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तेरी रहमतों ने न जाने कितने ख्वाब मेरे बना दिये।
मैं शुक्रगुजार हूं तेरा जज़्बात तूने मुझमें जगा दिये।
काबिल तो नही मैं किसी के ख्वाब पूरे कर सकूं।
न रहे कोई ख्वाब अधूरा तूने जरिये इतने बना दिये।
हम तेरी पनाहों की नज़र अपने को महफूज़ देखते है।
वरना ख्वाब टूटने को कौंन सी देर लगती है यहाँ।
याचनायें बहुत सी पाली होंगी हमने भीतर शायद।
तू कब इन्हें सुनता रहा हम लेते रहे कभी पता न चला।
निगाहें तेरी हम पे भी पड़ती रही हम समझ न सके।
तुझे तेरे रूप को कभी खुली आंखों से देख न सके।
जब भी खुशियां आती धन्यवाद तो तेरा ही होता।
आंखें जब भी बंद करते बस तुझे और तेरी रहमतें पाते।
याद शायद बहुत बार मैं भूला होऊंगा पर तुन्हें अबोध ही जाना।
मैं गलतियां भी करता रहा तूने बालक ही जाना।
बस एक खता और करनी है मुझको माफी पहले ही दे दो।
बस कुछ भी हो अपनी पनाहों में मुझे जरा सी जगह सदा के लिए दे दो।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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🌹🙏🏼🎊🎊🎊😊🎊🎊🎊✍🏼🌹 आज एक रस्म पगड़ी में गया हमारे प्यारे गोपाल भैया की।बहुत अच्छे योगाभ्यासी थे।रोज सुबह योगा सेवा में योग की कक्षा भी लगाया करते थे।बहुत शुद्ध साफ निर्मल तबीयत के और बेहद अच्छे व्यक्तित्व के मालिक थे। उम्र रही तक़रीबन 56 साल।एक गम्भीर बीमारी ने एक जीवन असमया लील लिया।पारिवारिक संबंध है हमारे।उनके पुत्र को देख के मुझे 26 जुलाई 2009 की याद आ गयी।मेरे पिता जी की मृत्यु हुई और हमारे यहां रस्म पगड़ी तेहरवीं पे ही होती है।ये उत्तर भारत के रस्मों रिवाज का हिस्सा है।पिता के बाद घर मे ज्येष्ठ पुत्र को आधिकारिक रूप से परिवार का मुखिया बनाया जाता है।समाज के सामने और जो पगड़ी बांधी जाती है सारा समाज जो वहां उपस्थित होता है अपने स्पर्श से पगड़ी को अधिकार सौंपता है। थोड़ा संकलित ज्ञान इसपे ही हो जाये।रस्म पगड़ी - रस्म पगड़ी उत्तर भारत और पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों की एक सामाजिक रीति है, जिसका पालन हिन्दू, सिख और सभी धार्मिक समुदाय करते हैं। इस रिवाज में किसी परिवार के सब से अधिक उम्र वाले पुरुष की मृत्यु होने पर अगले सब से अधिक आयु वाले जीवित पुरुष के सर पर रस्मी तरीके से पगड़ी (जिस
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