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एक वो भी दौर था जब बचपन के खेलों में कंचे शामिल होते थे।
भरी दोपहर मिट्टी में जम के खेले जाते थे।
कुछ कंचो के भी सुंदर सुंदर नाम हुआ करते।थे।
कोई सोडियल कोई परियल हुआ करते थे।
हरे लाल नीले पीले तो खूब हुआ करते थे।
कुछ छोटे कुछ मोटे भी हाथ मे हुआ करते थे।
क्या मजा आता जब अंट पिल खेला जाता था।
एक की रानी में कोई भाई सब लूट जाता था।
निशाने लगाने का मजा भी बहुत आता था।
कभी एक आंख टेडी बंद निशाना साधा जाता था।
अलग अलग कोणों से घुमा निशाना लगाया जाता था।
अंट पिल में कंचे खूब जोर जोर घुमाये बुलाये जाते थे।
उंगलियों को खींच खींच निशाने लगाये जाते थे।
गुची बनाने का मजा भी बहुत निराला था।
समतल धरती कर गोलाई ढाल बनाई जाती थी।
दूर बैठ कर कंची उसमें एक बार मे डाली जाती थी।
फिर निशाना लगाने की बारी हमारी आती थी।
फिर आषाढ़ का सूरज जब चमकता धरती तमतमाती थी।
कहीं छांव में बैठ कर कली जोट लगाई जाती थी।
थोड़े बड़े हुए तो नक्का पूर भी सीख लिया।
नये नये कंचे इकठे करने का दौर शुरू हुआ।
डब्बे भर भर कंचे जीते सुबह दोपहर शाम जीते।
गिनती करते खुली आँखों से सपनो में रहते जीते।
उस वक़्त का कैरियर शायद वही टॉप रहता था।
यहां अर्जुन की नज़र कंचे पे सदा बनी रहती थी।
मिट्टी की सुगंध कपड़ो में सदा बसी रहती थी।
हाथोंके मिट्टी से स्नेह पूर्ण रिश्ता था।
जब तक माँ डांटे न छोड़े न छूटता था।
ये सब बातें पिता को न पता थी।
इक दिन आया बापू ने भरी दोपहरी हमे घर के बाहर पाया।
कंचो का अंत वक़्त समझो उसी दिन आया।
सालों की मेहनत को सड़कों पे बिखरी पाया।
हम भी चालाक कम न थे।
कुछ नये नये अलग से बचा के रखे थे।
मानो न मानो वो वक़्त तो लौट के न आया।
पर आज ये कहीं किसी को देख बचपन संग आया।
कुछ भूली बिसरी यादें मन दर्पण समक्ष ले आया।
सोच याद भी कर लूं तुमको भी सुना दूं।
बचपन तुम्हारा अभी लौटा कर ला दूं।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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🌹🙏🏼🎊🎊🎊😊🎊🎊🎊✍🏼🌹 आज एक रस्म पगड़ी में गया हमारे प्यारे गोपाल भैया की।बहुत अच्छे योगाभ्यासी थे।रोज सुबह योगा सेवा में योग की कक्षा भी लगाया करते थे।बहुत शुद्ध साफ निर्मल तबीयत के और बेहद अच्छे व्यक्तित्व के मालिक थे। उम्र रही तक़रीबन 56 साल।एक गम्भीर बीमारी ने एक जीवन असमया लील लिया।पारिवारिक संबंध है हमारे।उनके पुत्र को देख के मुझे 26 जुलाई 2009 की याद आ गयी।मेरे पिता जी की मृत्यु हुई और हमारे यहां रस्म पगड़ी तेहरवीं पे ही होती है।ये उत्तर भारत के रस्मों रिवाज का हिस्सा है।पिता के बाद घर मे ज्येष्ठ पुत्र को आधिकारिक रूप से परिवार का मुखिया बनाया जाता है।समाज के सामने और जो पगड़ी बांधी जाती है सारा समाज जो वहां उपस्थित होता है अपने स्पर्श से पगड़ी को अधिकार सौंपता है। थोड़ा संकलित ज्ञान इसपे ही हो जाये।रस्म पगड़ी - रस्म पगड़ी उत्तर भारत और पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों की एक सामाजिक रीति है, जिसका पालन हिन्दू, सिख और सभी धार्मिक समुदाय करते हैं। इस रिवाज में किसी परिवार के सब से अधिक उम्र वाले पुरुष की मृत्यु होने पर अगले सब से अधिक आयु वाले जीवित पुरुष के सर पर रस्मी तरीके से पगड़ी (जिस
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