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आज कल लोग बहुत नामाकूल हो गये है।
कमबख्त आहे बगाहे धमकाते नज़र आते है।
जिसे देखो चौधराहट चढ़ी नज़र आती है।
सिर्फ अपनी बात ही सही नज़र आती है।
अबे ओ नामकूलो बीवी पे ये दिखाओ तो जरा।
छट्टी का दूध न याद आ जाये तो बताओ जरा।
रात छोड़ दिन भी काला न हो जाये तो बताओ जरा।
तुम्हारी दाल सूप न बन जाये बताओ तो जरा।
चाय का भी मूत न हो जाये समझाना तो जरा।
जलीं रोटियों का स्वाद मजा भी बताना तो जरा।
बिना इस्त्री के वस्त्र का आनंद लेना तो जरा।
एक शब्द बोलो उसके के हज़ार सुनना तो जरा।
सोमरस का जूस कैसे बनता है देखना तो जरा।
बिना पिये नशा कैसे चढ़ता है समझना तो जरा।
न समझ आये तो बीवी से पंगा दुबारा लेना तो जरा।
फसबुकिये दबंग बनते हो फालतू बाते बनाते हो जरा।
इसलिए आज कल लोग बहुत नामाकूल हो गये है।
कमबख्त आहे बगाहे धमकाते नज़र आते है।
जिसे देखो चौधराहट चढ़ी नज़र आती है।
सिर्फ अपनी बात ही सही नज़र आती है।
न समझ आया तो कोई बात नही तो जरा।
बस मेरे ये शब्द भाभी जी को सुना देना तो जरा।
इसलिए कहता हूँ पहले घरवाली से निपटो फिर मेरे पास आना तो जरा।
पता है न निपटो गे न........समझ गये न जरा।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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🌹🙏🏼🎊🎊🎊😊🎊🎊🎊✍🏼🌹 आज एक रस्म पगड़ी में गया हमारे प्यारे गोपाल भैया की।बहुत अच्छे योगाभ्यासी थे।रोज सुबह योगा सेवा में योग की कक्षा भी लगाया करते थे।बहुत शुद्ध साफ निर्मल तबीयत के और बेहद अच्छे व्यक्तित्व के मालिक थे। उम्र रही तक़रीबन 56 साल।एक गम्भीर बीमारी ने एक जीवन असमया लील लिया।पारिवारिक संबंध है हमारे।उनके पुत्र को देख के मुझे 26 जुलाई 2009 की याद आ गयी।मेरे पिता जी की मृत्यु हुई और हमारे यहां रस्म पगड़ी तेहरवीं पे ही होती है।ये उत्तर भारत के रस्मों रिवाज का हिस्सा है।पिता के बाद घर मे ज्येष्ठ पुत्र को आधिकारिक रूप से परिवार का मुखिया बनाया जाता है।समाज के सामने और जो पगड़ी बांधी जाती है सारा समाज जो वहां उपस्थित होता है अपने स्पर्श से पगड़ी को अधिकार सौंपता है। थोड़ा संकलित ज्ञान इसपे ही हो जाये।रस्म पगड़ी - रस्म पगड़ी उत्तर भारत और पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों की एक सामाजिक रीति है, जिसका पालन हिन्दू, सिख और सभी धार्मिक समुदाय करते हैं। इस रिवाज में किसी परिवार के सब से अधिक उम्र वाले पुरुष की मृत्यु होने पर अगले सब से अधिक आयु वाले जीवित पुरुष के सर पर रस्मी तरीके से पगड़ी (जिस
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