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तेरे चेहरे पे खुशी देख कर दिल झूम झूम जाता है।
तेरे पास आने से मजा भी तो ज्यादा हो जाता है।
तेरे चेहरे की रंगों रंगत और भी हसीन हो जाती है।
हम देखते देखते और बस तुझे देखते रह जाते है।
तू छमछम से चली आती है हम झूम झूम जाते है।
तेरे चेहरे पे खुशी देख कर दिल झूम झूम जाता है।
क्या मुक़दस वक़्त होता है जो तेरा आना होता है।
हर और छाया नूर और बिखरा तेरासरूर होता है।
तेरे पैरों की मदभरी आहट से मन यूँ गूंज जाता है।
दिल के तार छिड़ जाते है मन गाने लग जाता है।
तुम में डूब के यूँ कुछ दिल का करार आ जाता है।
सारी ख्वाईशें तेरी इक अदद नज़र ही मोहताज़ है।
हमपे जब डलती है तो हमारी भी कीमत होती है।
तेरे होने से हम है इसकी भी वजह बस तू होती है।
कभी नाराज़ होते भी है के दूरी बर्दाश्त नही होती।
ये गुलिस्तां तेरी महक से है वरना रात नही होती।
तेरे चेहरे पे खुशी देख कर दिल झूम झूम जाता है।
मेरा सारा जहां तेरे होनेभर से आबाद हो जाता है।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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🌹🙏🏼🎊🎊🎊😊🎊🎊🎊✍🏼🌹 आज एक रस्म पगड़ी में गया हमारे प्यारे गोपाल भैया की।बहुत अच्छे योगाभ्यासी थे।रोज सुबह योगा सेवा में योग की कक्षा भी लगाया करते थे।बहुत शुद्ध साफ निर्मल तबीयत के और बेहद अच्छे व्यक्तित्व के मालिक थे। उम्र रही तक़रीबन 56 साल।एक गम्भीर बीमारी ने एक जीवन असमया लील लिया।पारिवारिक संबंध है हमारे।उनके पुत्र को देख के मुझे 26 जुलाई 2009 की याद आ गयी।मेरे पिता जी की मृत्यु हुई और हमारे यहां रस्म पगड़ी तेहरवीं पे ही होती है।ये उत्तर भारत के रस्मों रिवाज का हिस्सा है।पिता के बाद घर मे ज्येष्ठ पुत्र को आधिकारिक रूप से परिवार का मुखिया बनाया जाता है।समाज के सामने और जो पगड़ी बांधी जाती है सारा समाज जो वहां उपस्थित होता है अपने स्पर्श से पगड़ी को अधिकार सौंपता है। थोड़ा संकलित ज्ञान इसपे ही हो जाये।रस्म पगड़ी - रस्म पगड़ी उत्तर भारत और पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों की एक सामाजिक रीति है, जिसका पालन हिन्दू, सिख और सभी धार्मिक समुदाय करते हैं। इस रिवाज में किसी परिवार के सब से अधिक उम्र वाले पुरुष की मृत्यु होने पर अगले सब से अधिक आयु वाले जीवित पुरुष के सर पर रस्मी तरीके से पगड़ी (जिस
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