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व्यस्ततायें जीवन खींचें लिये जा रही है।
हम चाहकर भी इन्हें रोकने में नाकाम रहे।।
सोचा कुछ समय निकाल खुद भी जी लिया जाये जरूर।
हम व्यस्त ही रहे समय अपनी गति से रहा।।
जब भी कभी समय से अपने लिए लम्हा मांगते।
वो हमें चुपके से व्यस्ततायें थमा चला जाताा।।
जीवन में खुद की खबर ही लेना भूल गए।
जब चिट्ठी मिलीं तो सांसे आखरी दम पे थी।
हम चाह के भी तो बीती उम्र बापिस न ला सके।।
बहुत बार वक़्त ने चेताया रोका पर हम रूक न सके।
सोचा कल देखी जायेगी पर वो कल कभी न ला सके।
व्यस्तताओं ने उलझा कर अपने लिए ताला लगा दिया।।
कुल मिला कर अपने मे पूरा उलझा लिय्या।
मैं कोशिशों करता रहा व्यावसताएँ हंसती रही।
मैं तो फिर भी मुक्कमल रहा व्यवस्ताओं में।।
सिर्फ़ मैं नही हर कोई शख्स झूंझ रहा सुबह शाम ये देख कर।
वक़्त मिला तो व्यवस्थाओं से पूछुंगा जरूर।
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हममें क्या कमी रह गईं ये तो बताओ जरूर।
न कुछ कर सको तो ए वक़्त एक लम्हा ही दे दो जिसे मैं जियों तो मन भर के जरूर।।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि
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🌹🙏🏼🎊🎊🎊😊🎊🎊🎊✍🏼🌹 आज एक रस्म पगड़ी में गया हमारे प्यारे गोपाल भैया की।बहुत अच्छे योगाभ्यासी थे।रोज सुबह योगा सेवा में योग की कक्षा भी लगाया करते थे।बहुत शुद्ध साफ निर्मल तबीयत के और बेहद अच्छे व्यक्तित्व के मालिक थे। उम्र रही तक़रीबन 56 साल।एक गम्भीर बीमारी ने एक जीवन असमया लील लिया।पारिवारिक संबंध है हमारे।उनके पुत्र को देख के मुझे 26 जुलाई 2009 की याद आ गयी।मेरे पिता जी की मृत्यु हुई और हमारे यहां रस्म पगड़ी तेहरवीं पे ही होती है।ये उत्तर भारत के रस्मों रिवाज का हिस्सा है।पिता के बाद घर मे ज्येष्ठ पुत्र को आधिकारिक रूप से परिवार का मुखिया बनाया जाता है।समाज के सामने और जो पगड़ी बांधी जाती है सारा समाज जो वहां उपस्थित होता है अपने स्पर्श से पगड़ी को अधिकार सौंपता है। थोड़ा संकलित ज्ञान इसपे ही हो जाये।रस्म पगड़ी - रस्म पगड़ी उत्तर भारत और पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों की एक सामाजिक रीति है, जिसका पालन हिन्दू, सिख और सभी धार्मिक समुदाय करते हैं। इस रिवाज में किसी परिवार के सब से अधिक उम्र वाले पुरुष की मृत्यु होने पर अगले सब से अधिक आयु वाले जीवित पुरुष के सर पर रस्मी तरीके से पगड़ी (जिस
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