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नैतिकता बहुदा हमे किसी न किसी संधर्ब में सुनने को मिल जाती है।अनैतिकता ज्यादा सुनने को मिलती है।पर जब भी समाज की कुछ बड़ा काम या कांड होता है ये शब्द बहुत गूंजता है।इसकी दुहाई दी जाती है।शब्द में बहुत विस्तार और सामाजिक ताने बाने में बदलती मर्यादाओं का इतिहास छुपा है।मुझे भी बहुत से एहसास होते रहते है अपने आप से अपने आस पास के हालात से जहां नैतिकता की खोज मैं अपने जीवन मूल्यों में स्वयं करता हूँ।इसी पे आज कुछ पड़ रहा था और इसे और बेहतर से समझना चाह रहा था।इसके मूलभूत आधार की खोज कर रहा था। जो समझा आप के समक्ष है...नैतिकता नीति से जुड़ी है।
नीति संबंधी (जैसे—नैतिक विचार)
नीति के अनुरूप होनेवाला (जैसे—नैतिक उत्तरदायित्व)
नीति युक्त आचरण (जैसे—नैतिक पतन)
नैतिकता मूलरूप से नीति से उत्पन्न हुई है ।नीति से नीतिक और इसी का अपभ्रनश नैतिक है । नीति से उत्पन्न भाव नैतिकता कहलाते हैं । नीति एक तरह की विचारधारा है जिसके अंतर्गत हमारे समाजिक ढांचे को मजबूत किया गया है । मनुष्य का विकास क्रमिक है । पहिले वह जंगलों में रहता था । सामाजिक विकास न के बराबर था । एक छोटा सा कुनबा या कबीला होता था किंतु उनमें भी नैतिकता रहती थी । उस कुनबे में कोई न कोई नियम कायदे कानून होते थे । उनमें भी उनकी नैतिकता रहती थी । मनुष्य के विकास के साथ-साथ उनका सामाजिक दायरा बढा, सोंच बढी जिसके साथ-साथ नैतिकता भी बढी । आदिकाल से लेकर मध्यकाल तक नैतिकता सामाजिक विकास के अनुपातिक क्रम मे बढी । जैसे जैसे मनुष्य ने अर्वाचीन काल में प्रवेश किया उसी समय से नैतिकता में गिरावट आना शुरू हो गई । नैतिकता का क्षेत्र विस्तृत है । इसके अंदर वे सभी नियम कानून आ जाते हैं जो किसी भी संस्था को चलाने के लिये आदर्श माने जाते हैं । उपर्युक्त वाक्य मे आदर्श विशेषण के रूप मे प्रयोग किया गया है । यद्यपि विना नैतिकता के भी संस्थाएं चल सकती हैं किंतु वे आदर्श संस्थाओं का स्थान नहीं ले सकती हैं । उदाहरण के तौर पर हम परिवार नामक संस्था को देखते हैं ।समाजशास्त्र के ज्ञानियों ने एक छत के नीचे रहने वाले मां-बाप .पति- पत्नी व बच्चों को परिवार माना है । इस परिवार नामक संस्था मे पिता को कर्ता माना गया है । इसके लिये कुछ नियम बनें हैं । परिवार का कर्ता धन उपार्जित करेगा । घर में ग्रहणी घर का काम काज करेगी । घर के आंतरिक कार्यों की जवाबदेही ग्रहणी की और घर के वाह्य कार्यों की जवाबदेही कर्ता अर्थात घर के मुखिया की निर्धारित की गई । मां बाप अपनें बच्चों की परवरिश यथाशक्ति करते हैं और जब मां बाप बूढे. हो जाते हैं तब उनकी सेवा बच्चे करते हैं । परिवार का हर सदस्य एक दूसरे की भावनाअओं का सम्मान करता है । उपरुक्त यही नियम पारिवारिक नैतिकता की श्रेणी में आते हैं। इसी तरह किसी भी छेत्र के लिए चाहे वह सामाजिक,राजनीतिक या आर्थिक हो ,कुछ न कुछ नियम जरूर होते हैं और इन नियमों का अनुपालन नैतिकता की श्रेणी में आता है । वर्तमान में समाज की सब से छोटी इकाई परिवार में दिन प्रतिदिन नैतिक मूल्यों की कमी आ रही है । यह हम सब के लिये चिंता का विषय है । युवा पीढी को इस पर विशेष ध्यन देना होगा । परिवार में बुजुर्गों का सम्मान घट रहा है ।युवा पीढी उन्हें बोझ समझ रही है ।पारिवारिक कलह दिन प्रतिदिन बढ रहें हैं ।यह सब नैतिकता के पतन का परिणाम है । आज हम किसी भी क्षेत्र की बात करें, नैतिकता का ह्रास दिखाई पड. रहा है । हमनें हर क्षेत्र मे नियमावली तो बना डाली है किंतु नैतिकता की यह नियमावली किताबों के पन्नों में सुशोभित होकर रह गई है । नैतिकता के ह्रास का मूल कारण भ्रष्टाचार है । जब हम गलत तरीके से ज्यादा की चाहत करने लगते हैं तब भ्रष्टाचार जन्म लेता है जो नैतिकता के पतन का कारण बनता है । नैतिकता का हमारे जीवन मूल्यों पर क्या प्रभाव पड.