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बस वक़्त बदल रहा है और हम चले जा रहे है।
तहजीब रोज नये नये रंग लिए है और हम देख रहे है।।
जो कभी राम राम बहुत आम हुआ करती थी कहाँ खो गयी पता ही न चला।
जो कभी प्रणाम नमस्कार आम हुआ करते थे कल की बात हुए पता ही न चला।।
आज ये बदल कर हेलो हाय कब हो गयी मुझे पता ही न चला।
माँ पिता मॉम डैड पोप्स कब हो गए मुझे पता ही न चला।।
कब रिश्तों ने नई करवट नई अंगड़ाई ली दोस्त पता ही न चला।
कब दोस्त यार मित्र सखा सखी ब्रो बेब्स हो गये पता ही न चला।
कब बहन दीदी नए रिश्तों से सिस हो गयी पता ही न चला।।
कब रिश्तों ने अपनी खामोशी तोड़ी मुझे कुछ पता ही न चला।
कब रिश्तों ने भाषा मर्यादायें लांघी मुझे पता ही न चला।।
कब साफ हवाओं में जहर घुला के मुझे ही पता न चला।
कब मन जल दूषित हो गया बस मुझे पता ही न चला।।
कब मन सिकुड़े कब तन पे लत्ते छोटे हुए मुझे पता ही न चला।
कब नज़रों से शर्म की विदाई हुई मुझे पता ही न चला।।
कब कंक्रीट के जंगल में सब खो गये मुझे पता ही न चला।
कब मैं हावी हो हमसे ऊपर निकल गयी पता हो न चला।।
कब दुनिया ऊपर से पुती अंदर से बुझी मुझे पता ही न चला।
कब सब अंग्रेजी अंग्रेजी हो गये मुझे पता ही न चला।।
हम ये सब सोचते रहे और वक़्त गुजरा कब मुझे पता ही न चला।
और तो और अपनी पहचान कब भूले ये मुझे ही पता न चला।।
बस वक़्त बदल रहा है और हम चले जा रहे है।
तहजीब रोज नये नये रंग लिए है और हम देख रहे है।।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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🌹🙏🏼🎊🎊🎊😊🎊🎊🎊✍🏼🌹 आज एक रस्म पगड़ी में गया हमारे प्यारे गोपाल भैया की।बहुत अच्छे योगाभ्यासी थे।रोज सुबह योगा सेवा में योग की कक्षा भी लगाया करते थे।बहुत शुद्ध साफ निर्मल तबीयत के और बेहद अच्छे व्यक्तित्व के मालिक थे। उम्र रही तक़रीबन 56 साल।एक गम्भीर बीमारी ने एक जीवन असमया लील लिया।पारिवारिक संबंध है हमारे।उनके पुत्र को देख के मुझे 26 जुलाई 2009 की याद आ गयी।मेरे पिता जी की मृत्यु हुई और हमारे यहां रस्म पगड़ी तेहरवीं पे ही होती है।ये उत्तर भारत के रस्मों रिवाज का हिस्सा है।पिता के बाद घर मे ज्येष्ठ पुत्र को आधिकारिक रूप से परिवार का मुखिया बनाया जाता है।समाज के सामने और जो पगड़ी बांधी जाती है सारा समाज जो वहां उपस्थित होता है अपने स्पर्श से पगड़ी को अधिकार सौंपता है। थोड़ा संकलित ज्ञान इसपे ही हो जाये।रस्म पगड़ी - रस्म पगड़ी उत्तर भारत और पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों की एक सामाजिक रीति है, जिसका पालन हिन्दू, सिख और सभी धार्मिक समुदाय करते हैं। इस रिवाज में किसी परिवार के सब से अधिक उम्र वाले पुरुष की मृत्यु होने पर अगले सब से अधिक आयु वाले जीवित पुरुष के सर पर रस्मी तरीके से पगड़ी (जिस
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