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मंत्रमुग्ध हूँ जीवन मैं बसे रस रंगों से।
हर तरफ बहार ही नज़र आती है।।
मन इसके रसों का सदैव पान करता है।
शरीर इसके इंद्रधनुष से सजा रहता है।।
बहुत से रिश्तों के रस का स्वाद रोज लेता हूँ।
रिश्तों के रंगों से सदा सरोबार सदा रहता हूँ।।
पत्नी से जीवन रस सब रसों से रसीला।
पत्नी का हृदय साथ सब रंगों से रंगीला।।
बच्चों से जीवन रस चासनी से भी गाढ़ा मीठा।
बच्चों के होने से जीवन रंग भी गाढ़े चटकीले।।
माता पिता ने किया हममें जीवन रस संचार।
माता पिता ने बनाया प्रेम रंग संग जीवन संसार।।
दोस्तों ने घोली इस मे खुशबू रस अदद बहार।
दोस्तों ने दी दुनिया मे होली सी रंग बहार ।।
क्या रिश्ते क्या नाते सब रसों के भरे प्याले।
मुझमें भर देते न जाने कितने रंग हरदम निराले।।
हां में जी रहा हूँ इन्हें कहीं रूह की गहराइयों से।
मुझमें जितने जीवन रस रंग है बने महके इन्ही गहराइयों में।।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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🌹🙏🏼🎊🎊🎊😊🎊🎊🎊✍🏼🌹 आज एक रस्म पगड़ी में गया हमारे प्यारे गोपाल भैया की।बहुत अच्छे योगाभ्यासी थे।रोज सुबह योगा सेवा में योग की कक्षा भी लगाया करते थे।बहुत शुद्ध साफ निर्मल तबीयत के और बेहद अच्छे व्यक्तित्व के मालिक थे। उम्र रही तक़रीबन 56 साल।एक गम्भीर बीमारी ने एक जीवन असमया लील लिया।पारिवारिक संबंध है हमारे।उनके पुत्र को देख के मुझे 26 जुलाई 2009 की याद आ गयी।मेरे पिता जी की मृत्यु हुई और हमारे यहां रस्म पगड़ी तेहरवीं पे ही होती है।ये उत्तर भारत के रस्मों रिवाज का हिस्सा है।पिता के बाद घर मे ज्येष्ठ पुत्र को आधिकारिक रूप से परिवार का मुखिया बनाया जाता है।समाज के सामने और जो पगड़ी बांधी जाती है सारा समाज जो वहां उपस्थित होता है अपने स्पर्श से पगड़ी को अधिकार सौंपता है। थोड़ा संकलित ज्ञान इसपे ही हो जाये।रस्म पगड़ी - रस्म पगड़ी उत्तर भारत और पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों की एक सामाजिक रीति है, जिसका पालन हिन्दू, सिख और सभी धार्मिक समुदाय करते हैं। इस रिवाज में किसी परिवार के सब से अधिक उम्र वाले पुरुष की मृत्यु होने पर अगले सब से अधिक आयु वाले जीवित पुरुष के सर पर रस्मी तरीके से पगड़ी (जिस
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