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मैं बहुत से कर्जो में डूबा हूँ।
जिधर देखता हूँ कहीं न कहीं किसी का ऋणी हूँ। इस खूबसूरत संसार मे आने के लिए मातृऋण से ऋणी हूँ।इस संसार के सुखों का बोध कराने के लिये पितृऋण से ऋणी हूँ।समस्त शिक्षा ज्ञान के लिए गुरु का ऋणी हूँ।युवा अवस्था मे जीवन रंग भरने के लिये अर्धांगिनी स्वामिनी धर्मपत्नी प्रेमिका से विवाह देहसुख से ऋणी हूँ।जीवन अंकुर डालने के लिये संतान से ऋणी हूँ।सामाजिक व्यवस्था में स्थान देने के लिये समाज का ऋणी हूँ।ईश्वरीय मार्ग पे भक्ति देने के लिए ईश्वर और उसकी ईश्वरीय सत्ता का ऋणी हूँ।संतान सुख के लिये कर्मो का ऋणी हूँ।भूख खत्म करने के लिये अनाज का ऋणी हूँ।शुद्ध हवा वायु के लिए प्रकृति का ऋणी हूँ।शुद्ध साफ जल सेवन से नदियो का ऋणी हूँ। ये ऋण न जाने अनजाने कितनो का मुझ पे है और कितने है।में हर वक़्त हर लम्हा किसी न किसी ऋण से ऋणी हूँ।मेरी इतनी औकात कहाँ जो इसे लौटा सकूं।बस इतनी मुझमें हे ईश्वर शक्ति भक्ति पवित्रत दे के बस मैं केवल इन्हें सहेज के बस ब्याज ही लौटाने में सक्षम हो सकूं।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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🌹🙏🏼🎊🎊🎊😊🎊🎊🎊✍🏼🌹 आज एक रस्म पगड़ी में गया हमारे प्यारे गोपाल भैया की।बहुत अच्छे योगाभ्यासी थे।रोज सुबह योगा सेवा में योग की कक्षा भी लगाया करते थे।बहुत शुद्ध साफ निर्मल तबीयत के और बेहद अच्छे व्यक्तित्व के मालिक थे। उम्र रही तक़रीबन 56 साल।एक गम्भीर बीमारी ने एक जीवन असमया लील लिया।पारिवारिक संबंध है हमारे।उनके पुत्र को देख के मुझे 26 जुलाई 2009 की याद आ गयी।मेरे पिता जी की मृत्यु हुई और हमारे यहां रस्म पगड़ी तेहरवीं पे ही होती है।ये उत्तर भारत के रस्मों रिवाज का हिस्सा है।पिता के बाद घर मे ज्येष्ठ पुत्र को आधिकारिक रूप से परिवार का मुखिया बनाया जाता है।समाज के सामने और जो पगड़ी बांधी जाती है सारा समाज जो वहां उपस्थित होता है अपने स्पर्श से पगड़ी को अधिकार सौंपता है। थोड़ा संकलित ज्ञान इसपे ही हो जाये।रस्म पगड़ी - रस्म पगड़ी उत्तर भारत और पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों की एक सामाजिक रीति है, जिसका पालन हिन्दू, सिख और सभी धार्मिक समुदाय करते हैं। इस रिवाज में किसी परिवार के सब से अधिक उम्र वाले पुरुष की मृत्यु होने पर अगले सब से अधिक आयु वाले जीवित पुरुष के सर पर रस्मी तरीके से पगड़ी (जिस
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