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सामर्थ्य।

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सामर्थ्य हर इंसान जानवर में जीवन के प्रथम दिवस से ही आ जाता है।जीने की लड़ाई से और अपनी जरूरत को समझाने से।माँ से बच्चा बिना शब्द बोले अपने रुदन भर से अपनी जरूरत समझा देता है।भूखा है या तकलीफ में बहुत आसानी से माँ को समझ आ जाता है।सामर्थ्य या समर्थ होने का पहला प्रमाण यहीं से प्राप्त हो जाता है।जीवन गति पकड़ता है।जो जरूरत पूरी हो रही थी आश्रय में बदलने लगती है।जानवर इस से थोड़ा भिन्न हो जाते है।सामर्थ्य का एहसास उन्हें हर वक़्त रहता है।इंसान सबसे समर्थ बौद्धिक प्राणी है।और इंसान ही वक़्त के साथ अपने सामर्थ्य को भूलने लगता है।स्नेह भाव प्रथम दृष्टया हमेशा बेहतर लगता है।जब इसका प्रभाव इंसान को जीवन के सरल होने का एहसास दिलाने लग जाता है तब मनुष्य सबसे संकट काल से बिना एहसास किये गुजरने लगता है।एक खास आलस उसके समर्थ भाव को बहुत दबा देता है।ऐसे ही अत्यधिक क्रोध शोषण भी सामर्थ्य को दबाने का काम करते है।बुद्धि सामर्थ्य को प्रबल भी करती है और इसे हरने का काम भी करती है।जानवर इसका हर रूप में बहु उपयोग कर पाते है।जब तक अपने सामर्थ्य ताकत की परख न कर ले पीछे नही हटते।और मनुष्य मे ये कुछ ही मनुष्य अपने भीतर जगा पाते है।बहुदा उन्हें सफल व्यक्तिव के रूप में देखा जाता है।सामर्थ्य शारीरिक शक्ति का साथ साथ आपकी भीतरी शक्ति भी है जहां तन मन एक ही भाव मे काम करते हुए अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये अपने को झोंक देने की ताकत पैदा कर लेते है।येही सामर्थ्य भाव कुछ हद तक आप को अपने भीतर मौजूद शक्ति का एहसास कराता है।इंसान अकेला अपने आप मे पूर्ण रूप से इस प्रकृति में मौजूद चुनौतियों का सामना करने में समर्थ है।इसका एहसास हर समय किसी न किसी कर्म के फल स्वरूप आपको किसी न किसी रूप में होता रहता है।बहुत सी समय के साथ जन्मी तार्किक विसंगतियों स्वरूप हम इन्हें पहचानने में नाकाम रहते है।ज्यादतर हमे जीवन मे मिला अधूरा ज्ञान और प्रेम वश मिला आश्रय इसका बड़ा कारण होता है।जब हमारे जागरूक अभिवावक इससे हमें दूर कर हमें हमारी भीतरी शक्ति से मिलवाते है तो हमे इसका एहसास होता है।हम सामर्थ्य को प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील हो उठते है।या फिर एक बेहतर शिक्षक से मिला बेहतर ज्ञान हमे इसकी और अग्रसर कर देता है।कुछ अभागे जिन्हें न माता पिता मिलते न शिक्षक तो उनका जिम्मा प्रकृति जंगल के कानून की तरह खुद संभाल लेती है और सामर्थ्य का अहसास करा देती है।मगर ये सब जीवन मे बढ़ती संसाधनों की सुगमता उपलब्धता औऱ विलासता वश इसकी असल पहचान कराने में हमे दूर ही रखती है। इसलिए आज हमें अपनी भावी पीढ़ी में इस ज्ञान को उपजाने की बेहद जरूरत है।जिससे भावी पीढ़ी अपने को स्वस्थ जीवन चक्र में बनाये रखे और अपने और सामाजिक लक्ष्य को बिना किसी को हानि पहुंचाए प्राप्त्य की और बड़े।"हर रूप में समर्थ भारत"।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।

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