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कभी नीलगिरी की वादियों में शाम जवां होती है।
साथ मे हम और महफ़िल जवां होती है।।
सर्द हवाएं तन को छू के मचलती चलती है।
हम भी इस खुशगवार महफ़िल में चले आते हैं।।
कुछ अपने से कुछ मौसम से बतियाते है।
वो जो मुझे छू के निकलती है हम दौड़ पड़ते।।
ये नग ए जबल ने बहार खास फैलाई हैं।
ये फूलों की महफ़िल उसी ने सजाई है।।
भांति भांति की महक हर तरफ फैली हे।
रंगों की तो न पूछो जितने सोचो उतने खिले है।।
हर तरफ गुलिस्तां ए चमन खूब महका हुआ है।
कुछ खास सब ये रूप रंग लिए से खिले है।।
एक तरफ गुलाबों ने भी जम के डेरा डाला है।
न जाने कितने खूबसूरत से रंग लिए है।।
आकाश में बादलों की चहल कदमी जारी है।
न जाने कितनी नई नई आकृतियों बन मिट रही।।
हवाओं ने भी कम जोर नही लगा रखा है अपना।
बादलों को उड़ाती अठखेलियाँ कर मजे कर रही।।
हम भी इन्हें झूमता देख मचल मचल रहे।
वादियों की खुशबू का आनन्द बखूबी से ले रहे।।
नीलगिरी के नैसर्गिक सौंदर्य जी भर पान कर रहे।
हर एक ऊंचाई में हवा का रुख देख रहे।।
सफेदे के भी जंगल होते है ये समझ रहे।
बनस्पतियां पर्वतों में समाई है लुत्फ ले रहे।
यहां सीता फल भी खास मिठास लिए हैं चख रहे।।
यहां चॉकलेट भी खूब बनांनी सिखाई खाई जातु है।
जेब खोलो तो चॉकलेट खूब मजे से मुह में जाती है।
चाय के नए नए रूप बने है बेचने को।।
किस तरह से पढ़ा पढा के बेची जाती है।
जिसका देखो तेल निकाल लेते है भई।
थमा देते है हमको बीमारियां समझा के ।।
येही देखते वादियों में शाम जवां होती है।
साथ मे हम और महफ़िल जवां होती है।।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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🌹🙏🏼🎊🎊🎊😊🎊🎊🎊✍🏼🌹 आज एक रस्म पगड़ी में गया हमारे प्यारे गोपाल भैया की।बहुत अच्छे योगाभ्यासी थे।रोज सुबह योगा सेवा में योग की कक्षा भी लगाया करते थे।बहुत शुद्ध साफ निर्मल तबीयत के और बेहद अच्छे व्यक्तित्व के मालिक थे। उम्र रही तक़रीबन 56 साल।एक गम्भीर बीमारी ने एक जीवन असमया लील लिया।पारिवारिक संबंध है हमारे।उनके पुत्र को देख के मुझे 26 जुलाई 2009 की याद आ गयी।मेरे पिता जी की मृत्यु हुई और हमारे यहां रस्म पगड़ी तेहरवीं पे ही होती है।ये उत्तर भारत के रस्मों रिवाज का हिस्सा है।पिता के बाद घर मे ज्येष्ठ पुत्र को आधिकारिक रूप से परिवार का मुखिया बनाया जाता है।समाज के सामने और जो पगड़ी बांधी जाती है सारा समाज जो वहां उपस्थित होता है अपने स्पर्श से पगड़ी को अधिकार सौंपता है। थोड़ा संकलित ज्ञान इसपे ही हो जाये।रस्म पगड़ी - रस्म पगड़ी उत्तर भारत और पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों की एक सामाजिक रीति है, जिसका पालन हिन्दू, सिख और सभी धार्मिक समुदाय करते हैं। इस रिवाज में किसी परिवार के सब से अधिक उम्र वाले पुरुष की मृत्यु होने पर अगले सब से अधिक आयु वाले जीवित पुरुष के सर पर रस्मी तरीके से पगड़ी (जिस
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