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राजनीति और नेता।

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आजकल राजनीति का बाजार बहुत गर्म है।
नेता निकल पड़े है लड़ने को कुछ करने को।
इनके मुह खुलते ही एक दूसरे के प्रति फूल बरसते है।
कुछ मुद्दे उछलते है और नेता बस भटकाते है।
एक दूसरे को  स्पेशल आयना दिखलाते है।
जिसमे सब एक दूसरे के हमशक्ल नज़र आते है।
रूप रोब रबाब में कोई भी कम नही।
कोयले की दलाली में सब काले ही नज़र आते है।
बड़े बेशर्म मन से जनता के द्वार हर बार नज़र आते है।
जनता भी क्या करे हर बार वही एक से चेहरे नज़र आते है।
चुने भी तो किसको सब के सब हमशक्ल नज़र आते है।
बड़ी बेआबरू आबरू हो गयी हो जिनसे वो इज़्ज़तदार कहलाते है।
सामने से राम राम और पीछे से गालियां खाते है।
सब सुनकर भी चुप्पी साध जाते है।
वोट पाने की कीमत कहे न कहे समझा ही जाते है।
ये नेता भी खास मिट्टी से बने है पक के भी फिर चिकनी मिट्टी हो जाते है।
जैसे जली लकड़ी में राख के सिवा कुछ नही।
आप की बात मे भी खाक के सिवा कुछ हासिल नही।
ये नेता जितना ज्यादा बोलते है उतनी जनता डोलती है।
शब्दो के जादूगर है ये बहुत काबिल भी है।
जनता झट से बातों में आती है वोट दे जाती है।
नेता भी बेहद खुश है थैंक यू  शुक्रिया कह के चल देते है।
पांच वर्ष बाद मिलेंगे वादा करके निकल लेते है।
पत्रकार बनती जनता का मजा हर बार की तरह इस बार भी ले जाते है।
नेता इनको भी जेब संग थैंक यू कहते निकल जाते हैं।
पिछले मुद्दे हर बार की तरह गौण हो जाते है।
नया हल्ला मचता है पिछला सब पलभर में भूल जाते है।
नेता कहते जाते है "दी शो मस्ट गो ऑन"।
पहले भी उल्लू बनाया था अब भी बनाएंगे मौका रहा तो अगली बार भी बनाएंगे।
आजकल राजनीति का बाजार बहुत गर्म है।
नेता निकल पड़े है लड़ने को कुछ करने को।
सबक अब भी कुछ सीखिये वरना नेता निकल पड़ा है लड़ने को।
कुछ वोट लेने को कुछ मांगने को न मिलेंट लूटने को ।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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