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शहीदों को नमन है परिवारों को सांत्वना।
आज बहुत आक्रोश है शोक की घड़ी है।
ऐसा लगता है बड़ी मुसीबत आन पड़ी है।
जिनके गये उनमे तो गुस्सा भरा ही पड़ा है।
चालीस के बदले चालीस हजार की बात हो रही है।
एक लाल उजड़ा दूसरे को उजाड़ने की तैयारी की जा रही है।
कोई मजहब की रोटियां सेक रहा है।
कोई अपने इंतकाम को दिखा रहा है।
कोई घुंन को पीस कर सीना चौड़ा कर रहा है।
हर कोई अपना किसीका दिमाग गर्म कर रहा है।
अपने विरोधी को बड़ा देशद्रोही बता रहा है।
टी वी का शोर बहुत तेज़ शोर कर रहा है।
किसीके टुकड़े करने को उतावला हो रहा है।
आज जवानों की याद है।
कल उनके परिवार तक जायेगी।
कुछ दिन बाद बस सब भूल जायेगी।
जिंदगी फिर दौड़ने लगेगी।
इंसान को ये बात भी औरों सी भूल जायेगी।
कुछ लोग वाकई कलाकार होते है।
सुबह को हंसते झंडी दिखाते है ।
शाम होते आंसू दिखा श्रद्धाजंलि दे जाते है
किसे चला रहे हो?
क्यों बहका रहे हो?
तुमने भी तो अपने कर्मो की फसल बोई है।
समझ लो काट रहे हो।
युवा आक्रोशित है।
जनता भ्रमित।
जवान शोक संतप्त।
नेता का दिमाग लग चुका है।
चुनावी विगुल बज चुका है।
आज कुछ अलग नज़ारा है।
लाइन में लगा जग सारा है।
जबर्दस्ती के भी आंसू छलक रहे हैं।
हो न हो पत्रकार सब देख रहे है।
अब आंसुओं का हिसाब होगा समझा रहे है।
ये पागल किसी और के आंसुओं का प्लान बनवा रहे है।
बारूद की भाषा मे विस्फोट समझा रहे है।
देखो कत्ल करने का खाका तैयार करवा रहे है।
उसकी आँखों मे आंसू ला अपने पोछने को तैयार हो रहे है।
कोई तो शासन में क्रूरता को अधिमान दे रहे है।
अपनों का कत्ल नाजायज़ उसका जायज ठहरा रहे है।
ये कोंन सी दुनिया मे हम जा रहे है?
बंदूक के रास्ते अमन जहां ला रहे है।
अपने को उससे बड़ा बदूक़बाज़ बता रहे है।
चार टुकड़े कर पड़ोस में एक और राक्षस लानें का प्लान बना रहे है।
वीरों की वीरगति का मख़ौल उड़ा रहे है।
राजनीति कर न करने की सलाह दे रहे है।
अपनें लाल की सुध ले न ले दूसरे के लाल की लाश सोच रहे है।
वीर मेरे तुम्हारे सबके थे।
नेता चुपके से इसमें भी राजनीति ढूंढ रहे है।
क्या बताऊँ आज बहुत आक्रोश है शोक की घड़ी है।
ऐसा लगता है बड़ी मुसीबत सामने आएआन पड़ी है।
प्रेम से कुछ उत्तम नही युद्ध से भयावह कुछ नही।
प्रेम जोड़ता युद्ध तोड़ता है।
किसे समझाऊं सबके मन आक्रोश जो भरा है।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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🌹🙏🏼🎊🎊🎊😊🎊🎊🎊✍🏼🌹 आज एक रस्म पगड़ी में गया हमारे प्यारे गोपाल भैया की।बहुत अच्छे योगाभ्यासी थे।रोज सुबह योगा सेवा में योग की कक्षा भी लगाया करते थे।बहुत शुद्ध साफ निर्मल तबीयत के और बेहद अच्छे व्यक्तित्व के मालिक थे। उम्र रही तक़रीबन 56 साल।एक गम्भीर बीमारी ने एक जीवन असमया लील लिया।पारिवारिक संबंध है हमारे।उनके पुत्र को देख के मुझे 26 जुलाई 2009 की याद आ गयी।मेरे पिता जी की मृत्यु हुई और हमारे यहां रस्म पगड़ी तेहरवीं पे ही होती है।ये उत्तर भारत के रस्मों रिवाज का हिस्सा है।पिता के बाद घर मे ज्येष्ठ पुत्र को आधिकारिक रूप से परिवार का मुखिया बनाया जाता है।समाज के सामने और जो पगड़ी बांधी जाती है सारा समाज जो वहां उपस्थित होता है अपने स्पर्श से पगड़ी को अधिकार सौंपता है। थोड़ा संकलित ज्ञान इसपे ही हो जाये।रस्म पगड़ी - रस्म पगड़ी उत्तर भारत और पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों की एक सामाजिक रीति है, जिसका पालन हिन्दू, सिख और सभी धार्मिक समुदाय करते हैं। इस रिवाज में किसी परिवार के सब से अधिक उम्र वाले पुरुष की मृत्यु होने पर अगले सब से अधिक आयु वाले जीवित पुरुष के सर पर रस्मी तरीके से पगड़ी (जिस
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