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ये बंदिशें है बहुत तुम से नज़र मिला ना पायेंगे।
अगर सामने आ भी जाओ एक नज़र देख न पायेंगे।।
चाहते है बहुत के बहुत तुम मेरी नज़रों में बसों।
चाह के भी यू तुमको अपनी नज़र में बसा न पायेंगे।।
तेरे चहेरे की एक नज़र पे हम ये दिल भर लेते है।
पता है के तुमको चाह के भी तमाम उम्र हम न पायेंगे।।
सोच के तुमको कुछ तो दिल से दिल बहला लेते है ।
मायूस हुए भी तो यादों से तुम्हारी दिल बहला लेते है।।
आज कुछ शिकवे भी अगर थे तो उनको भी हमने दूर किया।
अमानत ही नही अपनी तो दिल हमने भी तोड़ लिया।।
मुकद्दर में अगर तेरा इकरार लिखा होता कही।
तो हम भी तुझे जी भर जी लेते अपने मे कहीं।।
मगर मेरी किस्मत ही रही कुछ खफा सी खलिश ऐसी।
हम सोचते ही रहे और तुम मीलों दूर हुए कहीं।।
अब क्या रहा तेरी बेखबर याद के सिवा हम पे ओ जाने जाँ।
याद कर दम भर तुझे अपनी साँसों में जी लेते है।।
सामने ये बंदिशें है बहुत तुम से नज़र मिला ना पायेंगे।
कहीं अगर सामने आ भी जाओ देख न पायेंगे कभी।।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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🌹🙏🏼🎊🎊🎊😊🎊🎊🎊✍🏼🌹 आज एक रस्म पगड़ी में गया हमारे प्यारे गोपाल भैया की।बहुत अच्छे योगाभ्यासी थे।रोज सुबह योगा सेवा में योग की कक्षा भी लगाया करते थे।बहुत शुद्ध साफ निर्मल तबीयत के और बेहद अच्छे व्यक्तित्व के मालिक थे। उम्र रही तक़रीबन 56 साल।एक गम्भीर बीमारी ने एक जीवन असमया लील लिया।पारिवारिक संबंध है हमारे।उनके पुत्र को देख के मुझे 26 जुलाई 2009 की याद आ गयी।मेरे पिता जी की मृत्यु हुई और हमारे यहां रस्म पगड़ी तेहरवीं पे ही होती है।ये उत्तर भारत के रस्मों रिवाज का हिस्सा है।पिता के बाद घर मे ज्येष्ठ पुत्र को आधिकारिक रूप से परिवार का मुखिया बनाया जाता है।समाज के सामने और जो पगड़ी बांधी जाती है सारा समाज जो वहां उपस्थित होता है अपने स्पर्श से पगड़ी को अधिकार सौंपता है। थोड़ा संकलित ज्ञान इसपे ही हो जाये।रस्म पगड़ी - रस्म पगड़ी उत्तर भारत और पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों की एक सामाजिक रीति है, जिसका पालन हिन्दू, सिख और सभी धार्मिक समुदाय करते हैं। इस रिवाज में किसी परिवार के सब से अधिक उम्र वाले पुरुष की मृत्यु होने पर अगले सब से अधिक आयु वाले जीवित पुरुष के सर पर रस्मी तरीके से पगड़ी (जिस
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