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बहुत सोचते है अपने आप से।
बहुत कहते है अपने आप से।
बहुत सुनते है अपने आप से।
बहुत खुश होते हैअपने आप से।
समंदर भी बहुत है नदियां भी बहुत।
रास्ते भी अनेक है गलियां भी बहुत।
मंज़िले भी अनेक है निशाने भी बहुत।
इश्क़ है अपने से इसके तराने भी बहुत।
देखते है तो सारी धरती अपनी सी है।
देखते है तो सारा आसमां अपना सा है।
देखते है तो सारा जमाना अपना सा है।
इसलिए मेरी मोहब्बत के अफ़साने बहुत।
कीमत समझते है अपनी हम शायद।
कीमत समझते है अपनो की शायद।
कीमत समझते है रिश्तों की शायद।
फिर क्यों हमारी कीमत भूलते मिलते मुझे यूँ सब।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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