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ऊटी दक्षिण भारत का एक प्रसिद्ध हिल स्टेशन है।कोयम्बटूर से तकरीबन 100 किलोमीटर दूर।एक लेख में मैंने यहां की खास वनस्पति औषधि के विषय मे चर्चा की थी।अभी फिर जाने का मौका लगा।मौसम बहुत ही खुशगवार हो गया था।घने बादल और हल्की हल्की बरसात।ठंडक भी ऐसी की बस शरीर में स्फूर्ति आ जाये।हवा मंद मंद बह रही थी।शाम ढलने को थी।काम खत्म कर सोचा जरा बाजार घूम लिया जाये। और निकल पड़े मित्रों के साथ।शहर अब उतर भारतीय हिल स्टेशनों की तरह भीड़ भरा हो गया है।सारा दिन गाड़ियों के धुएं से ये शहर महकता है।बस जो प्रकृति को सहेज के यहाँ रखा गया है उसने इसे बचा रखा है।लेक बेहद गंदली हो गयी है।रोज गार्डन और बोटैनिकल गार्डन अपनी खूबसूरती बरकरार रखे हुए है।चाय के बागान मशालाह आस पास के जीवन को रंग देते हुए जीवन भी संवार रहे है।चामराज ने अपनो जगह बनाई हुई है।वीनस स्टोर पहले से बहुत महंगा हो गया है।सुपर स्टोर में आज भी दाम वाजिब है। घर की बनी चॉकलेट अपना दम बनाये है।मसाले अपनी कहानी कहते है।आज जिसकी बात करने जा रहा हूँ वो यहाँ की खास बेकरी आइटम है।जी हां आप सही पकड़ने जा रहे है में वारके की बात कर रहा हूँ।यहाँ तकरीबन 45 से 50 बेकरी है जो इस काम मे लगी है।ये व्योपार ज्यादतर मुस्लिम परिवार चालाते है।और एक बात जान लीजिए ये कम मीठे के बहुत कुरकुरे बिस्कुट है।यहां ये हर दुकान पे मिल जाते है।पर पर्यटक इसे शायद ज्यादा नही जानते।अब से पहले मैं भी नही जानता था।वारके दो दिन के मेहनत से बनते है।वारके शब्द भी उर्दू से ही लिया गया है।वर्क से वारके।वर्क बहुत महीन तेह को बोलते है।और कई महीन तहों से इसमे इसका कुरकुरा पन आता है। ये मावे मैदे केले चावल के आटे से बनाया जाता है।इसमें यीस्ट का उपयोग नही होता।सब को मिला के चीनी डाल के आटा गूंद के एक दिन रखा जाता है।जिसमे 25 डिग्री पे प्राकृतिक रूप से यीस्ट बनता है।फिर इसे गोल गोल शक्ल दे ओवन में पकाया जाता है।इसमें किसी भी तरह की जानवर चर्बी का इस्तेमाल नही होता।खालिस उम्दा उत्पाद और सेहत के लिए भी बेहतर। इसे चाय के साथ खाया जाता है और अगर आप चाहें तो दूध का कप ले इसमे एक या दो वारके डाल दे आप का नाश्ता तैयार।आप को कॉर्न के नाश्ते से बेहतर स्वाद आयेगा।इसकी उत्पत्ति के विषय मे कोई जानकारी नही है।पर बताया ये जाता है के जब अंग्रेजो ने इस जगह की खोज कर यहां बसने के लिए कवायत शुरू की और केरला से लोगों को यहां लाकर बसाया तब उन्होंने इस नाश्ते की शुरुआत शायद की।बेकरी सब इंग्लिश रेजीडेंसी के समय से ही यहां मौजूद है।और अब ये यहां ऊटकमण्डलम की पहचान बन चुका है।वारके यहां की पेटेंटेड बेकरी उत्पाद की तरह है।मुह में डालते ही स्वाद आ जाता है।ये यहां 150 रुपए से 180 रुपया किलो के हिसाब से बिकते है।गर्मियों में इसका खूब उत्पादन होता है।रोज 2000 से 3000 किलो बिस्कुट की विक्री पर्यटन दिनों में होती है।बहुत ही स्वादिष्ट उम्दा उत्पाद है।अगर आप ऊटी जायें तो जरूर खाएं खिलाएं हमारे लिए बंधवा भी लायें।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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🌹🙏🏼🎊🎊🎊😊🎊🎊🎊✍🏼🌹 आज एक रस्म पगड़ी में गया हमारे प्यारे गोपाल भैया की।बहुत अच्छे योगाभ्यासी थे।रोज सुबह योगा सेवा में योग की कक्षा भी लगाया करते थे।बहुत शुद्ध साफ निर्मल तबीयत के और बेहद अच्छे व्यक्तित्व के मालिक थे। उम्र रही तक़रीबन 56 साल।एक गम्भीर बीमारी ने एक जीवन असमया लील लिया।पारिवारिक संबंध है हमारे।उनके पुत्र को देख के मुझे 26 जुलाई 2009 की याद आ गयी।मेरे पिता जी की मृत्यु हुई और हमारे यहां रस्म पगड़ी तेहरवीं पे ही होती है।ये उत्तर भारत के रस्मों रिवाज का हिस्सा है।पिता के बाद घर मे ज्येष्ठ पुत्र को आधिकारिक रूप से परिवार का मुखिया बनाया जाता है।समाज के सामने और जो पगड़ी बांधी जाती है सारा समाज जो वहां उपस्थित होता है अपने स्पर्श से पगड़ी को अधिकार सौंपता है। थोड़ा संकलित ज्ञान इसपे ही हो जाये।रस्म पगड़ी - रस्म पगड़ी उत्तर भारत और पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों की एक सामाजिक रीति है, जिसका पालन हिन्दू, सिख और सभी धार्मिक समुदाय करते हैं। इस रिवाज में किसी परिवार के सब से अधिक उम्र वाले पुरुष की मृत्यु होने पर अगले सब से अधिक आयु वाले जीवित पुरुष के सर पर रस्मी तरीके से पगड़ी (जिस
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