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हसरतें पलती रही और हम मंजिलों को तलाशते बढ़ते रहे।
कभी होंसलों ने राह दी कभी विश्वास ने सहारा दिया।।
मंजिले नज़र आने लगी हम हसरतों को राह बढ़ते रहे।
मंज़िलें जो कभी दूर थी आज कुछ पास दिखने लगी।।
हम कभी दौड़ते थक जाते चल पड़ते कभी दम भर लेते।
कभी कोई टकराता राहों में साथ हो मंज़िलों पे बढ़ चलते।।
अकेले निकले थे सफर पे दोस्त मिलते गये कारवां बनता गया।
जो सफर मुश्किल भरा कभी नज़र आता था दोस्तों ने आसां कर दिया।।
अकेले थे तो सफर दूरियां महसूस हुआ करती थी।
दोस्तों ने कब कितना चला दिया अब तक के सफर का पता ही न चला।।
नित नये पड़ाव आते औऱ हंसते हंसते निकल जाते।
महफिलें सजती समा बंधता और रात दिन यू ही मस्ती से गुजर जाते।।
हम एक दोस्त ही ढूंढते यहां तो बहुतेरे हम से मिल जाते।
बस हिम्मत इतनी करनी पड़ती के कहते ए दोस्त सुनो तो।।
कुछ कुछ दूर साथ देते कुछ और कुछ दूर कुछ संग ही निकल लेते।
कुछ फिर किसी मोड़ पे आ मिलते उनसे खूब अदब से मिलते।।
मंज़िलें तह होती गई और जिंदगी हसीन सी हो गयी।
जो जब चले थे बोर सी थी आज खुशनुमा बहार हो गई।।
ये ऐसे ही नही हुआ के अपने से हसीन हो गयी।
कुछ साथी ही ऐसे मिले जिनके आने से उमंगे जवान हो गयी।।
जिस दुनिया के रंग फीके से लगते थे अचानक रंगीन हो गये।
सफर सुहाना हो गया और राहें बहारों से मंज़िल की हो गयी।
हम अभी तक के सफर को कैसे गुजरा समझ ही न पाये।।
मंज़िलें आतीं गयी हम इन्हें एक सहारे ही नापते गये।
और आज संग तुम्हारे यहाँ आकर खड़े हो गए।।
जस्बा ऐसा कर दिया के आज दम भर सकूं लिया तुम्हारे संग।
बस अब इतना हुआ के हम फिर ताकत से भर गये और नई मंज़िल की और निकल गये।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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🌹🙏🏼🎊🎊🎊😊🎊🎊🎊✍🏼🌹 आज एक रस्म पगड़ी में गया हमारे प्यारे गोपाल भैया की।बहुत अच्छे योगाभ्यासी थे।रोज सुबह योगा सेवा में योग की कक्षा भी लगाया करते थे।बहुत शुद्ध साफ निर्मल तबीयत के और बेहद अच्छे व्यक्तित्व के मालिक थे। उम्र रही तक़रीबन 56 साल।एक गम्भीर बीमारी ने एक जीवन असमया लील लिया।पारिवारिक संबंध है हमारे।उनके पुत्र को देख के मुझे 26 जुलाई 2009 की याद आ गयी।मेरे पिता जी की मृत्यु हुई और हमारे यहां रस्म पगड़ी तेहरवीं पे ही होती है।ये उत्तर भारत के रस्मों रिवाज का हिस्सा है।पिता के बाद घर मे ज्येष्ठ पुत्र को आधिकारिक रूप से परिवार का मुखिया बनाया जाता है।समाज के सामने और जो पगड़ी बांधी जाती है सारा समाज जो वहां उपस्थित होता है अपने स्पर्श से पगड़ी को अधिकार सौंपता है। थोड़ा संकलित ज्ञान इसपे ही हो जाये।रस्म पगड़ी - रस्म पगड़ी उत्तर भारत और पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों की एक सामाजिक रीति है, जिसका पालन हिन्दू, सिख और सभी धार्मिक समुदाय करते हैं। इस रिवाज में किसी परिवार के सब से अधिक उम्र वाले पुरुष की मृत्यु होने पर अगले सब से अधिक आयु वाले जीवित पुरुष के सर पर रस्मी तरीके से पगड़ी (जिस
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