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नारी को भिन्न भिन्न संबोधन बहुत कुछ बयान करते है जो उसकी शक्तियां भी है।ये आदि से आरम्भ होती है।ब्रह्माण्ड के उत्पत्ति से पूर्व घोर अंधकार से उत्पन्न होने वाली महा शक्ति या कहे तो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का निर्माण करने वाली शक्ति, 'आद्या या आदि शक्ति' के नाम से जानी जाती हैं। अंधकार से जन्मा होने के कारण वह 'काली' नाम से विख्यात हैं। विभिन्न कार्य के अनुरूप इन्हीं देवी ने नाना गुणात्मक रूप धारण किये हैं, सर्वप्रथम शक्ति होने के परिणामस्वरूप इन्हें आद्या शक्ति के नाम से जाना जाता हैं।ये ही सृष्टि की सबसे बड़ी देंन थी।नाम ही शक्ति।भगवान ने भी असुरों के संहार के लिए शक्ति का सहारा लिया।येही हमारे हिन्दू धर्म मे आदि शक्ति का सबसे उच्च स्थान है।महिला शक्ति इससे परिपूर्ण है।ये हमे सामने हरदम न दिखती है ना आभास में आती है।ईश्वर की रचना नारी बेहद मजबूत समर्पण से भरपूर सहनशीलता से परिपूर्ण भावनाओं से भरपूर है।इंसान के जीवन मे इस शक्ति का सबसे बृहद उत्तम रूप है।जब ये शक्ति जागृत हो जाती है तो ये अपने मे ही पूर्ण सत्ता है और इसे कोई ललकार भी नही सकता सिर्फ नमन करता है।ये सब भावनाओं को आंसुओं के रूप में देख कर सेवा को समर्पण में देख कर कर्तव्य को अपना मानकर अपने पिता की अंतिम सांस तक सेवा के भाव देख कर एहसास कर रहा हूँ।चिता भी सजती है और मन मे बेहद कौतूहल पैदा होता है।आज इस देह का अंतिम दिन है।हम अब इन्हें आज के बाद कभी नही देख पायेंगे।जब कभी याद आयेगी तो क्या एहसास होगा।न जाने कितने अबूझ प्रश्न मन मे कौंधते है।मगर जिनता समर्पण रिश्ते के प्रति था उतना ही जीवन और उसके रंगों को लेकर भीतर से रहता है।ईश्वर परीक्षा की घड़ी में हर तरह से तोड़ता है।।मर्दों को टूटते अक्सर देखा है।औरतों की मजबूती सतत है। जाने का गम बहुत है।मगर अपने आस पास रही दूसरी जिम्मेवारियों का एहसास भी उतना ही ज्यादा है।तुम जितनी बार मुझे गिराओगे मैं हर बार दुगनी ताकत से किस्मत तुझसे मुकाबला करूंगी।ये वो भीतर क शोर है जो ये आदि शक्ति की अंश ही सुन सकती है और इसे निभा सकती है।देह का आने जाने का क्रम जारी रहेगा और शक्ति अपना प्रभाव छोड़ती रहेगी।ऐसे मजबूत हृदय को मेरा नमन।देह आज पंचतत्व में लीन हो गयी।सारे कर्मो का हिसाब दे आत्मा मुक्त हुई।चित्रगुप्त ने आज ये पन्ना भी पूरा कर दिया।घी शहद गोमूत्र गंगाजल से पवित्र हो देह पंचतत्व को प्राप्त हुई और जीवात्मा ने नया चोला धारण कर लिया।शक्ति ने आज अपना कर्तव्य निभा दिया।देव अब खुश हो जाओ आदि शक्ति कायम है।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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🌹🙏🏼🎊🎊🎊😊🎊🎊🎊✍🏼🌹 आज एक रस्म पगड़ी में गया हमारे प्यारे गोपाल भैया की।बहुत अच्छे योगाभ्यासी थे।रोज सुबह योगा सेवा में योग की कक्षा भी लगाया करते थे।बहुत शुद्ध साफ निर्मल तबीयत के और बेहद अच्छे व्यक्तित्व के मालिक थे। उम्र रही तक़रीबन 56 साल।एक गम्भीर बीमारी ने एक जीवन असमया लील लिया।पारिवारिक संबंध है हमारे।उनके पुत्र को देख के मुझे 26 जुलाई 2009 की याद आ गयी।मेरे पिता जी की मृत्यु हुई और हमारे यहां रस्म पगड़ी तेहरवीं पे ही होती है।ये उत्तर भारत के रस्मों रिवाज का हिस्सा है।पिता के बाद घर मे ज्येष्ठ पुत्र को आधिकारिक रूप से परिवार का मुखिया बनाया जाता है।समाज के सामने और जो पगड़ी बांधी जाती है सारा समाज जो वहां उपस्थित होता है अपने स्पर्श से पगड़ी को अधिकार सौंपता है। थोड़ा संकलित ज्ञान इसपे ही हो जाये।रस्म पगड़ी - रस्म पगड़ी उत्तर भारत और पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों की एक सामाजिक रीति है, जिसका पालन हिन्दू, सिख और सभी धार्मिक समुदाय करते हैं। इस रिवाज में किसी परिवार के सब से अधिक उम्र वाले पुरुष की मृत्यु होने पर अगले सब से अधिक आयु वाले जीवित पुरुष के सर पर रस्मी तरीके से पगड़ी (जिस
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