ ही पीलिया होने पर अगर रोगी की नाक में 2 बूंद तोरई के फल का रस डाल दें, तो नाक से पीले रंग का द्रव बाहर निकलता है। जिससे पीलिया रोग जल्दी समाप्त हो जाता है।
बालों को काला करने में भी तुरई बहुत फायदेमंद होती है। इसके लिए तुरई के छोटे-छोटे टुकड़े काटकर छांव में सूखा लें। फिर इन सूखे टुकड़ों को नारियल के तेल में मिलाकर 5 दिन तक रख लें। बाद में इसे गर्म कर लें। इस तेल को छानकर प्रतिदिन बालों पर लगाकर मालिश करें, इससे उपाय को अपनाने से आपके बाल धीरे-धीरे काले होने लगेगें।
इसका नियमित प्रयोग करने से कब्ज नहीं होता और पेट भी साफ रहता है। इसके अलावा तुरई पित्त, सांस संबंधी रोगों, बुखार, खांसी और पेट के कीड़ों को दूर करने में लाभकारी है
तोरी गर्मियों की अमृत सब्ज़ी है।भरपूर मात्रा में पैदा भी होती है।दाम भी वाजिब।तुरन्त पक जाती है।सही नमक मिर्च का मिश्रण कर आनंद के साथ खुद भी खाइये औए अपने बच्चों को खाने की आदत डालिये।स्वास्थ्य की और एक कदम और।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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🌹🙏🏼🎊🎊🎊😊🎊🎊🎊✍🏼🌹 आज एक रस्म पगड़ी में गया हमारे प्यारे गोपाल भैया की।बहुत अच्छे योगाभ्यासी थे।रोज सुबह योगा सेवा में योग की कक्षा भी लगाया करते थे।बहुत शुद्ध साफ निर्मल तबीयत के और बेहद अच्छे व्यक्तित्व के मालिक थे। उम्र रही तक़रीबन 56 साल।एक गम्भीर बीमारी ने एक जीवन असमया लील लिया।पारिवारिक संबंध है हमारे।उनके पुत्र को देख के मुझे 26 जुलाई 2009 की याद आ गयी।मेरे पिता जी की मृत्यु हुई और हमारे यहां रस्म पगड़ी तेहरवीं पे ही होती है।ये उत्तर भारत के रस्मों रिवाज का हिस्सा है।पिता के बाद घर मे ज्येष्ठ पुत्र को आधिकारिक रूप से परिवार का मुखिया बनाया जाता है।समाज के सामने और जो पगड़ी बांधी जाती है सारा समाज जो वहां उपस्थित होता है अपने स्पर्श से पगड़ी को अधिकार सौंपता है। थोड़ा संकलित ज्ञान इसपे ही हो जाये।रस्म पगड़ी - रस्म पगड़ी उत्तर भारत और पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों की एक सामाजिक रीति है, जिसका पालन हिन्दू, सिख और सभी धार्मिक समुदाय करते हैं। इस रिवाज में किसी परिवार के सब से अधिक उम्र वाले पुरुष की मृत्यु होने पर अगले सब से अधिक आयु वाले जीवित पुरुष के सर पर रस्मी तरीके से पगड़ी (जिस
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