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अरे बल कहाँ छिपा है इसे मैं ढूंढ़ रहा हूँ।
अरे बल भुजाओं में है वजन उठा रहा हूँ।।
अरे बल टांगो में है लंबा दौड़ रहा हूं।
अरे बल कपाल में है कुछ खेल रहा हूँ।।
अरे बल पैरों में है लंबी बॉल फेंक रहा हूँ।
अरे बल कमर में हैं हर और लचका रहा हूँ।।
अरे बल सीने में है वार से दिल बचा रहा हूँ।
अरे बल रीड में है सो झुक नही रहा हूँ।।
अरे बल मांसपेशियों में है समझा रहा हूँ।
अरे बल धड़कते दिल मे है बता रहा हूँ।।
अरे जाने कितने बलों के साथ जी रहा हूं।
अरे ये एक और बल आया मित्र लाया।
अरे देखो बल मेरी अभिभावकों से आया।।
अरे बल तो मुझे मेरे ज्ञान से भी मिला है।
अरे बल तन से मन सब जगह मिला है।।
अरे सब बलों की संस्था बसी कहाँ है।
अरे असल ये बल तो बुद्धि से मिले है।।
अरे हम ऐसे ही बलों के पीछे क्यों भागे है।
अरे बुद्धि विकसित की तो सब बल उल्टा इसके पीछे भागे है।।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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🌹🙏🏼🎊🎊🎊😊🎊🎊🎊✍🏼🌹 आज एक रस्म पगड़ी में गया हमारे प्यारे गोपाल भैया की।बहुत अच्छे योगाभ्यासी थे।रोज सुबह योगा सेवा में योग की कक्षा भी लगाया करते थे।बहुत शुद्ध साफ निर्मल तबीयत के और बेहद अच्छे व्यक्तित्व के मालिक थे। उम्र रही तक़रीबन 56 साल।एक गम्भीर बीमारी ने एक जीवन असमया लील लिया।पारिवारिक संबंध है हमारे।उनके पुत्र को देख के मुझे 26 जुलाई 2009 की याद आ गयी।मेरे पिता जी की मृत्यु हुई और हमारे यहां रस्म पगड़ी तेहरवीं पे ही होती है।ये उत्तर भारत के रस्मों रिवाज का हिस्सा है।पिता के बाद घर मे ज्येष्ठ पुत्र को आधिकारिक रूप से परिवार का मुखिया बनाया जाता है।समाज के सामने और जो पगड़ी बांधी जाती है सारा समाज जो वहां उपस्थित होता है अपने स्पर्श से पगड़ी को अधिकार सौंपता है। थोड़ा संकलित ज्ञान इसपे ही हो जाये।रस्म पगड़ी - रस्म पगड़ी उत्तर भारत और पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों की एक सामाजिक रीति है, जिसका पालन हिन्दू, सिख और सभी धार्मिक समुदाय करते हैं। इस रिवाज में किसी परिवार के सब से अधिक उम्र वाले पुरुष की मृत्यु होने पर अगले सब से अधिक आयु वाले जीवित पुरुष के सर पर रस्मी तरीके से पगड़ी (जिस
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