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रिश्तों में ठंडक।

🌹🙏❣❣❣❣🇮🇳❣❣❣❣✍🌹
रिश्तों में ठंडक बड़ गयी है।
चारों और अजीब धुंद छाई हुई है।
राहें तो है मगर नज़र नही आती।
अजीब सी शून्यता छाई हुई है।
मन घोर कड़वाहटों से भर गया है।
सारे रिश्ते गहरी खाई में धसे है।
अजीब सी मैं पाल ली गयी है।
देख तूने किया अब मेरी बारी है।
पड़ोसी की आवाज़ जहर हो गयी है।
हर बात झूठ और झूठ लग रही है।
चारों और अफरा तफरी मच रही है।
काल के ग्रास में कपालों की लाइन है।
कुछ अपने कुछ उनके दिखाई देते है।
जनूनी हद ने अच्छे से भ्रमा दिया है।
शून्यता को चारों और फैला दिया है।
विवेक अब जरूरी नही लगता है।
शांति अब शूल लाई लग रही है।
दुश्मन की मौत बहुत लुभा रही है।
पड़ोसी एक आंख नही भा रहा है।
ये जानकर भी के बदला जायेगा नही।
अब उसका घर तोड़ा जाये तो मजा आयेगा।
ऐसी दहशत फैले के हर वक़्त सहमा रहे।
ऐसे डर में प्रेम कहीं गुम गया है।
संतुलन कही सारा बिगड़ गया है।
पड़ोसी बिगड़ैल सा गुंडा हो गया है।
मैंने भी नफ़रतें पाल ली है।
गुंडे की पैंट जो फाड़नी है।
इज़्ज़त उसकी सरे बाजार उछालनी है।
मनसूबे बना रहा हूँ तरकीबे ले रहा हूँ।
मगर मंसूबे तो वहां भी बन रहै हैं।
खटास रोज़ बड़ा रहे है।
साम्प्रदायिक बेतहाशा हो रहे है।
उन्माद उतपन्न हो रहा है।
देशप्रेम के नाम एक अजीब द्रोह हो रहा है।
मकसद जीत रहे है जिंदगी हार रही है।
येही स्तिथि कमोबेश दोनों और बन रही है।
जीतेंगे मकसद हारेंगे जिंदगियां।
ये फैशन हुआ नये दौर का मियां।
देखो शो होने को है।
कुछ और जिन्दगियां सफर करने को है।
जय हिंद।
💫🌟✨****🙏****✍
शुभ रात्रि।
🌹❣❣❣❣❣🇮🇳❣❣❣❣❣🌹

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