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आज एक और मेरी पसंदीदा सब्ज़ी।कुंदरू।ये सब्ज़ी पूरा साल मिलती है।आजकल इसका भी मौसम है।कड़क सब्ज़ी।इसका भजिया बहुत बढ़िया बनाता है।ये भीतर से सफेद या लाल निकलता है।इसकी सूखी सब्ज़ी बनाई जाती है।बेसन से इसके कुरकुरे पन को और मजेदार बनाया जा सकता है।कुछ या कभी कभी ये खट्टे भी निकलते है।पर सब्ज़ी को खा के आनंद मिलता है।हरी सब्जियों की बहार हैं कुंदरू।लीजीये आप के समक्ष एकत्रित संकलित जानकारी।
कुंदरू को तिंदूरी भी कहा जाता है। यह ककड़ी वर्ग यानी कुकुरबिटेसी परिवार की सदस्य है। इसे ग्रीष्मकालीन (मार्च से जून) या बरसाती (जून-जुलाई से अक्टूबर-नवंबर) फसल के रूप में उगाया जा सकता है। इसे पुरानी लताओं की कटिंग से बोया जाता है। एक बार उगाए जाने पर सही देखरेख, पोषण एवं पौध संरक्षण के साथ पाँच-छः साल तक इससे फल प्राप्त किए जा सकते हैं।
इसी वर्ग के अन्य सदस्यों की अपेक्षा यह कम या अधिक पानी को सहन कर सकती है।
यह मूलतः भारत की वनस्पति है इसीलिए देश के अधिकांश प्रांतों में इसे सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है। कुंदरू की फसल से अधिक उपज प्राप्त करने के लिए इसकी उन्नत किस्म, पर्याप्त पोषण एवं पौध संरक्षण के साथ ही उचित प्रबंधन जरूरी है जिसमें इसकी लताओं के फैलाव के लिए अंगूर के उद्यानों के समान टेलीफोन पद्धति से तारों को बाँधा जाता है।इसकी लताओं को लगाने के लिए पेंसिल की मोटाई की लगभग एक फुट (30 सेमी) लंबी कलमें लगाई जाती हैं। इन्हें लगाने के लिए आधा मीटर गोलाई का आधा मीटर गहरा गड्ढा तैयार कर लिया जाता है। इन गड्ढों की आपसी दूरी मिट्टी व मौसम के अनुसार 2 से 3 मीटर रखी जाती है।इन गड्ढों में मिट्टी, गोबर, खाद, पत्तियों के चूरे की बराबर मात्रा के मिश्रण के साथ 1-1 किलोग्राम नीम या करंज खली भी मिला दी जाती है। गड्ढा भरने के बाद इसमें कलम रोपकर सिंचाई कर दी जाती है।ये आप अपने घर में भी उगा सकते है।थोड़ी सी जगह मैं अपने घर लायक सब्ज़ी हर तीसरे दिन उतार सकते हैं।
कुंदरू एक स्वादिष्ट सब्जी होने के साथ पौष्टिक भी है। आयुर्वेदिक दृष्टि से इसके मूल (जड़) वमनकारक, रेचक, शोधघ्न (सूजन को कम करने वाले) होते हैं। इसके फल गरिष्ठ, मधुर व शीतल होते हैं।
इसकी उम्दा फसल के लिए मिट्टी व मौसम के अनुसार 5 से 10 दिन के अंतर पर सिंचाई करते रहें। फूल और फल आते समय क्यारी में लगातार नमी बनी रहनी चाहिए। अधिक गीलापन, लताओं की जड़ों के लिए हानिकारक होता है। लगातार गीलापन रहने से पौधों की जड़ों का श्वसन रुक जाता है और पौधों की बढ़वार रुक जाती है।
इसमें फल 5 से 7 माह में लगना शुरू होकर लगातार 4-5 माह तक मिलते रहते हैं। फलों की तुड़ाई कच्चे व नरम रहते ही करते रहना आवश्यक है। सामान्यतः प्रति 3 से 5वें दिन फलों की तुड़ाई की जाती है।
विटामिनों की भरमार :यह एक स्वादिष्ट सब्जी होने के साथ पौष्टिक भी है। इसके प्रति 100 ग्राम खाद्य अंश में लगभग 4.6 प्रश कार्बोहाइड्रेट्स, 1.4 प्रश प्रोटीन एवं प्रति 100 ग्राम में 10 मिग्रा कैल्शियम, 30 मिग्रा फॉस्फोरस, 0.7 प्रश लौह तत्व, 84 अंतरराष्ट्रीय इकाई विटामिन ए के अलावा विटामिन बी-1, बी-2 विटामिन सी आदि पाए जाते हैं।
आयुर्वेदिक दृष्टि से इसके मूल (जड़) वमनकारक, रेचक, शोधघ्न (सूजन को कम करने वाले) होते हैं। इसके फल गरिष्ठ, मधुर व शीतल होते हैं। कुंदरू के कडुवे फल साँस रोगों, बुखार एवं कुष्ठ रोग के शमन के लिए उपयोग में लाए जाते हैं। मधुमेह में इसकी पत्तियों का चूर्ण जामुन की गुठली के चूर्ण व गुड़मार के साथ दिया जाना लाभदायक है।
मालको आज कल कुंदरू की सब्ज़ी बाजार में खूब आयी है।अपने भोजन का अनिवार्य हिस्सा इसे बनाइये।अगर घर मैं इसे उगा लेते है तो इसके सभी औषधीय गुणों का आप इस्तेमाल कर सकते है।गर्मियों की हरी सब्जियों की मौज लगी है लूट लो।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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🌹🙏🏼🎊🎊🎊😊🎊🎊🎊✍🏼🌹 आज एक रस्म पगड़ी में गया हमारे प्यारे गोपाल भैया की।बहुत अच्छे योगाभ्यासी थे।रोज सुबह योगा सेवा में योग की कक्षा भी लगाया करते थे।बहुत शुद्ध साफ निर्मल तबीयत के और बेहद अच्छे व्यक्तित्व के मालिक थे। उम्र रही तक़रीबन 56 साल।एक गम्भीर बीमारी ने एक जीवन असमया लील लिया।पारिवारिक संबंध है हमारे।उनके पुत्र को देख के मुझे 26 जुलाई 2009 की याद आ गयी।मेरे पिता जी की मृत्यु हुई और हमारे यहां रस्म पगड़ी तेहरवीं पे ही होती है।ये उत्तर भारत के रस्मों रिवाज का हिस्सा है।पिता के बाद घर मे ज्येष्ठ पुत्र को आधिकारिक रूप से परिवार का मुखिया बनाया जाता है।समाज के सामने और जो पगड़ी बांधी जाती है सारा समाज जो वहां उपस्थित होता है अपने स्पर्श से पगड़ी को अधिकार सौंपता है। थोड़ा संकलित ज्ञान इसपे ही हो जाये।रस्म पगड़ी - रस्म पगड़ी उत्तर भारत और पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों की एक सामाजिक रीति है, जिसका पालन हिन्दू, सिख और सभी धार्मिक समुदाय करते हैं। इस रिवाज में किसी परिवार के सब से अधिक उम्र वाले पुरुष की मृत्यु होने पर अगले सब से अधिक आयु वाले जीवित पुरुष के सर पर रस्मी तरीके से पगड़ी (जिस
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