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रोष में होश गुम है।
सुलह की आवाज़ सुन्न है।
कोई सुनने को तैयार नही है।
रोष बहुत है होश गुम है।
कोई सुनवाई ही नही है।
युद्ध की ललकार बहुत है।
फना होने की तमन्ना प्रबल है।
बिल से निकालने की धारणा प्रबल है।
कुछ भी हो जाये मरने मारने का जस्ब है।
निकाल बाहर मार डालने का महाप्रण है।
एक एक को ठोकने का मन है।
मंज़िलें आज ही हांसिल करनी है।
तबाही तबाही और तबाही करनी है।
उसकी बर्बादी और बर्बादी देखनी है।
इल्म नही रोष में होश गुम हैं।
हर कीमत पे उसे झगड़ना बस है।
अपना घर जले उसका भी जलाना बस है।
सहनशीलता को किनारे लगाना बस है।
ताक़त के परचम से दूसरा घर जलाना बस है।
रोष में खोते होश ने धम्ब सीख लिया अब है।
सोचने का वक़्त गया ऐसा लगने लगा अब है।
महाभारत का शंखनाद हो गया है जैसे अब है।
बहुत वक़्त हुआ धरती लाल नहीं हुई।
इस कुरुक्षेत्र में आंखें लाल हुई है देखो अब है।
भावनाओ का ज्वालामुखी उफान पे है।
क्रोध का लावा सब निगलने को है।
मन आंदोलित और बाजुएं फड़फड़ा रही है अब है।
हिसाब तो बराबर होना अब है।
इन विचारों ने घर कर लिया बस है।
रोज रोना देख शुबा बहुत हुआ है।
न भड़कना न भड़काना बन्द हुआ है।
कुछ देर और बीतने दो।
दिमाग को कुछ और मोहलत दो।
काम बहुत से बिन किये पड़े है।
बोझ बढ़ने दो भूलने दो कुछ नया सोचने दो।
लड़ाई किसे सस्ती पड़ी है।
नुकसान सबका करके ही हटी है।
फिर दिल को दिल की याद आन पड़ी है।
कमबख्त कोई सुन क्यों नही रहा है।
सबको दूसरे की जान लेने की बस पड़ी है।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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🌹🙏🏼🎊🎊🎊😊🎊🎊🎊✍🏼🌹 आज एक रस्म पगड़ी में गया हमारे प्यारे गोपाल भैया की।बहुत अच्छे योगाभ्यासी थे।रोज सुबह योगा सेवा में योग की कक्षा भी लगाया करते थे।बहुत शुद्ध साफ निर्मल तबीयत के और बेहद अच्छे व्यक्तित्व के मालिक थे। उम्र रही तक़रीबन 56 साल।एक गम्भीर बीमारी ने एक जीवन असमया लील लिया।पारिवारिक संबंध है हमारे।उनके पुत्र को देख के मुझे 26 जुलाई 2009 की याद आ गयी।मेरे पिता जी की मृत्यु हुई और हमारे यहां रस्म पगड़ी तेहरवीं पे ही होती है।ये उत्तर भारत के रस्मों रिवाज का हिस्सा है।पिता के बाद घर मे ज्येष्ठ पुत्र को आधिकारिक रूप से परिवार का मुखिया बनाया जाता है।समाज के सामने और जो पगड़ी बांधी जाती है सारा समाज जो वहां उपस्थित होता है अपने स्पर्श से पगड़ी को अधिकार सौंपता है। थोड़ा संकलित ज्ञान इसपे ही हो जाये।रस्म पगड़ी - रस्म पगड़ी उत्तर भारत और पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों की एक सामाजिक रीति है, जिसका पालन हिन्दू, सिख और सभी धार्मिक समुदाय करते हैं। इस रिवाज में किसी परिवार के सब से अधिक उम्र वाले पुरुष की मृत्यु होने पर अगले सब से अधिक आयु वाले जीवित पुरुष के सर पर रस्मी तरीके से पगड़ी (जिस
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