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रोज में अपने आप से युद्ध मे करता हूँ।
कभी मैं जीतता हूँ और कभी हार जाता हूँ।।
इसमे कभी साधारण कभी घोर युद्ध होता है।
रोज अपने आप से एक नया युद्ध मैं करता हू ।।
कभी अपने सामने होते है कभी पराये।
कभी इनको मैं नही सुहाता कभी ये मुझे।।
कभी मैं इनसे उलझता कभी ये मुझसे।
रोज अपने आप से एक नया युद्ध मे करता हूँ।।
अगला युद्ध होता है मेरी तक़दीर से।
ये मुझे पटकती है बड़ी जोर जोर से।।
मैं चेष्टा कर फिर उठ खड़ा होता हूँ।
रोज अपने आप से एक नया युद्ध मैं करता हूँ।।
फिर युद्ध होता है मेरे चंचल मन से।
कभी ये इस डाल तो अभी ये उस डाल।।
मैं भी इसे रोकने का यत्न बहुत करता हूँ।
रोज अपने आप से एक नया युद्ध मैं करता हूँ।।
फिर युद्ध हो रहा है मेरी आदतों से।
इनसे तो मैं हर पल उलझ रहा हूँ।।
ये कभी मुझपर कभी मैं इनपर हावी होता हूँ।
रोज अपने आप से नया युद्ध मैं करता हूँ।
आज फिर नया कुछ हुआ है और मैं युद्धरत हूँ।
अभी अभी पटखनी मिली और मैं खुश हूं।।
संवेदनाओं ने मुझे घेर के मारा है जोर से।
रोज अपने आप से एक नया युद्ध मैं करता हूँ।।
यहां तो हार कर भी मैं जीत ही गया हूँ।
दिल के हाथों प्यार से मजबूर हुआ हूँ।।
आज मैं बहुत अपनो से युद्धरत हुआ हूँ।
रोज अपने आप से एक नया युद्ध मैं करता हूँ।।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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