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एक उम्र गुजरी यादें बनाते हुए।
एक उम्र गुजरी इन्हें सहेजते हुए।
एक उम्र गुजरी इन्हें समझते हुए।
एक उम्र गुजरी इन्हें मन मे जीते हुए।
एक दरकार थी के यादें सिर्फ मधुर होती
एक दरकार थी के ये सिर्फ खुशी देती।
एक दरकार थी आंख में आंसू न देती।
एक दरकार थी बचपन आज भी जीती।
मधुर फलों का रस बन स्वाद है इनका।
खूबसूरत झरनों सी निर्झर सदा गिरती ये ।
नदियों का सा वेग लिये निरन्तर बहती ये।
बगीचे सी मोहक सदा महकती रहती ये।
पुष्पो की माला बन लुभाती मुझे ये।
मेरी हर चाह को सदा जवानी देती ये।
मन के हर अंकुर को सिंचित करती ये।
बस न पूछो एक उम्र गुजरी यादें बनाते ये।
यादों के सहारे ही बहुत है।
कुछ खट्टी कुछ मीठी बनती चलती ये।
मुझे हर एहसास से गुजारती ये
बस न पूछो एक उम्र गुजरी यादें बनाते ये।
कभी शान्त होते तो पुकारते इन्हें।
कुछ लम्हे मन के भीतर इतराते इन्हें।
हम आंख बंद कर लेते जीते इन्हें।
बस न पूछो एक उम्र गुजरी यादें बनाते ये।
बहुत बार दिल लगे लगते गये।
समय की ताल पे यादें बनते गये।
हम संजोते गए सहेजते गए इन्हें।
बस न पूछो एक उम्र गुजरी यादें बनाते ये।
आज फिर कुछ मीठी सी चुभन हुई।
यादों के झोरोखों से इनकी दस्तक हुई।
हम आनंद अपना कुछ यूं ही लिख पाये।
बस न पूछो एक उम्र गुजरी यादें बनाते ये।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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