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मन बुद्धि का राजा है।
मन कहता बुद्धि उस और सधती जाती।
मन जो कहता बुद्धि मान करती जाती।
मन चंचल होता बुद्धि मचला जाती।
मन भटकता बुद्धि अपना समझ लोटा लाती।
मन को इसकी फिर भी न समझ आती।
बुद्धि कुछ बोलती तो मन खौल जाता।
बुद्धि समझाती मन डोल जाता।
बुद्धि मन का अन्तरदविंद सदैव चलता रहता।
कभी मन हावी होता कभी बुद्धि खेल दिखाती।
दोनो फिर बातें कर अधिकार मन को सौंपते।
कुछ बुद्धि ठंडी होती कुछ मन को आराम मिलता।
कुछ मन की बुद्धि सुनता कुछ बुद्धि मन की तामील करती।
जब दोनो की बात मिलती तब दोनो हंसते।
एक दूसरे से संग मिलते और फतह करते चलते।
मन फिर मचलाता और बुद्धि फिर तोलती।
एक अदद मुस्कुराहट कशमकश में बदलती।
अब बुद्धि हावी होने को होती फिर मन भावो का भँवर फेकता।
बुद्धि फसती जाती मन मे डूबने लगती।
जो अभी तक ज्ञान का अधिकारी था फिर एक बार हार जाता।
बुद्धि ही कहती मन तू ही बुद्धि का राजा है।
मन कहता बुद्धि उस और सधती जाती।
येही अनवरत है जारी।
सब होनी इसी की मारी है।
जय हिंद
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शुभ रात्रि।
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🌹🙏🏼🎊🎊🎊😊🎊🎊🎊✍🏼🌹 आज एक रस्म पगड़ी में गया हमारे प्यारे गोपाल भैया की।बहुत अच्छे योगाभ्यासी थे।रोज सुबह योगा सेवा में योग की कक्षा भी लगाया करते थे।बहुत शुद्ध साफ निर्मल तबीयत के और बेहद अच्छे व्यक्तित्व के मालिक थे। उम्र रही तक़रीबन 56 साल।एक गम्भीर बीमारी ने एक जीवन असमया लील लिया।पारिवारिक संबंध है हमारे।उनके पुत्र को देख के मुझे 26 जुलाई 2009 की याद आ गयी।मेरे पिता जी की मृत्यु हुई और हमारे यहां रस्म पगड़ी तेहरवीं पे ही होती है।ये उत्तर भारत के रस्मों रिवाज का हिस्सा है।पिता के बाद घर मे ज्येष्ठ पुत्र को आधिकारिक रूप से परिवार का मुखिया बनाया जाता है।समाज के सामने और जो पगड़ी बांधी जाती है सारा समाज जो वहां उपस्थित होता है अपने स्पर्श से पगड़ी को अधिकार सौंपता है। थोड़ा संकलित ज्ञान इसपे ही हो जाये।रस्म पगड़ी - रस्म पगड़ी उत्तर भारत और पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों की एक सामाजिक रीति है, जिसका पालन हिन्दू, सिख और सभी धार्मिक समुदाय करते हैं। इस रिवाज में किसी परिवार के सब से अधिक उम्र वाले पुरुष की मृत्यु होने पर अगले सब से अधिक आयु वाले जीवित पुरुष के सर पर रस्मी तरीके से पगड़ी (जिस
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