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एक सच चल मैं अपने आप से बोलूं।
कितनी बार बुरा सोचा आज मन खोलू।
कितनी बार भूलें की सबसे रूबरू हो लूँ।
ख्यालों की दुनिया से लुटा कुछ सह लूँ
एक सच चल मैं अपने आप से बोलूं।
अपनो का दिल दुखाया आज सह लूँ।
किसी का विश्वास तोड़ा सजा ले लूँ।
किसी की उम्मीद को तोड़ा दुखी हो लूँ।
एक सच चल मैं अपने आप से बोलूं।
नाजायज चाहतो को थोपा अपना लूँ।
वादे न निभाये चल आज वादा कर लूँ।
किसी आस से भागा चल आज आस ले लूँ।
एक सच चल मैं अपने आप से बोलूं।
दम्भ में रहा दम्भ पाया आज मुक्त हो लूँ।
लालचों के वश रहा चल त्याग ले लूँ।
भगवान से डरता रहा चल आराम ले लूँ।
एक सच चल मैं अपने आप से बोलूं।
अपनी असलियत से दूर रहा सोचा मिल लूँ।
अपनी काबलियत को बोना रखा आज बड़ी कर लूं।
कुछ लंबी भी छोड़ी चल आज समेट लूँ।
एक सच चल मैं अपने आप से बोलूं।
खुदा की मेहरबानियां बहुत है मुझ पे शायद।
इसलिए भूला था सब अब तक शायद।
जब याद आ ही गयी है अपनी गैरत ले लू शायद।
एक सच चल मैं अपने आप से बोलूं।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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🌹🙏🏼🎊🎊🎊😊🎊🎊🎊✍🏼🌹 आज एक रस्म पगड़ी में गया हमारे प्यारे गोपाल भैया की।बहुत अच्छे योगाभ्यासी थे।रोज सुबह योगा सेवा में योग की कक्षा भी लगाया करते थे।बहुत शुद्ध साफ निर्मल तबीयत के और बेहद अच्छे व्यक्तित्व के मालिक थे। उम्र रही तक़रीबन 56 साल।एक गम्भीर बीमारी ने एक जीवन असमया लील लिया।पारिवारिक संबंध है हमारे।उनके पुत्र को देख के मुझे 26 जुलाई 2009 की याद आ गयी।मेरे पिता जी की मृत्यु हुई और हमारे यहां रस्म पगड़ी तेहरवीं पे ही होती है।ये उत्तर भारत के रस्मों रिवाज का हिस्सा है।पिता के बाद घर मे ज्येष्ठ पुत्र को आधिकारिक रूप से परिवार का मुखिया बनाया जाता है।समाज के सामने और जो पगड़ी बांधी जाती है सारा समाज जो वहां उपस्थित होता है अपने स्पर्श से पगड़ी को अधिकार सौंपता है। थोड़ा संकलित ज्ञान इसपे ही हो जाये।रस्म पगड़ी - रस्म पगड़ी उत्तर भारत और पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों की एक सामाजिक रीति है, जिसका पालन हिन्दू, सिख और सभी धार्मिक समुदाय करते हैं। इस रिवाज में किसी परिवार के सब से अधिक उम्र वाले पुरुष की मृत्यु होने पर अगले सब से अधिक आयु वाले जीवित पुरुष के सर पर रस्मी तरीके से पगड़ी (जिस
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