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उलझनों में जिंदगी है कुछ बहुत मशगूल सी।
न हम इधर देख सकते है ना उधर जा सकते है।।
चाहतें बहुत है जिंदगी से निभा नही सकते हम।
कभी यू ही उदास होते है हम जिंदगी फिर हँसा देती है।।
ये जिंदगी मुबारक भी लगती है अफसाना भी लगती है ।
कभी मंजर जेबा लगता है और कभी नातमाम।।
किसी पल दिल को किसी के एहसास का शुबा होता है।
अगले ही पल ये फिर उलझ के उलझन सा रह जाता है।।
इच्छाएं तमाम शामिल थी ये किसी को समझाने में।
उसका यकीन था किस्मत से केवल अकेले ही रहने में।।
मेरे मन की चंचलता कभी मुझे रोक ही न सकी उलझने से।
ये तो सिर्फ तुम थी के हम जज़्बातों में उलझ गये।
तुम गमगीन होती हम तेरे रुख को बदलने की कोशिश तो करते ।।
यहीं कहीं उलझ के कभी हम बेदर्द दुनिया मे खो भी जाते है।
कुछ तो दोस्त है जो आज भी हमे कहीं न कहीं से ढूंढ़ ही लातें है।।
बहुत देखी तस्सली उनकी जो हमे उलझाते हैं।
हमे भी गुस्सा तो आता है मगर हम चुप हो जाते हैं।।
यू तो तम्मनाओं के गुल यहां दिल मे रोज खिलते है।
मगर उनकी आंखों के दीदार से कुछ कह के निकल जाते है।।
हम रोज नई खूबसूरत सी सोच के साथ होते है।
कुछ दिल साफ होता है और हम अपनी राह के पक्ष हो लेते है।।
सब कुछ अपनी चाहों का मिलेगा नही ये पता है मुझे।
उलझनों से उलझ रोज पार उतरना ये ही जिंदगी है मेरी।
सोचता हूँ तुझे ही ये दिल पढ़ा दू और उलझनें कुछ सुलझा दूं।।
मगर फिर भी उलझनों में जिंदगी है बहुत मशगूल सी।
न हम इधर देख सकते है ना उधर जा सकते है।।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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🌹🙏🏼🎊🎊🎊😊🎊🎊🎊✍🏼🌹 आज एक रस्म पगड़ी में गया हमारे प्यारे गोपाल भैया की।बहुत अच्छे योगाभ्यासी थे।रोज सुबह योगा सेवा में योग की कक्षा भी लगाया करते थे।बहुत शुद्ध साफ निर्मल तबीयत के और बेहद अच्छे व्यक्तित्व के मालिक थे। उम्र रही तक़रीबन 56 साल।एक गम्भीर बीमारी ने एक जीवन असमया लील लिया।पारिवारिक संबंध है हमारे।उनके पुत्र को देख के मुझे 26 जुलाई 2009 की याद आ गयी।मेरे पिता जी की मृत्यु हुई और हमारे यहां रस्म पगड़ी तेहरवीं पे ही होती है।ये उत्तर भारत के रस्मों रिवाज का हिस्सा है।पिता के बाद घर मे ज्येष्ठ पुत्र को आधिकारिक रूप से परिवार का मुखिया बनाया जाता है।समाज के सामने और जो पगड़ी बांधी जाती है सारा समाज जो वहां उपस्थित होता है अपने स्पर्श से पगड़ी को अधिकार सौंपता है। थोड़ा संकलित ज्ञान इसपे ही हो जाये।रस्म पगड़ी - रस्म पगड़ी उत्तर भारत और पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों की एक सामाजिक रीति है, जिसका पालन हिन्दू, सिख और सभी धार्मिक समुदाय करते हैं। इस रिवाज में किसी परिवार के सब से अधिक उम्र वाले पुरुष की मृत्यु होने पर अगले सब से अधिक आयु वाले जीवित पुरुष के सर पर रस्मी तरीके से पगड़ी (जिस
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