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कभी कभी दोस्त प्यार बरसाते है वो भी दिल खोल के।उनके मुंह से फूल बरसते है।झड़ झड़ गिरते है।हवाओ में दोस्ती की महक छा जाती है।मौसम खुशगवार हो जाता है।ऐसा महसूस होता है जैसे ये हमारे गुजरे कॉलेज के दिन सामने है।क्या बेतकुल्फ़ी होती है।ठंडी ठंडी आग बरसती है।जैसे फ्राइड आइसक्रीम।बाहर से अत्यंत गर्म और भीतर से बेहद ठंडी।मुह से बरसती फुलझड़ियों की चिंगारियां न जलाती न तंग करती।एक एक शब्द मुह से निकलता कोई बर्फी सा कोई रसमलाई सा कोई पेठा सा कोई लड्डू सा कोई मिल्क केक सा तो कोई मालपुए सा।जितने शब्द आप के लिए झड़ते उतनी ही मिठाई सी मिठास आप के कानों में घुलती। दोस्तों की आवाज जैसे रसगुल्ले की ठंडी मिठास।दोस्तों के शब्द जैसे सोन्देश।दोस्तों के ख्याल जैसे कराची हलवा दांतों से कटे न टॉफी सा मुह में घुलते जायें।जो शब्द मीठे शब्द मुह से निकल जाए वो फरारी की रफ्तार से कान के ऊपर से निकल जाये।क्या शब्द क्या शब्दो से बातें और क्या उनका मतलब आज तक खोज जारी है।कुछ तो शब्द ही नए ईजाद हो गए दोस्त कब ढक्कन हो गया पता ही न चला।ओये कबूतर भी बना दिया और उड़ा भी दिया। एक बिचारा हड्डी बन गया बुलाया गया ओये हड्डी इधर आ भाई की माँ आज तक ऐसे प्यारे मीठे दोस्तों को बेलन लिए ढूंढ़ रही है।एक तो डब्बा कहलाया वो भी खाली।एक पांचू भी था और मैं हाथी पांचू का साथी।टकला पेन दा टका वाह कितने प्यारे शब्द।और जैसे ही दूर से दोस्त नज़र आये सारी मीठी प्लानिंगे आंखें चमकाए।मीठे दोस्त के संग कुछ मीठा हो जाये।जैसे ही दोस्त पे गुस्सा आये तो पूरी मिठाई की दुकान सज जाये।देखिये दोस्तों की मिठाई के नाम "बेशर्म , बेगैरत , बेहया
, बेमुरवत , बेलिहाज ,बेगाना " है ना उम्दा मीठी दोस्ती के मीठे मिठाई शब्द। आज ही किसी खास के यहां से आये है और हमने प्रेम से जवानी को याद कर भोग लगाये है।आप को भी कुछ ऐसे दोस्त अपने दिलों में सहेजने वाले मिल जाये।उन्हें दिलों की गहराईयों में रखना चाहिए जो आप को सप्रेम ऐसी शाब्दिक मिठाई सदा दे सकें और आप खा सकें।दोस्त जब दिल से याद करे तो भी सुनो और जब दिमाग से याद करे तो भी सुनो।दोस्त एक तो एक आध ही होता है और फिर यारो दोस्त आखिर दोस्त होता है।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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🌹🙏🏼🎊🎊🎊😊🎊🎊🎊✍🏼🌹 आज एक रस्म पगड़ी में गया हमारे प्यारे गोपाल भैया की।बहुत अच्छे योगाभ्यासी थे।रोज सुबह योगा सेवा में योग की कक्षा भी लगाया करते थे।बहुत शुद्ध साफ निर्मल तबीयत के और बेहद अच्छे व्यक्तित्व के मालिक थे। उम्र रही तक़रीबन 56 साल।एक गम्भीर बीमारी ने एक जीवन असमया लील लिया।पारिवारिक संबंध है हमारे।उनके पुत्र को देख के मुझे 26 जुलाई 2009 की याद आ गयी।मेरे पिता जी की मृत्यु हुई और हमारे यहां रस्म पगड़ी तेहरवीं पे ही होती है।ये उत्तर भारत के रस्मों रिवाज का हिस्सा है।पिता के बाद घर मे ज्येष्ठ पुत्र को आधिकारिक रूप से परिवार का मुखिया बनाया जाता है।समाज के सामने और जो पगड़ी बांधी जाती है सारा समाज जो वहां उपस्थित होता है अपने स्पर्श से पगड़ी को अधिकार सौंपता है। थोड़ा संकलित ज्ञान इसपे ही हो जाये।रस्म पगड़ी - रस्म पगड़ी उत्तर भारत और पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों की एक सामाजिक रीति है, जिसका पालन हिन्दू, सिख और सभी धार्मिक समुदाय करते हैं। इस रिवाज में किसी परिवार के सब से अधिक उम्र वाले पुरुष की मृत्यु होने पर अगले सब से अधिक आयु वाले जीवित पुरुष के सर पर रस्मी तरीके से पगड़ी (जिस
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