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दिल झूम झूम झूमने लगा।
समा मस्त मस्त लगने लगा।
दिल मे कुछ कुछ होने लगा।
तेरे इश्क़ का नशा होने लगा।
दिल धक धक धक करने लगा।
इसका सरूर मुझपे होने लगा।
दिल की धड़कन बढ़ने लगी।
तेरे आने की आहट होने लगी।
दिल का पंछी उड़ उड़ने लगा।
पलकें झुक झुक झुकने लगी।
तेरी परछाई मुझे दिखने लगी।
एहसास मेरे गर्म गर्म होने लगे।
होश कही गुम गुम गुम होने लगे।
दिल झूम झूम झूमने लगा।
समा मस्त मस्त लगने लगा।
हर तरफ तू बस तू ही दिखने लगी।
जिंदगी हसीन और हसीन लगने लगी।
बहारों के झरोखे मेर्री और खुलने लगे।
मन मे हल्की हल्की गुदगुदी होने लगी।
प्यार के हल्के हल्के एहसास जगने लगे।
हर बात तेरी सामने सामने आने लगी।
हर तेरे साथ गुजरा पल मेरा होने लगा।
तू कहीं भी था मगर मेरे साथ होने लगा।
ये बहारें नज़ारें मुझे हर वक़्त घेरने लगी।
मैंने भी मूंद ली है आंखे जब तेरी लगी ।
तुझे क्या बतायें ए हमदम मेरे..सोचों में तेरी
दिल झूम झूम झूमने लगा।
समा मस्त मस्त लगने लगा।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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🌹🙏🏼🎊🎊🎊😊🎊🎊🎊✍🏼🌹 आज एक रस्म पगड़ी में गया हमारे प्यारे गोपाल भैया की।बहुत अच्छे योगाभ्यासी थे।रोज सुबह योगा सेवा में योग की कक्षा भी लगाया करते थे।बहुत शुद्ध साफ निर्मल तबीयत के और बेहद अच्छे व्यक्तित्व के मालिक थे। उम्र रही तक़रीबन 56 साल।एक गम्भीर बीमारी ने एक जीवन असमया लील लिया।पारिवारिक संबंध है हमारे।उनके पुत्र को देख के मुझे 26 जुलाई 2009 की याद आ गयी।मेरे पिता जी की मृत्यु हुई और हमारे यहां रस्म पगड़ी तेहरवीं पे ही होती है।ये उत्तर भारत के रस्मों रिवाज का हिस्सा है।पिता के बाद घर मे ज्येष्ठ पुत्र को आधिकारिक रूप से परिवार का मुखिया बनाया जाता है।समाज के सामने और जो पगड़ी बांधी जाती है सारा समाज जो वहां उपस्थित होता है अपने स्पर्श से पगड़ी को अधिकार सौंपता है। थोड़ा संकलित ज्ञान इसपे ही हो जाये।रस्म पगड़ी - रस्म पगड़ी उत्तर भारत और पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों की एक सामाजिक रीति है, जिसका पालन हिन्दू, सिख और सभी धार्मिक समुदाय करते हैं। इस रिवाज में किसी परिवार के सब से अधिक उम्र वाले पुरुष की मृत्यु होने पर अगले सब से अधिक आयु वाले जीवित पुरुष के सर पर रस्मी तरीके से पगड़ी (जिस
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