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मंज़िलें और संगी।

🌹🙏🏼❣❣❣❣🇮🇳❣❣❣❣✍🏼🌹
हसरतें पलती रही और हम मंजिलों को तलाशते बढ़ते रहे।
कभी होंसलों ने राह दी कभी विश्वास ने सहारा दिया।।
मंजिले नज़र आने लगी हम हसरतों को राह बढ़ते रहे।
मंज़िलें जो कभी दूर थी आज कुछ पास दिखने लगी।।
हम कभी दौड़ते थक जाते चल पड़ते कभी दम भर लेते।
कभी कोई टकराता राहों में साथ हो मंज़िलों पे बढ़ चलते।।
अकेले निकले थे सफर पे दोस्त मिलते गये कारवां बनता गया।
जो सफर मुश्किल भरा कभी नज़र आता था दोस्तों ने आसां कर दिया।।
अकेले थे तो सफर दूरियां महसूस हुआ करती थी।
दोस्तों ने कब कितना चला दिया अब तक के सफर का पता ही न चला।।
नित नये पड़ाव आते औऱ हंसते हंसते निकल जाते।
महफिलें सजती समा बंधता और रात दिन यू ही मस्ती से गुजर जाते।।
हम एक दोस्त ही ढूंढते यहां तो बहुतेरे हम से मिल जाते।
बस हिम्मत इतनी करनी पड़ती के कहते ए दोस्त सुनो तो।।
कुछ कुछ दूर साथ देते कुछ और कुछ दूर कुछ संग ही निकल लेते।
कुछ फिर किसी मोड़ पे आ मिलते उनसे खूब अदब से मिलते।।
मंज़िलें तह होती गई और जिंदगी हसीन सी हो गयी।
जो जब चले थे बोर सी थी आज खुशनुमा बहार हो गई।।
ये ऐसे ही नही हुआ के अपने से हसीन हो गयी।
कुछ साथी ही ऐसे मिले जिनके आने से उमंगे जवान हो गयी।।
जिस दुनिया के रंग फीके से लगते थे अचानक रंगीन हो गये।
सफर सुहाना हो गया और राहें बहारों से मंज़िल की हो गयी।
हम अभी तक के सफर को कैसे गुजरा समझ ही न पाये।।
मंज़िलें आतीं गयी हम इन्हें एक सहारे ही नापते गये।
और आज संग तुम्हारे यहाँ आकर खड़े हो गए।।
जस्बा ऐसा कर दिया के आज दम भर सकूं लिया तुम्हारे संग।
बस अब इतना हुआ के हम फिर ताकत से भर गये और नई मंज़िल की और निकल गये।
जय हिंद।
💫****🙏🏼****✍🏼
शुभ रात्रि।
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