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ईश्वर की पूजा भक्ति हमारे अंदर एक आस्था को जन्म दे उसे प्रबल करती है।ये आस्था मनोकामनाओं को जगाने में सक्षम है।मनोवृत्तियां हमे बहुत सी अभिलाषाओं की और ले जाने में सक्षम है।और ये अभिलाषाएं ईश्वर से प्रसाद रूप ग्रहण को अधिकार का रूप भी देती है।हम भक्ति के रास्ते माया में फसें रह जाते है।येही सोचते सोचते मैं ईश्वर से मांगने लगा कुछ दींन रूप मे।
हे ईश्वर मैं तेरा उदंड बालक हूँ।
नही आता मुझे कोई सीधा रास्ता न समझ दुनिया की।
जहां देखो बंधनो का द्वार मुझे रोकता है और मैं फांदता भाग जाता ।
हे ईश्वर दे मुझे अपनी भक्ति का कुछ अंश।
हे ईश्वर दे मुझे अपनी आसक्ति में कुछ छंद।
हे ईश्वर दे मुझे मुक्ति सब लालसाओं से।
हे ईश्वर दे मुझे मुक्ति सब क्रोधो से।
हे ईश्वर दे मुझे मुक्ति सब झूठों से।
हे ईश्वर दे मुझे मुंक्ति सब आलस्यों से।
हे ईश्वर दे मुझे मुक्ति सब वैमन्सयों से।
हे ईश्वर दे मुझे मुक्ति सब अभिलाषाओं से।
हे ईश्वर दे मुझे मुक्ति सब अंधेरों से।
हे ईश्वर दे मुझे मुक्ति सब अधिकारों से।
हे ईश्वर दे मुझे मुक्ति सब कुविचारों से।
हे ईश्वर दे मुझे मुक्ति सब दलिद्रों से
हे ईश्वर दे मुझे मुक्ति सब संग्रक्षणो से।
है ईश्वर एक जगह दे दे बस अपने पहलू में।
जहां न मैं किसी का दिल दुखा सकू
न लोभ कर सकूं।
पर तेरे स्मरण से सब दुर्विचारों का मर्दन कर्क सकूं।
अपने भीतर छुपे ईश्वर अंश को खोज सकूं।
तेरे ज्ञान की राह पे चल एक तो इंसान बन सकूं।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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🌹🙏🏼🎊🎊🎊😊🎊🎊🎊✍🏼🌹 आज एक रस्म पगड़ी में गया हमारे प्यारे गोपाल भैया की।बहुत अच्छे योगाभ्यासी थे।रोज सुबह योगा सेवा में योग की कक्षा भी लगाया करते थे।बहुत शुद्ध साफ निर्मल तबीयत के और बेहद अच्छे व्यक्तित्व के मालिक थे। उम्र रही तक़रीबन 56 साल।एक गम्भीर बीमारी ने एक जीवन असमया लील लिया।पारिवारिक संबंध है हमारे।उनके पुत्र को देख के मुझे 26 जुलाई 2009 की याद आ गयी।मेरे पिता जी की मृत्यु हुई और हमारे यहां रस्म पगड़ी तेहरवीं पे ही होती है।ये उत्तर भारत के रस्मों रिवाज का हिस्सा है।पिता के बाद घर मे ज्येष्ठ पुत्र को आधिकारिक रूप से परिवार का मुखिया बनाया जाता है।समाज के सामने और जो पगड़ी बांधी जाती है सारा समाज जो वहां उपस्थित होता है अपने स्पर्श से पगड़ी को अधिकार सौंपता है। थोड़ा संकलित ज्ञान इसपे ही हो जाये।रस्म पगड़ी - रस्म पगड़ी उत्तर भारत और पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों की एक सामाजिक रीति है, जिसका पालन हिन्दू, सिख और सभी धार्मिक समुदाय करते हैं। इस रिवाज में किसी परिवार के सब से अधिक उम्र वाले पुरुष की मृत्यु होने पर अगले सब से अधिक आयु वाले जीवित पुरुष के सर पर रस्मी तरीके से पगड़ी (जिस
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