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कभी कभी मैं खुद से भी खफा होता हूँ।
हाँ मैं खुद से खफा होता हूँ और बहुत खफा होता हूँ।
कुछ गलत करूँ तो खुद से खफा होता हूं।
कुछ गलत सोचु तो खुद से खफा होता हूँ।
कुछ गलत विचारूं तो खुद से खफा होता हूँ।
कुछ गलत कह दूं तो खुद से खफा होता हूँ।
कुछ गलत मन मे धारूँ तो खुद से खफा होता हूँ।
कुछ गलत लिख दूं तो खुद से खफा होता हूं।
कुछ गलत मान लूं तो खुद से खफा होता हूँ।
कुछ गलत निर्णय दे दूं तो खुद से खफा होता हूँ।
कुछ गलत होता देख लूं तो खुद से खफा होता हूँ।
कुछ किसी के दिल को ठेस पहुंचाऊं खुद से खफा होता हूँ।
कुछ किसी के सम्मान को आहत करूँ खुद से खफा होता हूँ।
कुछ अपनी नाकामियों से मैं खुद से खफा होता हूँ।
कुछ नकल की आदत से मैं खुद से खफा होता हूँ।
कुछ असफलताओं पे में खुद से खफा होता हूँ।
हाँ मैं खुद से खफा होता हूँ और बहुत खफा होता हूँ।
जा जाने कितनी बुराइयां है मेरी जिनसे मैं खुद से खफा होता हूँ।
हर बार येही कोशिश रहती है के इस बार खफा न होऊं।
मगर हर बार मैं खुद से खफा होता हूँ और बहुत खफा होता हूँ।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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🌹🙏🏼🎊🎊🎊😊🎊🎊🎊✍🏼🌹 आज एक रस्म पगड़ी में गया हमारे प्यारे गोपाल भैया की।बहुत अच्छे योगाभ्यासी थे।रोज सुबह योगा सेवा में योग की कक्षा भी लगाया करते थे।बहुत शुद्ध साफ निर्मल तबीयत के और बेहद अच्छे व्यक्तित्व के मालिक थे। उम्र रही तक़रीबन 56 साल।एक गम्भीर बीमारी ने एक जीवन असमया लील लिया।पारिवारिक संबंध है हमारे।उनके पुत्र को देख के मुझे 26 जुलाई 2009 की याद आ गयी।मेरे पिता जी की मृत्यु हुई और हमारे यहां रस्म पगड़ी तेहरवीं पे ही होती है।ये उत्तर भारत के रस्मों रिवाज का हिस्सा है।पिता के बाद घर मे ज्येष्ठ पुत्र को आधिकारिक रूप से परिवार का मुखिया बनाया जाता है।समाज के सामने और जो पगड़ी बांधी जाती है सारा समाज जो वहां उपस्थित होता है अपने स्पर्श से पगड़ी को अधिकार सौंपता है। थोड़ा संकलित ज्ञान इसपे ही हो जाये।रस्म पगड़ी - रस्म पगड़ी उत्तर भारत और पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों की एक सामाजिक रीति है, जिसका पालन हिन्दू, सिख और सभी धार्मिक समुदाय करते हैं। इस रिवाज में किसी परिवार के सब से अधिक उम्र वाले पुरुष की मृत्यु होने पर अगले सब से अधिक आयु वाले जीवित पुरुष के सर पर रस्मी तरीके से पगड़ी (जिस
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