ता है , जानने के पूर्व हम संछेप में जीवन मूल्यों की चर्चा करते हैं । धर्म, अर्थ, काम, मोछ हमारे जीवन के मूल्य हैं और इन सभी से नैतिकता का सीधा सम्बंध है । इसे इस तरह भी कह सकते हैं कि जीवन के मूल्य नैतिकता के समानुपाती हैं । अर्थात यदि हमारे जीवन मे नैतिकता का समावेश है तो हमारे जीवन के मूल्य धर्म, अर्थ, काम, मोछ सही तरह से निष्पादित होते हैं । बिना नैतिकता के हमारा जीवन पशुवत है । आहार और प्रजनन तो जीव मात्र की आवश्यकता है, हम तो मनुष्य हैं । ईश्वर ने हमें सोचने समझने की शक्ति दी है ।परिणामस्वरूप हमारे महाऋषियों शिक्षाविदों नें अच्छा जीवन जीने के लिये कुछ नियम बनाये हैं । जिन पर चलना हमारा परम कर्तव्य है और इन कर्तव्यों का पालन ही नैतिकता है जिसके फलस्वरूप हमारा जीवन अम्रतमय बनता है । धर्म, अर्थ, काम, मोछ जीवन के मूल्यों को हम अपने जीवन में सही ढंग से समाहित कर सकते हैं ।बिना नैतिकता के हमारे जीवन मूल्य शून्य हैं । आज हमारी संस्कृति पाश्चात्य एवं भारतीयता का मिला जुला स्वरूप है । देश काल और समाज के हिसाब से हमारी संस्कृति में भी बद्लाव आया है । शहरीकरण और टूटते संयुक्त परिवारों के लिये तो नैतिकता वरदान है ।चाहे हम घर में हों या बाहर ,खेत खलिहान में हों या दफ्तर में, शासित वर्ग में हों या शासक में, हमें नैतिकता को सर्वोच्च स्थान देना होगा । तभी हम भारत की पुरानी परिकल्पना सोने की चिडिया को साकार कर पायेगें और आनेंवाली पीढी के लिये आदर्श साबित हो सकेंगे । आओ हम सब अपनें जीवन मूल्यों में नैतिकता का समावेश कर अपनें जीवन को सफल बनायें । स्वयं जियें और दूसरों को भी जीनें दें ।
ये सामाजिक परिवेश और उनमे समाहित जीवन मूल्यों का पालन कर सुखमय जीवन जीना की कला ही नैतिकता को परिभाषित करती है।गलत सही का समय काल देश अनुसार भेद और उनमे अपने भीतर शांति बनाए रख आनंद को प्राप्त करने की कला नैतिकता के रास्ते ही आती है।इसलिए हमें अपने नैतिक मूल्यों को आदर्श बना जीवन मे सर्वोपरि स्थान देना चाहिये।राजनीति से केवल ह्रास सम्भव है बनाने के लिए हमे अपने को भीतर से नैतिकता के लिए तैयार करना होगा।तभी आत्मिक सुख सम्भव है और दूसरे के दुख में हम अपने को विचलित हुए बिना उसे भी बेहतरी की तरफ ले जाते है।अपने संज्ञान में हुए गलत कार्य से अपने को अलग कर सुधार को अपने भीतर पनपने देते है।नैतिकता का ज्ञान गुण हमे अपने भीतर पैदा करना चाहिये तभी जीवन मूल्यों का संगरक्षण सम्भव है।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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🌹🙏🏼🎊🎊🎊😊🎊🎊🎊✍🏼🌹 आज एक रस्म पगड़ी में गया हमारे प्यारे गोपाल भैया की।बहुत अच्छे योगाभ्यासी थे।रोज सुबह योगा सेवा में योग की कक्षा भी लगाया करते थे।बहुत शुद्ध साफ निर्मल तबीयत के और बेहद अच्छे व्यक्तित्व के मालिक थे। उम्र रही तक़रीबन 56 साल।एक गम्भीर बीमारी ने एक जीवन असमया लील लिया।पारिवारिक संबंध है हमारे।उनके पुत्र को देख के मुझे 26 जुलाई 2009 की याद आ गयी।मेरे पिता जी की मृत्यु हुई और हमारे यहां रस्म पगड़ी तेहरवीं पे ही होती है।ये उत्तर भारत के रस्मों रिवाज का हिस्सा है।पिता के बाद घर मे ज्येष्ठ पुत्र को आधिकारिक रूप से परिवार का मुखिया बनाया जाता है।समाज के सामने और जो पगड़ी बांधी जाती है सारा समाज जो वहां उपस्थित होता है अपने स्पर्श से पगड़ी को अधिकार सौंपता है। थोड़ा संकलित ज्ञान इसपे ही हो जाये।रस्म पगड़ी - रस्म पगड़ी उत्तर भारत और पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों की एक सामाजिक रीति है, जिसका पालन हिन्दू, सिख और सभी धार्मिक समुदाय करते हैं। इस रिवाज में किसी परिवार के सब से अधिक उम्र वाले पुरुष की मृत्यु होने पर अगले सब से अधिक आयु वाले जीवित पुरुष के सर पर रस्मी तरीके से पगड़ी (जिस
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