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ये मन बड़ा मौजी है जहाँ देखो हसीन ख्वाब संजो लेता है।
मैं काबू में करने को होता हूँ ये फिर दूर भाग लेता है।
कभी इस डाल कभी उस डाल बस टिकाव नही लाता है।
मैं जंजीर डालने को होता हूँ ये ओझल होने लगता है।
इस पल खुश इस पल दुखी पता नही कब इसने किसी की सुनी।
यहां कुछ चाहने को होते है ये राह बदलने निकल पड़ता है।
अभी तो इसे गुस्सा था अरे अभी इसे प्यार आने को है।
न जाने कब इसका मूड बदलता लाख समझाने को है।
बेहिसाब प्रश्न उमड़ते जब उत्तर को होता नया प्रश्न खड़ा कर लेता।
मैं घुमा फिरा के ला इसे बैठाता ये फिर चलने को होता।
मैं इसे समझाने को होता ये मचल मचल जाता।
चंचल सी चिडया सा लगता कभी इस डाल कभी उस डाल फुदकता।
मैं सोचने लगता ये सोच में ही किधर कहीं और निकल जाता।
बहुत कोशिशें की इसे ज्ञान के रास्ते शांति की।
बस किसी को गुलाब देते ही फिर भटक जाता।
मैं इसे फिर घेर घार के बापिस लाता और ये पीछे दरवाजे बाहर हो लेता।
सोचा अब चल छोड़ो इसे क्या काबू करना मुझे कौन सा साधु बनना।
बस इतने में ये बहुत बहलता थोड़ा शांत नज़र आता।
फिर अचानक जोर से फुदकता नई डाल जा बैठता।
ये ही इसकी प्रवृत्ति है और में अबोध अज्ञानी बेअसर।
येही सोच सब छोड़ा इसपे बोला चल ले चल जिधर ले जाना तुझे।
अब न तेरी उड़ान को रोकू न तुझको टोकूं।
बस मन की तो सुन और मन की कर ले।
इतनी गफलतों के बाद इत्ता ही समझ आया इक तू ही तो है जो अपना है।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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🌹🙏🏼🎊🎊🎊😊🎊🎊🎊✍🏼🌹 आज एक रस्म पगड़ी में गया हमारे प्यारे गोपाल भैया की।बहुत अच्छे योगाभ्यासी थे।रोज सुबह योगा सेवा में योग की कक्षा भी लगाया करते थे।बहुत शुद्ध साफ निर्मल तबीयत के और बेहद अच्छे व्यक्तित्व के मालिक थे। उम्र रही तक़रीबन 56 साल।एक गम्भीर बीमारी ने एक जीवन असमया लील लिया।पारिवारिक संबंध है हमारे।उनके पुत्र को देख के मुझे 26 जुलाई 2009 की याद आ गयी।मेरे पिता जी की मृत्यु हुई और हमारे यहां रस्म पगड़ी तेहरवीं पे ही होती है।ये उत्तर भारत के रस्मों रिवाज का हिस्सा है।पिता के बाद घर मे ज्येष्ठ पुत्र को आधिकारिक रूप से परिवार का मुखिया बनाया जाता है।समाज के सामने और जो पगड़ी बांधी जाती है सारा समाज जो वहां उपस्थित होता है अपने स्पर्श से पगड़ी को अधिकार सौंपता है। थोड़ा संकलित ज्ञान इसपे ही हो जाये।रस्म पगड़ी - रस्म पगड़ी उत्तर भारत और पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों की एक सामाजिक रीति है, जिसका पालन हिन्दू, सिख और सभी धार्मिक समुदाय करते हैं। इस रिवाज में किसी परिवार के सब से अधिक उम्र वाले पुरुष की मृत्यु होने पर अगले सब से अधिक आयु वाले जीवित पुरुष के सर पर रस्मी तरीके से पगड़ी (जिस
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